Wikipedia

खोज नतीजे

बुधवार, 12 अगस्त 2015

* कलगीजा *

                                 कलगीजा एक ऐसा शब्द है , जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में खास कर महिलाओं  द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। एसा नहीं है कि पुरष इस शब्द का प्रयोग नहीं करतें या उनके प्रयोग पर रोक है। पुरष का बहुत कम प्रतिशत इस शब्द का इस्तेमाल करता है। एसे यह शब्द झुठ , फरेब , धुर्तई का मिला-जुला रूप है। इसके अंतर्गत अपने फायदे दूसरे को नुकसान पहुचाने , अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए धुर्तईपूर्ण किया गया कार्य जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता आते हैं। इसके अंतर्गत सामने वाला को मुर्ख समझ या वह एसा अनुक्रिया करेगा जो करने वाले के अनुरूप हो और सामने वाले को उकसाने के लिए किया जाता है।
       
                                 यहाँ हम आय दिन होने वाली करवाई की या एसे क्रिया-कलापो की चर्चा करेंगे जिससे कलगीजा को समझा जा सके। इस प्रकार के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं :-
                               
                               * एक मध्यवर्गीय परिवार जिसमे माता-पिता के साथ उन्के पुत्र-पुत्री हैं।इस परिवार में एक बड़ा लड़का है जिसकी शादी हो गया है। परिवार में सिर्फ वहीं यानि बड़ा लड़का मुख्यरूप से कमाने वाला है या यू कहे की वह अन्य सदस्यों के अपेक्षा ज्यदा आय करता है। बड़े लड़के की पत्नी जब घर के सदस्यों के लिए भोजन बनती है तो स्वयम और अपने पति के लिए अलग से कुछ न कुछ बनाती है। जिसका घर के अन्य सदस्यों को मालूम नहीं होत. इसमें दोनों की रजामंदी हो सकती है और नहीं भी। इसके साथ हीं वह जब खाने या अन्य वस्तुओं को जिसकी आवश्यकता अन्य सदस्यों को है उसे छुपा देती या समाप्त हो गया बताती है। यहाँ तक की कभी-कभी आपातकाल के लिए रखी वस्तु या खाने की समाग्री जैसे किसी को सुबह-सुबह दफ्तर या विधालय जाना है , वह शाम या दोपहर (मध्याहन) के बाद घर आएगा उसके टिफिन के लिए जो है उसे छुपा देती या समाप्त हो गया बता देना। अगर सिर्फ पत्नी करती है तो उसे उसका पति नियंत्रित करता है, इसके लिए घर में थोड़ा-बहुत नोक-झोंक भी होता है। पर जब उसके पति को सारे कारनामे मालुम होते हुए भी वह मौन रहता है। इस से मालुम होता है की इसमें उसका भी मौन स्वीकृती है। इस से स्पष्ट होता है की वह अपने आय का पूर्ण उपभोग करता है या करना चाहता है। अपने आय को अन्य लोगों पर खर्च नहीं करना चाहता , साथ में घर-परिवार के बंदिश से स्वतंत्र रहना चाहता है। इसमें लोग सफल भी हो जाते हैं। इसी कड़ी में बड़ा भाई अपने पत्नी को किसी वजह से कहीं भेज देता है। घर चलाने के लिए न तो पैसा देता है और न आवश्यक समाग्री लता तदपुरान्त घर के सदस्य उससे कहते हैं तो कहा-सुनी सुरु होता है,वह घर आना बंद कर देता है। वह कहीं और भोजन करना शुरू करता है फिर अपनी पत्नी के साथ कही और रहने लगता है। घर के सदस्यों से उसका कोई सरोकार नहीं रहता , कौन भूखा रह रहा है , किसकी शिक्षा रुक गई ,कोई बीमार है तो उसका उपचार काहा और कैसे होगा , वह दावा के लिए कहाँ से पैसा लाएगा इत्यादि सभी समस्याओं से वह मुँख मोड़ लेता है। आय दिन इस प्रकार की कलगीजा आपको देखने को मिल जाएगी।  
                                 
                                 * किसी परिवार में जब सास ननंद एक या दोनों अपनी बहु को प्रताड़ित करवाने के लिए या उठलु बनाने के लिए गिरी हुई हरकत करती हैं और उसे घर के अन्य सदस्यों के समकक्ष उजागर करती हैं , कलगीजा कहलाती है। उनके हरकत निम्न प्रकार की हो सकती है :- जैसे भोजन के दाल या सब्जी में नमक मिला देना। कोई वस्तु ज्यदा बर्बाद करती है अन्य सदस्यों को बार-बार बतलाना।  उसे हर समय अनावश्यक टोका-टोकी करते रहना। सभी के पास उसकी शिकायत करना। कभी-कभी तो लोग उसे बात सुनाने के लिए उसके काम को विगाड़ते रहते हैं। जैसे:- कपड़े में दाग लगा देना , तरतीब घर के सामान को वेतरतीब कर देना इत्यादि।

                                 * कभी-कभी महिलाएँ (लोगों को) परिवार को परेशान करने के लिए या अपनी जिद मानाने के लिए बीमारी का ढोंग करती हैं। इसमें सभी वर्ग की महिलाएँ आती हैं। इसके दो उदहारणो की चर्चा यहाँ करूँगा।

