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बुधवार, 22 मार्च 2023

*आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों*

 

आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों

      आज की पीढ़ी की मानसिक स्थिति कैसी है। जो एक असफलता या कोई विषम परिस्थिति आने पर किसी एक व्यक्ति से सम्बंध टूटने पर जान दे देते हैं। क्या उस व्यक्ति के बाद दुनिया ही नहीं रहेगी। क्या सफलता के सारे रास्ते बंद हो गए। क्या अब जीवन जीने कोई तरकीब या वजह शेष नहीं रहा। इसको समझना जरूरी है।

 

      अभी दस दिन पहले हमारे एक पड़ोसी के बेटे ने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, पड़ोसी बाहर पदस्थापित थे, पत्नी छोटे बेटे के साथ कही शादी में सम्मिलित होने बाहर गयी थी । इस बीच बेटे ने ये कदम उठाया । शायद पढ़ाई के तनाव के कारण यह घटना घटित हुई।

      पढ़ाई का दबाव हो या प्यार का मामला हो या अन्य कोई समस्या उससे संघर्ष करने के बदले आत्महत्या, उस समस्या से पलायन करने का आसान तरीका है। आत्महत्या की बढ़ती संख्या यह बताती है कि आज समाज में संघर्ष करने की शक्ति कितनी कम हो गई है। जीवन में असफलता मिलने पर आज के नौजवान अपनी जीवनलीला समाप्त करने पर उतारू हो जाता है वह यह नहीं सोचता सफलता पाने के लिए असफलता कि द्वार से ही गुज़ारना पड़ता है।

        पढ़ाई का दबाव और प्यार के मामले के अलावा माँ बाप का तनाव भरा रिश्ता घर का खराब माहौल , माँ या बाप का घर से बाहर अनैतिक सम्बन्ध भी एक कारण है । समाज में बच्चे जब बाहर उनके लिए फुसफुसाहट सुनते है तो कभी-कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते । माता-पिता द्वारा जो प्रतिशत का दबाव बना रहता है वो कम हो, जिससे बच्चे कम अंक लाने पर भी माता-पिता को खुलकर बता सकें। जिस विषय में रुचि हो वो भी बता सकें। अभिभावक को अपने बच्चे से उसकी मानसिक दृढ़ता को ध्यान में रखते हुए ही अपेक्षा रखनी चाहिए। ज्यादा अपेक्षा और उस अपेक्षा को पूरा करने के लिए दबाव बनाने से बच्चे उस लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाते या उतना परिश्रम नहीं कर पाते तो अवसाद में चले जाते हैं।

        आज कल के जो युवा हैं उनका पालन पोषण  इस तरह से किया जाता है कि जीवन में असफलता मिलते ही निराशा हावी  हो जाती है और आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगते हैं। आज के युवाओं में सहन शक्ति व विपरीत परिस्थितियों में काम करने की क्षमता का कम होने के बहुत सारे कारण है। जिसमें संयुक्त परिवार का विघटन और भावनात्मक दिमागी मनोवैज्ञानिक सहयोग का न होना भी एक महत्वपूर्ण कारण कहा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जीवन में इतना महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए कि उसके खातिर  व्यक्ति अपने जीवन को खत्म कर ले। बच्चों से हर अच्छी बुरी बात शेयर करनी चाहिए (विशेष किशोर बच्चों से) ये तो एकांगी बात हुई संयुक्त परिवार में किसी एक की मुसीबत पर सब सहायतार्थ खड़े होते थे । आज जैसा अकेलापन नहीं हुआ करता था।

        मेरी युवा बेटी ने एक तरह से पूछा ही मुझसे की उसके सारे दोस्त नव वर्ष की पार्टी रख रहे हैं तो वह भी जाएगी। उस पर हमें उस से कहना चाहिए था कि हाँ, ठीक है, जा सकती हो तुम। लेकिन जल्दी वापस आ जाना। मेरे कहने का मतलब होता जमाना ठीक नहीं है। लेकिन मैंने कहा कि उसे अभी अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस पर वह कुछ पल मुझे देखती हुई बोली कि उसे पता है, उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है। मैं चिंता ना करूँ, क्योंकि वह  बड़ी हो गई है। अपना ख्याल रखना आता है उसे। उसकी बात पर मुझे हंसी आ गई। लगा सच में मेरी बेटी बड़ी ही गई है। आज के बच्चे काफी समझदार हैं, उन्हें अपना भला बुरा पता है। पढ़ाई का दबाव हो या उसके दोस्तों को लेकर बात-बात पर टोका टाकी बच्चों को अपने अभिभावक से और दूर कर देते हैं। हाँ, सही गलत का ज्ञान देना गलत बात नहीं है। पर हिटलरशाही बने रहने से बच्चे और हाथ से बाहर निकलते चले जाते हैं।

      कई माता-पिता को कहते सुना है कि आज के बच्चे इतनी सुविधाएं मिलने के बाद भी ठीक से पढ़ते लिखते नहीं हैं। लेकिन उन्हें यह बात समझ में नहीं आती कि आज प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को सहयोग करनी चाहिए, न की दबाव दें। बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहने से माता-पिता और बच्चों के बीच ज्यादा मजबूत रिश्ता बन पाता है। ऐसा मुझे लगता है।

 

       मुझे लगता है कुछ अपवादों को छोड़ कर आज कल के युवा हमारे समय के युवाओं से बहुत ज्यादा समझदार और परिपक्व हैं। वे अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक हैं। वयस्क जीवन में उन्हें क्या बनना है और वे अपने गोल को पूरा करने में जी  जान लगाने से पीछे नहीं रहते। बच्चों पर कभी किसी तरह का दबाव मत डालिए। उन्हें उपदेश या सीख मत दीजिए। जो काम आप उन्हें करता हुआ देखना चाहते हैं। उन्हें आप स्वयं करिए क्योंकि बच्चे सदैव अपने माता-पिता का अनुकरण करते हैं। सदा उनसे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। मेरा तो मानना है कि बच्चे को जिस भी क्षेत्र में अपनी पहचान  बनानी है, बनाने दें, वरना, जीवन भर उनके मन में इस बात को लेकर कुंठा बनी रहेगी कि मैं जो करना चाहता था। करने नहीं दिया गया बच्चों पर अनुचित दबाव, एकतरफा प्यार और समस्याओं से पलयनवाद जैसे कारणों से अवसाद होता है और आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों के अलावा सच्चे दोस्त इससे उबरने का रास्ता बताते हैं। दुनिया में जीने के हैं सौ कारण है । उसे एक कारण से ना मिटाए पलायनवादी न बने। यह समस्या का समाधान नहीं कायरता की निशानी है।

 

 

श्री नरेन्द्र  कुमार

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगांव,  थाना+अंचल – संदेश, जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२


 


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