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शनिवार, 1 अगस्त 2015

* देखुँगी *

                                                           


                         हम दोनों यानी मैं और मेरा दोस्त राजू संध्या भ्रमण पर निकले थे। दो ही बिलकुल बिना एक-दूसरे को कुछ कहे बढ़ते जा रहे थें। मैं ही इस शान्ति को तोड़ते हुए राजू के कंधे पर हाथ रखकर बोला - क्या बात है बहादुर, बिलकुल शांत हो ? कौन सी चिन्ता आ गई, जो इतना विचार कर रहे हो ? हमसे बताओ, शायद दोनों के सोच से कोई हल निकल जाए। राजू ने कहा - क्या बताऊँ भाई, इसमें मेरा क्या कसूर है। मैं बोला - क्या हुआ? इतनी झल्लाहट क्यों महसूस कर रहे हो। राजू बोला - बात ही ऐसी है। मैं बोला - क्या बात हो गई ? राजू बोला - सुनो, प्रारम्भ से सुनाता हूँ। तुम्हें तो मालूम है, माँ मुझे बहुत मानती थी। इसका कारण भी तुम जानते ही हो। मैं अपने घर में न बड़ा हूँ और न सबसे छोटा। फिर भी एक घर में जो सबसे छोटे का फर्ज या कर्म बनता है, वह मैं करता था और आज बडे़ का भी फर्ज निभाना पड़ रहा है। खैर, इन बातों को छोड़ो। माँ का मुझे मानने के कारण कई लोगों ने मुझे सरवन (श्रवण) पुत्र का उपनाम भी दिया और कई लोग चिढ़ते भी हैं। जानते हो, एक बार की बात है, माँ देर से जागी। सूर्य उदय हो चुका था और उसने शरीर दर्द की शिकायत की। हमने उनके बदन को दबाया, फिर दिन चढ़ा, तो दवा लाकर दिया। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। मैं माँ को जल्दी जगने के लिए कहा और समय से तैयार होकर खाने के लिए कहा। हमारी माँ बहुत ज्यादा पानी इस्तेमाल करती है। साथ ही, स्वच्छता, साफ-सफाई पर बहुत ध् यान देती है। पूरे दिन हाथ भिंगोए रहेगी। सब काम निपटाने के बाद ही खाना खाएगी, जो हमें बहुत बुरा लगता था, जिससे उसका स्वास्थ्य दिनोदिन गिरता जा रहा था। ऐसा नहीं कि मेरे कहने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। वो हमारे कहे अनुसार दिनचर्चा में परिवर्तन लाने का कोशिश करने लगी। वो समय से खाये, इसके लिए मैं उससे एक दिन गुस्सा भी हुआ। उनके बगैर हम भी लाचार थे। वो भी लाचार थी। वो पढ़ना-लिखना नहीं जानती थी, पर व्यवहार-कुशल थी। फिर वो सुबह-सुबह हमारे साथ अपना नाश्ता लाई और बोली - देखूँगी, तुम्हारी पत्नी कितनी सुबह उठती है और कितना तुम्हारा बात मानती है तथा कितना नखरा झेलती है। माँ का इतना बोलना था कि मै माँ के मुँह पर अपना हाथ डाल दिया और बोला मैं शादी नहीं करूँगा, तो वो मुझे प्यार से मारते हुए बोली - शादी तो मैं तेरा करूँगी ही, मेरे बाद तुझे कौन देखेगा। मैं बोला - आपने ऐसा क्यों कहा कि मैं तेरी पत्नी को देखूँगी (खोजूँगी)। अगर मैं खुद अपनी शादी करूँगा, तब तो आप ऐसा कह सकेंगी। खैर, लेकिन आपलोग जैसा और जिससे कीजिएगा, हमें मंजूर होगा। इतना कहकर राजू चुप हो गया। मैं बोला - तो इसमें कौन-सी बड़ी बात हो गई, जो तुम सोचने लगे।

