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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

* मालती चाची *

                   मोनू मालती चाची के सामने पला-बढ़ा और युवा हुआ । उस पर मालती चाची का आच्छा-खासा प्रभाव भी परा । जब वह पाँच (५) वर्ष का था मालती चाची ३५-३७ वर्ष की होंगी। आज मोनू २५ वर्ष का है। 

                   मोनू बताता है जब से वह होश सम्भाला है तब से मालती चाची की दिनचर्या देख रहा है। उस में खास बदलाव नहीं है। वह सुबह उठती है घर में गाये हैं उन्हें बाहर निकलवाती उन्हें चारा डालने या डलवाने के वाद नित्य क्रिया पूर्ण करती , बच्चों के लिए नाश्ता-खाना बनाती उन्हें तैयार कर विद्यालय भेजती , बच्चों को विद्यालय भेजने के वाद चाचा जी आते तो उन्हें खाना देती और सौ बात सुनाती निकम्मा , निठ्ठला न जाने क्या-क्या कहती। सभी का कपड़े  साफ करती साथ में गाय का गोबर का उपला (गोइठा) भी बनाती। और सारे काम करते-करते डेढ़ से दो बज जाता उसके बाद स्नान आदि कर पूजा-अर्चना करने के बाद अन्न ग्रहण  करती। अगर इन सारी क्रिया-कलापो को जल्दी-जल्दी निपटाती फिर भी दिन के बारह  बज ही जाते। उनका सुध लेने वाला कोई नहीं था। 

                     आम तौर पर देखा जाता है , गाँव की मध्यवर्गीय औरतें रास्ते के बगल में बैठ कर गप्पे मारती रहती हैं , जिन्हे न तो कोई काम है न कोई चिंता बस दूसरे की शिकवा-शिकायत लिए बैठी रहती हैं। इन सब बातों से मालती चाची दूर थी , ए न तो किसी के यहाँ अनावश्यक जाती थी न कहीं बैठका लगाती थी , जो इनके उर्म ढलने के बाद भी बना रहा , इनका व्यवहार औरतों के बीच चर्चा का विषय-वस्तु भी रहती। 

                     आज वह अपनी घर की आर्थिक स्थिति एवं दिनचर्या के चलते चिरचिरा स्वभाव की हो गई हैं। पास-पड़ोस वाले बताते हैं , इनका शादी एक सुखी सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनकी शादी हुई तो गाँव-जेवार (इलाके,क्षेत्र) में शोर था। वह शोर समय के साथ शान्त हो गया। इनके पतिदेव जो पहले सरकारी कर्मचारी थे , उसे छोड़ कर वे घर आ गए और गाँव के राजनीती में रहने लगे , जिस से आमद कम खर्च ज्यादा होने लगी , बच्चें बड़े होने लगे दिनों-दिन खर्च बढ़ने लगी , घर का हालात पतली होती गई , साथ में चाची जी के स्वभाव में भी खासी परिवर्तन होती गई। 

                         चाचा जी घर से दूर एक बैठका बना रखे थे , जिसे गाँव देहात में दलान कहते हैं। वे वही रहते थे। अब जब भी चाचा जी घर आते तो चाची जी से नोक-झोक होती , पर उनमें कभी भी मार-पिट नहीं हुआ , चाची जी कभी-कभी बहुत बोलती और पूरा घर सर पर उठा लेती। उस समय चाचा जी कुछ नहीं बोलते बस मुस्का कर चुप-चाप चल देते। चाची जी का बस इतनी सी ख्वाइस थी की बच्चो का सही से पालन-पोषण हो सके पर गाँव में वो भी राजनीती में इतना आमद कहाँ की जिस से घर गिरहस्ति चल सके। समय बीतता गया बच्चे बड़े हो गए , बच्चियाँ शादी योग्य हो गई। चाची जी अब बच्चियों के शादी के लिए घर-वर ढूंढने के लिए चाचा जी पर दबाव बनाने लगी। वह दूसरे लोगों और रिश्तेदारों के मदद से विभिन्न उद्यापन कर घर चलाती थी। ऐसे वह पहले देखा भी था और लोगों से सुना भी था , चाची जी बहुत कम बोलती थी पर बच्चें-बच्चियों के बड़ा होने के साथ वे गाली भी निकालने लगी थी , जिसका अपेक्षा उन से नहीं था। 