                                पहला - हमारे यहाँ एक शिक्षक रहते थे , उन्की पत्नी भी शिक्षित थी , वे कई दिनों से अपने पति को मायके जाने के लिए कह रही थी। कोई दूर से आया था , जिस से वह मिलना चाहती थी। उन्के पति के पास समय का अभाव था , जिस से वे उन्हें ले कर नहीं जा पा रहें थे। इसी दौरान वह बीमार हो गई उन्हें पेट में दर्द होने लगा।  उन्हें दिखाने के लिए रिजर्ब (आरक्षित) ब्लेरो से पास के शहर आरा ले जाया गया और वहीं उनकी उपचार हुई। कुछ घंटो के बाद वह बोलीं , "पास में हि मेरी मायके है, फलाने इतना दूर से बहुत दिनों पर आये हैं। हमारे पास अभी अपनी सवाड़ी है हीं हमसभी चलते और मिल कर पुनः घर चलते। " मास्टर साहब स्वीकृति दे दिए और मैं मुस्कुरा दिया।  वह पूछीं क्या हुआ , मैं बोलाकुछ नहीं। यह भी एक कलगीजा का ही रूप है।

                       दूसरी उदाहरण भी आपको सुनते चले - दानापुर (कैंट) शाहपुर के पास दियरा में एक गाँव है। वही की यह घटना है। वहाँ से एक औरत बार-बार रात में खाट (चारपाई) पर सुला कर उपचार के लिए शाहपुर आती थी। घर के साथ पड़ोसी भी परेशान थे। वह रात होते हीं पेट में दर्द है पुरा बदन दुःख रहा है कह कर छटपटाती और रोने लगती। फिर उसे उपचार के लिए शाहपुर बाजार लाया जाता , वो भी कंधे पर लाद कर , क्योंकी गाँव में न तो सड़क थी न कोई डॉक्टर न कोई वाहन। दो-तीन दिन के बाद वहाँ के कॉम्पाउंडर बताता है की उसके आते हि हम लोग सलाइंस चढ़ा देते हैं और उसी में पाँच-सात सदा-रंगीन सुई लगते थे उसी से वह ठीक हो जाती थी। फिर एक रोज वह खुद डॉक्टर को बताई की उसे कोई बिमारी नहीं है अनावश्यक इंजेकसन न दें सिर्फ सलाइन्स चढ़ा कर जितना हो सके झुठा सुई उसी में लगा कर पैसा एठा कीजिए। वह डॉक्टर को यह भी बताई की घर वालों एसा सलाह दीजिए की हमें गाँव से छुटकारा मिल जाए। मैं अपने पति के साथ या किसी शहर बाजार में रह सकु। हम लोगों को मालुम हुआ की उसका पति केंद्रीय कर्मचारी है और वह उसके साथ या शहर बाजार में रहना चाहती है।  उनके बात को सुन कर हमारे मुख से अन्यास ही निकल पड़ा क्या "कलगीजा " है।

                             * अनावश्यक उपहार या किसी वस्तु को किसी खास प्रयोजन के लिए देना कलगीजा का रूप ले लेता है। हमारे विचार से अनावश्यक उपहार या कोई वस्तु किसी को नहीं देना चाहिए अगर उस से हमारे घर-परिवार  में बिखराव हो सकता है। अगर आप बिखराव चाहते हैं तो फिर ठीक है। उसी का नाम कलगीजा पड़ता है। यहाँ मैं आपके सम्मुख एक उदहारण प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

                           एक परिवार जिसमें सास थोड़ा कर्कस विचार की थी। वह आपनी  हुकुम अनावश्यक रूप से चलाती रहती थी।  उनके विचार एवं कार्य से तंग आ कर उन से उनकी बहु उन से छुटकारा चाहती थी। एसे बहु का पति इतना आय नहीं करता था जिस से सब कुछ सही से चला सके। फिर भी सास के व्यवहार के कारण बहु निम्नजीवनस्तर में रह कर भी उन से छुटकारा चाहती थी। सास हर समय बहु से कलगीजा करती रहती। वह अपने पुत्र से बहु को हर समय बात सुनवाते रहती थी या मार-गाली का माहौल बना रखती थी। उसी कलगीजा में बहु शामिल होते हुए थोड़ा चावल , सास को बिना बताए मायके भेज दी। जिसके उपरांत घर में कलह हुआ और एक परिवार से से दो परिवार हो गया। जब हमने पड़ताल किया तो कारण तो यही था। उस चावल को बहु का पति ही पहुचाया था, लड़के की माँ यानी बहु की सास सास जितना चावल और जो चावल बता रही थी , वह चावल न तो उतनी थी और न उस कोटि की थी। जिसके कारण माँ-बाप से बेटा अलग हो गया। हमने अनुमान लगाया हो सकता है बहु अपने आवश्यकता के लिया और चावल किसी और को दी हो। 

                              संयुक्त परिवार में दूध में पानी मिला देना। अनावश्यक किसी को बदनाम करना।  पके-पकाए भोजन में कोई अनावश्यक वस्तु मिला देना। खाने-पिने की वस्तु खुला छोड़ कर फिर उसके दोश को किसी के उपड मढ़ कर सभी को बताना। खाने वाले सदस्यों के हिसाब से खाना कम बनाना।  इत्यादि कलगीजा का हीं रूप है।   

                             यह  एक प्रकार के छुद्र सोच का नतीजा है। जिसके माध्यम से लोग अपने हित या स्वार्थ को साधना चाहते हैं और दूसरे को नुकसान पहुचाना। जिसे हम गिड़ी हुई हरकत कह सकते हैं। हमारे विचार से इस प्रकार के हरकत एवं सोच से लोगों को दूर ही रहना चाहिए। जिस से एक साफ-सुथरी घर-परिवार समाज का  निर्माण हो सके। 

                                                   *****