                          उसने पुनः कहा - आगे सुनो, मेरी बड़ी बहनों की शादी हो गयी। वो अपने ससुराल चली गई। इसी क्रम में दीदी और जीजाजी में तकरार हो गया। मैं तो उनके सामने अभी छोटा था। मेरी बातों पर वे ध्यान नहीं देते थे, पर जो होता था, क्या वहउचित था या अनुचित ? अपनी राय के साथ मैं माँ को सुनाता था और माँ उस पर गौर करती थी। एक बार मैं अपनी माँ के सामने ही बहन को समझाते हुए कुछ करने का सलाह दिया और कुछ ऐसा शब्द, जिसे मै यहाँ नहीं कहना चाहूँगा, नहीं बोलने को कहा। साथ ही, कुछ बातों को दिमाग से निकालने के लिए कहा, तो वो मुझ पर गरम (गुस्सा) हो गई और बोलने लगी कि तुम्हारी पत्नी आयेगी तो देखूँगी कि उसे तुम कितनी कस में रखते हो और जाने क्या-क्या बोली, उन बातों को छोड़ो।

इसी क्रम में आगे सुनो, तुम्हें तो मालूम ही है कि हमारे यहाँ का कोई भी स्त्री-पुरूष, औरत-मर्द, लड़का-लड़की मुहल्लेवालों के फालतू गप्पबाजी में सम्मिलित नहीं होता। कभी भी काम से ही कहीं जाना है, नहीं तो अपने दरवाजे पर ही रहना है, जिसकी आदत हमें भी पड़ गयी थी। इसलिए माँ, बहन या मेरा छोटा भाई कहीं चले जाते थे, तो हम तुरन्त उन्हें बुलाने चले जाते थे और कहते था कि बाबूजी/भाईया बुला रहे हैं। एक दिन मैं अपनी बहन को बुला रहा था तो मेरी चाची ने कहा - देखूँगी, तू और तेरा भाई (मेरे भाई का नाम लेकर) अपने बीबी-बच्चे पर कितना पहरा देते हो। मैं बोला - तो क्या हो गया ?

                            राजू बोला - अब सुनो, मेरी नियुक्ति के पहले मेरे बड़े भाई की शादी हो गयी थी। भाभी जी घर आ गई थी। उनके आते ही मैं कुछ दिनों के लिए दूसरी जगह चला गया था। जब मैं घर आया, तो कुछ बातें हमें पसन्द नहीं आयीं, जो मैं बताना नहीं चाहूँगा। उसके लिए बोला, तो मेरी चाची बोलीं - बबुआ, गईल माघ उन्तीस दिन बाकी। तोहरो देखूँगी, अभी थोड़े ही मैं मर रही हूँ। मुझे बहुत बुरा लगा। मैं कुछ दिनों के बाद अपनी नियुक्ति पर चला गया। जब अवकाश पर आया, तो मेरे बड़े भाई घर-परिवार से अलग हो चुके थे। फिर भी मैं उन लोगों से मिलने गया। भाभी जी को देखा, उन्होंने कंजूसी की हद कर दी थी। उनकी एक बच्ची थी, उसे भी वह ठीक से नहीं खिलाती थीं। अपना पहनावा भी ठीक से नहीं रखी थी, जिसके लिए मैं बोला, तो वह बोली - बबुआजी ! देखूँगी, देखूँगी, आपकी रानी आएगी, तो कितना साफ-सुथरा रहती है। कितनी पुजेड़ी और सती रहती है। मेरा दिमाग खराब हो गया और मैं उनके यहाँ धीरे-धीरे आना-जाना कम कर दिया। मैं बोला - ये सब तो ठीक है, पर तुम्हारी चिन्ता का विषय क्या है ? वह बोला - आज तो अत (हद) ही हो गया। अब कोई यह शब्द भर बोलता है, तो मैं बहुत असहज महसूस करता हूँ। मैं बोला - वह शब्द क्या है ? तो वह बोला - पहले आज की बात सुनो। मैं बोला - ठीक है, सुनाओ। राजू बोलने लगा।

