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मंगलवार, 21 जुलाई 2015

* सुहागरात *

                                                                  


             ‘सुहागरात’ - कोई इसे ‘हनीमून’, तो कोई ‘फस्र्ट नाईट’, तो कोई ‘दो जिस्म और जान की रात, तो कोई ‘मिलन की रात’ कहते हैं। इसकी चर्चा मात्र से लोगों के चेहरों पर गजब की लाली छा जाती है। अच्छे-अच्छे लोग भी शरमा जाते हैं। किसी ने कहा है - ‘हमने मोमबत्ती क्या अगरबत्ती को भी जलते देखा है, सुहागरात को लड़की क्या लड़के को भी शर्माते देखा है।’

              सभी के कहने का अपना तरीका, लफ्ज़ और भाषा है। मगर सभी वही भाव व्यक्त करते हैं या करना चाहते हैं, जो दूसरा करता है। इस शब्द के उच्चारण मात्र से लोगों के तन-मन में सिहरन उत्पन्न हो जाती है। शादी-शुदा या कुंवारे, सभी इसके किस्से-कहानियों में रूचि लेते हैं। कोई खुलकर, तो कोई छिपकर। सभी इसमें सलाह देते हुए भी नजर आते हैं, उनके पास सही ज्ञान हो या न हो। कुछ लोग अनेकों भ्रम-जाल में फँस जाते हैं। सभी व्यक्ति, चाहे लड़का हो या लड़की, इसके बारे में ज्ञान अर्जित करना चाहते हैं। पर उन्हें न सही सलाह देने वाला और न ही सही मार्गदर्शन देने वाला मिलता है। जो हाईप्रोफाईल लोग हैं, वे इसके ज्ञान के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल भी करते हैं, पर सभी को सभी जानकारियाँ और सभी स्तर की जानकारियाँ नहीं मिल पाती। आपने देखा होगा, जब-जब कोई लड़का या लड़की की शादी हुई है या होने वाली है और वह अगर अपने बराबर वाले साथी/सहेली से बात करता/करती है, तो उनसे कम उम्र वाले भी चोरी-चुपके बातें सुनने की कोशिश करते हैं तथा कोई-कोई बड़े भी इसमें सम्मिलित हो जाते हैं। सभी इसके बारे में बात करते हैं, पर इस पर खुलेआम चर्चा से परहेज करते हैं। खीर सभी खाना चाहते हैं, पर बनाना (पकाना) कोई नहीं चाहता। हमारे यहाँ रतिक्रीड़ा से सम्बन्धित अनेक साहित्य उपलब्ध् ा हैं। कुछ उचित हैं, तो कुछ अनुचित भी। सभी तरह के साहित्य को पढ़ने का इन्सान का एक समय (उम्र) होता है। हर ज्ञान को प्राप्त करने की अलग-अलग उम्र होती है। आपने यह तो नहीं देख होगा कि नर्सरी में त्रिकोणमिति का सिद्धान्त बताया जाता हो।

              यह शब्द ऐसा है, जिसके बारे में जितना लिखा जाय, उतना ही कम है। इसकी चर्चा करने पर इसकी अनेक परतें खुलती चली जाती हैं। हमारे नवयुवक अनेक भ्रांतियों से ग्रसित हैं या होते जा रहे हैं। बाजार में बहुत सारे यौन सम्बन्धित अश्लील सामग्री उपलब्ध हैं, जो हमारे नवयुवक वर्ग को दिग्भ्रमित कर रही हैं और इनकी शक्ति को कम कर रही हैं, जिससे उनके साथ राष्ट्र को भी हानि उठानी पड़ रही है।

             हमारे यहाँ बहुत से शास्त्रों में इसके बारे मे विशेष चर्चा मिलती है। इसे पावन पर्व की तरह मनाया जाता है। इसे खुशी, शांति और खुशहाली से जोड़कर देखा जाता है। आप उदाहरण के तौर पर शिव विवाह को मान सकते हैं। वर्तमान समय और पुराने समय में बहुत अंतर देखने को मिल रहा है। पहले जब साधन-संसाधन की कमी थी, तो बड़ी मुश्किल से शादी के जोड़े में बंधने के पहले लोग मिल पाते थे। कुछ लोग ही भाग्यशाली या साधन-सम्पन्न होते थे, जो शादी से पहले अपने साथी को देख पाते थे या बात कर पाते थे।       वर्तमान में तो यह आम बात हो गई है। इन्टरनेट (ई-मेल) ने इसमें क्रान्ति/तूफान ला दी है। आज तो बहुत सारे ऐसे जोड़े हैं, जो शादी के पहले ही एक-दूसरे के साथ सब कुछ कर चुके होते हैं। ये लोग अपने को एडभांस, हाई प्रोफाईल मानते हैं। पर ये सिर्फ कहने की बात है। ऐसा देखा गया है कि इनका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा है। ये भी कई भ्रम और भ्रांतियो से ग्रसित रहते हैं। मैं यहाँ किसी का नाम लेकर विवाद में फंसना नहीं चाहता।