                        चाचा जी अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार घर-वर ढूंढ कर , बच्चियों की शादी कर दिए , जिसके लिए उन्होंने कर्ज भी लिया और जमीन भी बेचे। लड़कियाँ अपने ससुराल चली गई। एक रोज चाची जी अपने दरवाजे पर बिलकुल शांत बैठी थी। मोनू उनके पास गया और उनके बगल में बैठ गया , वह सम्भलती हुई उसके लिए पीढ़ा ले आई। उन दोनों में बात होने लगी फिर मोनू ने चाची जी से पूछा , चाची एक बात पुछे बुरा तो नहीं मानोगी , चाची बोली पूछो बुरा क्यों मानूंगी वो भी तुम्हारी बात को जो कभी अनावश्यक बोलता नहीं तो अनावश्यक कुछ पूछेगा नहीं। उसने पूछा "आप अपने जवान लड़कियों को  इतनी गन्दी-गन्दी गली क्यों निकालती थी ?" उनका आँख भर आया वह आँखो के आशु को पोछती हुई बोली "बेटा कोई माता-पिता अपने बच्चों को डाँटना भी नहीं चाहते पर क्या करें गाली भी निकालनी पड़ती है , कोई बड़े कुल या जात में सिर्फ जन्म लेने से बड़ा थोड़े ही हो जाता है उसे उसके अनुसार आचरण एवं कर्त्वय भी निभानी पड़ती है और अपना कर्म करनी परती है। तुम नहीं समझोगे गरीब आदमी चाण्डाल के बराबर होता है। ए जो पापी छुधा (पेट) है , इसके आगे बड़े-बड़े लोग घुटने टेक देते हैं , यह विभिन्न पाप और कुकर्म के लिए प्रोत्साहित करती है और हमें इसी का डर लगी रहती थी , कहीं हमारे बच्चे भी एसा न कर दे , जिस से वंश कुल में दाग लग जाए और हम कहीं भी मुख दिखाने लाईक न रह पाए , हमारा मानना है , दाग ले कर जीने से मरना भला है। मैं तो अपने सामर्थ के अनुसार इनकी आवश्कयता पूरी करती हीं थी पर मैं गाली-गलौज या ताना मार कर इनके विचार और संगती को नियंत्रण करना चाहती थी। जब ए खुद गार्जियन हो जाएंगे तो सब समझ जाएंगे। " चाची अपने दोनों होठो को दबाते हुए अपनी भाऊकता छिपाने की कोशिश करने लगीं।

                      समय अपने चाल से चलता रहा , चाची जी के लड़के कमाने लगे पर चाची जी के व्यतिगत जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया। उनका पहला लड़का उनकी जरुरतो और अरमानों से कोई खास सरोकार नहीं रखता पर दूसरे का उनके साथ जुड़ाव बना रहा , वह उनहे खुश रखने का प्रयत्न करता और चाची जी पहले से ज्यादा खुश भी रहती। चाची जी के स्वभाव में एक आदत और थी वह धार्मिक प्रवृति की महिला थी , धर्म में उनका पूर्ण आस्था एवं विश्वास था वह अपने दरवाजे पर आए किसी भी जरूरतमंद या साधु-सन्यासी को रुष्ट नहीं करती , अपनी सामर्थय के अनुसार उन्हें दान-दक्षिणा और जरूरत की सामग्री उन्हें देती। इसी बीच चाचा जी बीमार रहने लगे, उपड़ से मध सेवन से बाज नहीं आते। उनके दावा के लिए अच्छा-खासा नगद राशि व्यय हो रही थी। उनके सेवा में चाची जी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती पर वे (चाचा जी) भी आदत से मजबूर थे और अपनी मनमर्जी करते। दूसरा लड़का जो चाची जी से जुड़ा हुआ था वहीं सारी खर्च का निर्वाहन करता था। चाचा जी बहुत सरे कर्ज भी ले रखे थे , जिसका देनदारी भी चुकाना पड़ता था।  एक रोज चाची जी , चाचा जी का किया हुआ पोटी साफ कर रही थी और उन्हें कोस भी रही थी। जवानी में कुछ कमाया नहीं , एक लड़का कमा कर दे रहा तो उसकी सारी कमाई ए ही खा जा रहें हैं , पूरा जीवन परिवार को पेर कर छोड़ दिए , पता नहीं इनसे बच्चों को कब छुटकारा मिलेगी। उस समय ऐसा नहीं लग रहा था की चाचा जी ज्यादा दिन इस मृतलोक में निवास कर सकेंगे। मोनू उसी समय चाची जी से पूछ दिया चाची जी आप चाचा जी को इतना कोस रही हैं , न जाने क्या-क्या कह रही हो , अगर चाचा जी इस लोक से चले गए तो आप कैसे रोइएगा। एसे इस टोला में विधवाओं का संख्या कम नहीं है। चाची जी बोली भाग मुदईया मैं क्यों रोउ। दूसरे दिन मोनू चाची जी के पास गया उनके चरण स्पर्श कर कहा मैं शहर काम करने जा रहा हूँ , मेरी नौकरी पक्की हो गई है। चाची जी बोली जाओ खुश रहो और मन से काम करना और मस्त रहना।

                      आज दिनांक  १०/१२/२००८ को  मोनू दोपहर बस से उतरा और मिठाई का डब्बा लिए मालती चाची के दरवाजे पर पहुँचा तो देख रहा है , वहाँ लोगों का हुजूम लगा हुआ है , सभी कुछ-न-कुछ चर्चा कर रहें हैं ,  कोई कह रहा है किसे जाना  था और कौन चला गया , सक्षात देवी थी , बेचारी सुख का मर्म नहीं जानी ,मर्द तो कमाया नहीं , बड़ा बेटा भी साथ नहीं दिया , यह इस घर की लक्ष्मी थी , यह अपने आप भूखा रह आए हुए आगंतुको , पांडा-पुजारी , भूखे को भोजन करा देती थी। मोनू भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा और आँगन में गया तो देखा मालती चाची लेटी मुस्का रही हैं और अभी बोलने वाली है। वह उनके पैर पकड़ कर बैठ गया , वह जैसे ही बैठा उसे लगा चाची जी उसके कंधे  हाथ रख कह रही हैं : देखा , अब तुम क्यों रो रहे हो ए तो शाश्वत सत्य है। मैं तुम लोगो के दिल में हूँ ,क्या यह कम है। मोनू रोते हुए हस दिया। अब उसके जेहन में उनके द्वारा कही गई सारी बातें कौंधने लगी जो शायद पहुँचा हुआ साधु-संत और ज्ञानी भी नहीं बता सकता। सचमुच मालती चाची एक कर्म योगिनी थी। उन्हें मेरा सत-सत प्रणाम।