                              आज मैं और आपकी भाभी जी बैठे थे। शादी-विवाह पर चर्चा हो रही थी। शादी कब होना चाहिए, कैसे होना चाहिए आदि-आदि। इसी पर हम दोनों अपनी शादी की चर्चा करने लगे। मेरी एक साली है। तुम्हें मालूम ही है कि उसकी स्नातक की पढाई पूरा हुए चार वर्ष हो गये हैं। वे लोग (मेरे ससुराल वाले) अब उसके लिए वर ढूँढ रहे हैं और वह भी बेल्ट सर्विस वाला। तुम्हें तो मालूम है, इस समय किसी की नौकरी लगती है, तो पाँच वर्ष के अन्दर लगभग उसकी शादी हो ही जाती है। कोई-कोई शायद ही बच जाता है, जिसके पीछे कुछ कारण होता है। मैं भी अपनी साली की शादी के लिए चार-पाँच घर-वर देखा। एक लड़का तो हमारे कहने के अनुसार राजी भी था, पर उसका उम्र मेरी साली जी की उम्र से कम हो गया। तुम्हें पता है, तुम्हें क्या सभी को पता है कि 99 प्रतिशत लोेग अपने उम्र से कम या अपने उम्र की लड़की से ही शादी करना पसन्द करते हैं। इसी चर्चा के दौरान मैंने कहा - अगर लड़का-लड़की अपनी पसन्द से शादी करते हैं, तो कोई बात नहीं। पर कोई मध्यस्थ या अभिभावक शादी तय करते हैं, तो उन्हें कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए। आपकी भाभी जी बोली - वो कुछ बातें क्या हैं ? मैं बोला - हमें यानी लडकी के अभिभावक को अपना जीवन-स्तर देखनी चााहिए और यह देखना चाहिए कि उसमें लड़की सहजता से रहेगी या नहीं। दूसरा, लडकी के योग्य ही वर ढूँढ़ना चाहिए, जिसमें कद-काठी, रूप-रंग, शिक्षा-योग्यता की समानता हो। तीसरा, अगर आप बेल्ट सर्विस वाले से शादी करना चाहते हैं, तो आपको अपनी बच्ची कि शादी उन्नीस से चैबीस वर्ष के अन्दर करनी पड़ेगी। अगर आप डाॅक्टर, वकील, इंजीनियर या नागरिक सेवा (सविल सर्विस), अधिकारी (आॅफिसर) से शादी करना चाहते हैं, तो आप इसमें इंतजार कर सकते हैं। मैंने पूछा - तुम्हारे चिन्ता की बात क्या है ? वह (राजू) बोला - आगे सुनो। सभी जानते हैं कि हमारे भारतवर्ष में लड़की के अभिभावक को तिलक या उपहार के रूप में दहेज देना पड़ता है। दहेज के अनुसार ही वर का ओहदा निश्चित होता है। मैंने कहा - आपके पिताजी को क्या सूझ रहा है, उनसे कहो कि सिविल सर्विस या आॅफिसर से शादी करे, इतना दिन से सोए थे ! राजू ने कहा - अब तो उसके भाग्य के ही ऊपर है। तुम्हें मालूम है कि हमारी भी एक बच्ची है। तुम्हारी भाभी जी तुनक-कर बोली कि देखूँगी, आपकी भी एक लड़की हो गयी है न, उसे कैसे रखते हैं, क्या पढ़ाते हैं ? उसकी शादी कैसे घर-वर से करते हैं, देखूँगी। उसी समय से यह ‘देखूँगी’ शब्द हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है।

                                 अब तुम्हीं बताओ, इसमें मेरा क्या कसूर है, जो सभी लोग हमें ही देख रहे हैं। तुम मेरा इतिहास-भूगोल जानते ही हो। अब जब कोई इस लहजे में ‘देखूँगी/देखूंँगा’ शब्द व्यवहार में लाता है, तो मुझे लगता है कि मैं क्या करूँ। इसलिए मैं लोगों से अनावश्यक बात भी नहीं करना चाहता।