           यह रात हर तबके, हर स्तर, हर सभ्यता-संस्कृति के लिए एक जैसी ही होती है, पर उनका तरीका और अंदाज अलग-अलग होता है। हमारे समझ से जो जिस स्तर का है, उसे उसी स्तर से मनाना चाहिए, नहीं तो वही हाल होगा, जो आपने कहीं सुना होगा - एक कौवा हंस की चाल चलने चला और अपना चाल ही भुला बैठा। स्तर से हमारा अभिप्राय हमारे रीति-रिवाज, सभ्यता-संस्कृति और मुख्य रूप से अर्थ व्यय करने की क्षमता से है। क्षमता से ज्यादा कुछ भी नहीं करना चाहिए।

           यहाँ हम कुछ लोगों के दाम्पत्य जीवन के शुरूआत की कहानियों की चर्चा करने के पहले कुछ आम लोगों की यौन समस्या की चर्चा करेंगे, जिसे लोग शादी के बाद या शादी के पहले अनुभव करते है और उसके इलाज के लिए नीम-हकीमों के पास भटकते रहते हैं। आप अनेक पुस्तक और पेपर में ऐसे इश्तेहार देख सकते हैं। अंग मोटा करे, लम्बा करे, अंग सख्त करे, वक्ष/स्तन सुडौल करे इत्यादि-इत्यादि। लोगों द्वारा आम प्रश्न, जो आए दिन ‘डाॅ० की सलाह’ काॅलम में छपते रहते हैं और कुछ लोग उस प्रश्न को लेकर अंदर-ही-अंदर घुटते रहते है। ये प्रश्न इस प्रकार के होते हैं :-

* मैं कद में छोटा/छोटी हूँ, मेरा जीवन साथी कद में बड़ा/बड़ी है, क्या हमारा दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा?

* मेरे लिंग की लम्बाई लगता है कि छोटा है। क्या मैं शादी करूँ ?

* हमारे जीवन साथी का शरीर ढीला है।

* हमने शादी के पहले किसी लड़का/लड़की से शरीर सम्बन्ध बनाया था। इसका प्रभाव हमारे शादी-शुदा जीवन पर तो नहीं पड़ेगा।

* हमें स्वप्नदोष आता है और हमारा लिंग एक तरफ झुक गया है।

* हमने शादी के पहले हस्तमैथुन किया था। इसका प्रभाव हमारे विवाहित जीवन पर तो नहीं पड़ेगा।

* हमारा शारीरिक सम्बन्ध अपने से बड़ी उम्र के पुरूष/महिला के साथ रह चुका है, इसका प्रभाव कहीं हमारे यौन जीवन पर तो नहीं पड़ेगा।

* हमें एक दिन या एक सप्ताह में कितनी बार शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहिए,

* जिससे हमारे स्वास्थ्य पर असर न पड़े ?

* हमें हमारे साथी से सन्तुष्टि नहीं मिलता, हम क्या करें ? हमारा साथी हमें यौन सम्बन्ध मे सहयोग नहीं करता/करती, हमें क्या करना चाहिए ?

* हमारा साथी हममें रूचि नहीं रखता/रखती, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए,जिससे उसकी रूचि हममें उत्पन्न हो ?

*  हमारा साथी हमसे जबर्दस्ती हमारी इच्छा नहीं रहने पर भी यौन सम्बन्ध बनानाचाहता/चाहती है।

* हमारा साथी अकुदरती यौन संबंध बनाना चाहता/चाहती है।

इत्यादि-इत्यादि...। इस प्रकार के अनेकों प्रश्न मिल जाएँगे, जिसका उत्तर लोग जानना चाहते हैं।

            यहाँ हम आपको बता दें कि इन सारे प्रश्नों का उत्तर हमारे साहित्य में, धार्मिक पुस्तकों में है, पर उसका सही तरीके से कोई अध्ययन नहीं करता और शास्त्रों के अनुसार आचरण नहीं करता। ऊपर जितने भी प्रश्न पूछे गए हैं या इस प्रकार के जितने भी प्रश्न मन में उठते हैं, सारे का उपचार हमारे अन्दर ही है। बस उसे ढूँढ़ना हमारी इच्छा-शक्ति के ऊपर है। यौन सम्बन्ध् िात ज्यादातर भ्रांतियाँ मस्तिष्क और मन से जुड़ी हुई हैं। जब हम इन भ्रांतियों के विषय में अच्छी तरह समझ जायेंगे, तब हम किसी अनचाहे भ्रम रोग से ग्रसित नहीं होंगे। अब हम रोगों के सैद्धान्तिक ईलाज की चर्चा करते चलते हैं।

           जब कोई भी लड़का/लड़की के लिए जीवन-साथी खोजा जाय या शादी कराया जाय तो उससे शादी करने के पहले दोनों की तुलना कर लेनी चाहिए, जो मुख्य रूप से हैं - रंग, रूप, कद, योग्यता, दोनों की पसन्द-नापसन्द, महत्त्वाकांक्षा, आर्थिक और सामाजिक जीवन-स्तर। अगर इन सभी को सही तौर-तरीके से मिला लिया जाय, तो हमारे मत से बहुत कम ही समस्या उत्पन्न होगी।

           जो लोग ये सोचते हैं कि उनका जीवन साथी उनसे शारीरिक कद में बड़ा है, तो हमारा सम्बन्ध कैसे बनेगा, तो उनकी सोच सही नहीं है। कुदरत ने सभी को उसके हिसाब से ही अंग प्रदान किया है, जिससे उन्हें परेशानी न हो। अगर दोनों, स्त्री और पुरूष, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति अर्थात् मन से एक-दूसरे को चाहते हैं, तो आकार कोई ज्यादा मायने नहीं रखता। वे एक-दूसरे के अनुकूल आसान और सही स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। आपको बताते चलें कि जिस पुरूष का अंग 3 इंच से ज्यादा लम्बा है, वह यौन सुख का आनन्द लेने और देने, दोनों में पूर्ण सक्षम है। स्त्री के यौन अंग की बनावट इस प्रकार होती है कि उसके अग्र भाग यानी ऊपरी हिस्सा ऊपर से तीर्न इंच गहराई तक की बनावट में ही यौन सुख, आनन्द या तृप्ति वाला भाग होता है। आप पशुओं में यह स्थिति देख सकते हैं। क्या गाय और सांढ़ का शारीरिक आकार ज्यादा मायने रखता है। जवाब है - नहीं। मुख्य वजह है, इंसान में सोचने, समझने और परेशानी हल करने की क्षमता है, इसलिए वह शरीर के आकार-प्रकार और बनावट पर विशेष ध्यान देता है। कई लोग कहते हैं, उन्हें मैथुन में आनन्द नहीं आता, तो आपको हम यहाँ एक उदाहरण देते चलते हैं। लेकिन उसके पहले आपको बता दें कि मैथुन तो अन्तिम क्रिया है। आप कई खेल देखे होंगे, जैसे - फुटबाॅल। क्या एक ही बार में गोल मार दिया जाता है या गोल हो जाता है। जवाब है - नहीं, गोल होने के पहले गेंद कभी इस तरफ, तो कभी उस तरफ जाता है। दोनों तरफ के खिलाड़ी लगातार कोशिश करते हैं और उनके उच्च संघर्ष से दर्शकों को आनन्द प्राप्त होता है। जब दोनों तरफ के खिलाड़ी अपना उच्च प्रदर्शन करते हैं, तो हार-जीत या लक्ष्य प्राप्ति के बाद दोनों की प्रशंसा की जाती है, उसी प्रकार यौन सबंध भी एक क्रीड़ा है, इसे कामक्रीड़ा या रतिक्रीड़ा कहा जाता है। इस क्रीड़ा में खिलाड़ी, दर्शक और रेफरी संयुक्त रूप से स्त्री-पुरूष की जोड़ी ही रहती है। दर्शक उनका मन, तो हाव-भाव रेफरी का काम करता है और लम्बी क्रीड़ा के बाद जब लक्ष्य की प्राप्ति होती है, तो दोनों को संयुक्त रूप से खुशी और आनन्द की प्राप्ति होती है।