                               फिर क्या ? मैं अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखते हुए बोेला - अरे मेरे चिन्तक दोस्त, इतनी-सी बात अपने दिल पर लेते रहोगे, तो कैसे जी पाओगे। यही तो दुनिया है। अपना धर्म-कर्म क्यों भूल जाते हैं। अपने कत्र्तव्य का निर्वाह नहीं करेंगे, बस दूसरे को उपदेश देते रहेंगे और उसके कर्म को याद दिलाते रहेंगे। अच्छा एक बात बता - हमलोग यहाँ से जा रहे हैं और थोड़ा बहुत धूल उड़कर हमारे कपड़े और बाल पर पड़ गया और हमें आगे भी जाना है, तो हम क्या करेंगे ? वह (राजू) बोला - हम झाड़ेंगे और चलते रहेंगे। मैं बोला - बस-बस उसी तरह इस प्रकार की बातों को सुनो, जितना जरूरत हो, करो, बाकी छोड़ो और अपने सही कर्म-पथ पर बढ़ते रहो। मैं उसका कान पकड़कर हिलाते हुए बोला - समझा क्या ? वह हामी में सिर हिलाया
और मुस्कुरा दिया।

                                                                     ***

* हम ऐसे क्यों हैं *


                 हमारा कहने का अभिप्राय है विभिन्ता , कोई काला , कोई गोरा , कोई लम्बा, कोई नाटा प्रत्येक मानव , यहाँ तक प्रत्येक जीव-जंतु में भी विभिन्ता पाई जाती है। जब ऊपरी बनावट और आंतरिक संरचना को छोड़ दे तो हम देखते हैं कि सभी के स्मृती में भी अंतर है। आप देखे होंगे आपके वर्ग में एक विधार्थी किसी पाठ को एक बार में याद कर लेता है और कोई इसके लिए बार-बार अभ्यास करता है। कोई सिर्फ एक बार के र्स्वण (सुनने) भर से याद कर लेता है।

                हम देखते हैं कोई आसानी से अपने विकाश का सफर तय करता है और किसी को उसी सफलता के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। आखिर क्यों ? इस सृष्टी में कोई भी कार्य बिना कारण का नहीं होता है। जब कोई शिशु किसी के घर में जन्म लेता है या जब शिशु किसी को अपना जन्नी स्वीकार करता है , तो बड़ा होने के बाद वह अपने जन्नी को दोश देता है। उसे ए नहीं दिया गया वो नहीं दिया गया। पर इस में किस किसका दोश है। कोई गरीब परिवार में जन्म लेता है , कोई सम्पूर्ण परिवार में , इस सभी का उत्तर हम आगे पाने का कोशिश करेंगे।

             इस सृष्टी को सुचारू रूप से चलाने के लिए विभिन्नता अतिआवश्यक है। आप अपनी तलहथी को देखें अगर आपका सभी अंगुलियाँ बराबर हो जाये तो क्या ए सभी कार्य अभी जितना कुशलता से करता है , कर सकेगा ,जबाब है नहीं।
                 पहला अंतर रंग और आकृती से है , जो वंश (जनरेशन) से नियंत्रित होता है। जो जिस प्रकार के कुल, परिवार में जन्म लेता है उसका रंग और आकृती उस कुल और परिवार से सम्बंधित होता है और उसी से नियंत्रित होता है।

                 अगर हम स्मृति की बात करें तो यह कुछ वंशानुगत (जनेटिक) तो कुछ हमारे कर्म से नियंत्रित होता है। हमें कैसा माता-पिता मिला ए हमारे कर्म पर निर्भर करता है। जो जैसा कर्म करता है उसे उसी प्रकार का अस्तन और माता-पिता प्राप्त होता है। संतान अपने कर्म से ऊँचाई को प्राप्त करता है,पर जो सत्य कर्म उन्के माता-पिता करते हैं उसका फल भी संतान को प्राप्त होता है। एक लकोक्ति है 'पुत्र बढ़े पिता के धर्मे खेती उपजे अपना कर्मे'

                  वेलगेट्स ने कहा है:- 'हम अगर गरिबी में जन्म लेते हैं तो उस में हमारा कशुर नहीं है , पर अगर हम गरिबी में मरते हैं तो ए हमारा कसुर है '। पर हमारे विचार से दोनों अवस्था में हम हीं दोशी हैं जो जैसा कर्म करेगा वैसा हीं पाएगा।

                 धर्म शास्त्र और यहाँ तक की विज्ञान भी सिद्ध करता है की जो जैसा करेगा वैसा पाएगा। आप देख सकते हैं , जब दो व्यक्ति में एक प्रातः काल में जग कर भर्मण पर जाता है और निश्चित समय पर सभी कामों (कार्यो) को करता है और दूसरा जो देर से जगता है और व्यसनों का आदि है। दोनों के आर्थिक समाजीक एमं शारीरिक स्तर में कितना अंतर है। पहला आदर का पात्र है तो दूसरा नफरत का।

                इस धरातल पर मनुष्य आया हुआ है चाहे वो जिस भूमिका में हो यथा माता-पिता , भाई-बहन, पति-पत्नी , गुरु-शिष्य , सगे-सम्बन्धी आदि अगर सभी अपनी भुमिका कर्त्वय का सही पालन कर रहें तो अच्छी बात है , वे इस जन्म से दूसरे जन्म तक सफल रहते हैं। अगर कोई दम्पति संतति पैदा कर उसका अपने सामर्थ्य के अनुसार सही देख-भाल नहीं करता है तो उसे उसका भरपाई इस जन्म से उस जन्म तक करना ही होगा। अगर कोई संतान अपना कर्त्वय सही से नहीं निभाया है , तो उसे भी अपना कर्म भोगना होगा। यह सिद्धांत हर मनुष्य पर हर रिस्ता पर यहाँ तक की जिव-जंतु पर भी लागु होता है। यहाँ कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता उसे बड़ा या छोटा उसका कर्म बनता है। आप देख सकते हैं घर , गाँव , देश , विदेश (विश्व) सभी लोगों को यह दुनियाँ नहीं जानती और नहीं मानती जो अपना कर्त्वय अपना धर्म सही तरीके से निभाते हैं, उन्हें ही लोग जानते और मानते हैं। गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है :-
                                               "कर्म प्रधान विश्व करी राखा ,
                                               जो जस करनी तासु फल चाखा "।
अतः जो जिस स्तर पर है उसे अपना कर्त्वय सही और उचित तरीके से निभाना चाहिए।
                     
                  अगर हम गरीब हैं तो उसका जिम्मेवार हम हैं क्यों की या तो हम अपना श्रम का उचित इस्तेमाल नहीं कर रहे या अपना श्रम शक्ति के लिए उचित पारिश्रमिक नहीं ले रहे या उन्हें उचित परिश्रमिक नहीं मिल रहा , अगर दोनों कर भी रहे हैं या हो भी रहा है तो भी गरीब बने हुए हैं तो इसका मतलब हम अपने धन का गलत इस्तेमाल कर रहें हैं। अगर हम ज्यादातर अस्वस्थ्य रहते हैं तो उसके लिए भी हम खुद जिम्मेवार हैं। या तो हमारा आहार-व्यवहार ठीक नहीं हैं या हम अपना नित्य कर्म सही नहीं करते हैं या हमारे पास स्वास्थ्य सम्बन्धी सही जानकारी नहीं हैं। हमारी समझ से सारी समस्या का समाधान जानकारी (ज्ञान) है और सही तथा उचित जानकारी हासिल या प्राप्त करना हमारी खुद की जिम्मेवारी है।
                   
                 अतः हम जैसा भी हैं जिस स्थिति में हैं उस स्थिति के लिए सिर्फ दूसरे को दोश नहीं दे सकते। आप खुद एक बार निसपेक्ष सोच कर देखिएगा। हम ऐसा क्यों हैं। उसका उत्तर खुद व खुद मिल जाएगा।
उत्तर मिल जाता है तो अवश्य बताइएगा तब तक के लिए नरेन्द्र को इजाजत दिजिए। धन्यवाद ।