            वे लोग, जो इसे स्वास्थ्य से जोड़कर देखते हैं और पूछते है कि काम-क्रीड़ा या मैथुन साल, महीना, सप्ताह और दिन में कितनी बार करनी चाहिए, तो आपको बता दें कि इसके लिए कोई सख्त नियम नहीं है। लेकिन आपने सुना होगा, अति सर्वत्र वर्जते, अर्थात् अति सभी जगह मना है। आपने देखा होगा, कई लोग, जो गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वे जीवन का कुछ समय तीर्थ-भ्रमण में लगाते हैं। कोई वर्ष और महीने के कुछ निश्चित तिथि को पूजा-अर्चना करते हैं, तो कोई प्रतिदिन। कई तो ऐसे भी हैं, जो पूरे दिन लगे रहते हैं। पर उन्हें न सुख मिलता है, न शांति। पर एक वो व्यक्ति भी होता है, जो उम्र के कुछ पल या वर्ष या माह या कुछ दिन में ही सन्तुष्टि महसूस करता है। यह तो अपने शांति और मन की बात है। यह सिर्फ शारीरिक बल से नहीं होता है। आप जीव जगत में बकरी, शेर तथा हाथी के मैथुन जीवन की तुलना कर सकते हैं। एक बकरी है, जो साल में तीन बार इच्छा जाहिर करती है, पर शेर और हाथी तो लम्बे समय तक यूं ही मस्त रहते हैं।

             हस्तमैथुन, स्वप्नदोष, असमय यौन सम्बन्ध - ये सभी गलत संगत, अश्लील साहित्य, अनियंत्रित जीवन-शैली के द्वारा होते हैं। इनसे उचित मार्गदर्शन द्वारा बचा जा सकता है, जैसे - गलत संगत, अश्लील साहित्य से दूर रहें। नियंत्रित जीवन यानी खान-पान पर उचित ध्यान दें। किसी प्रकार का व्यसन न करें। जिस खाना या तरल पदार्थ से इस क्रिया में वृद्धि हो रही है, उसकी पहचान करें और छोड़ें। सोते समय हाथ-पैर ठंडे जल से धोएँ, ज्यादा-से-ज्यादा स्वच्छ पानी का सेवन करें, व्यायाम करें, एकांत में अकेला न रहें। इससे सम्बन्धित किसी प्रकार का ख्याल अच्छा हो या बुरा, बार-बार अपने मन मस्तिष्क में न लाएँ। अपने खाली समय को रचनात्मक कार्याें, जैसे - पंेटिंग, कढ़ाई, बुनाई, लिखाई इत्यादि में लगाएँ। हमेशा अपने विचार को ऊँचा रखें। हो सके तो सादा भोजन का सेवन करें, जो संतुलित हो और जो आपके शरीर को सूट करता हो। इसके बाद डाॅक्टर से उचित सलाह लें।

अगर आप किसी कारणवश यौन-संबंध किसी से बना चुके हैं और ग्लानि महसूस कर रहे हैं या किसी अनहोनी से डर रहे हैं, तो इसे एक हादसा समझकर बिलकुल भूल जाएँ। अपने सपने में भी न सोचें कि आपने ऐसा किया था। न किसी से इसकी चर्चा करें, चाहे वो व्यक्ति आपके कितने भी करीबी क्यों न हों। इस बात का स्त्री वर्ग को पूर्णतया ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि हमारा समाज पुरूष प्रधान है, ज्यादातर स्त्री के मामले में ही बातें बनायी जाती हैं। उन्हें यौन संबंध से होने वाले परिणाम से पूर्णतया निपट लेना चाहिए, जैसे - गर्भधान या यौन अंग द्वारा होने वाली बीमारियाँ इत्यादि।

              अब हम यहाँ आपके समक्ष कुछ कहानियाँ प्रस्तुत करेंगे, जो हमारे पड़ताल के बाद सामने आई। हम सभी जानते हैं कि हमारा समाज तीन वर्गों में विभक्त है:- (1) निम्न वर्ग, (2) मध्यम वर्ग, (3) उच्च वर्ग पर इनके बीच में दो वर्ग और भी हैं, जो विकास का द्योतक हैं। इनमें से पहला वर्ग, जो निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच में तथा दूसरा वर्ग, मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के बीच में है। इन दोनों वर्गों का जीवन बड़ा संघर्षमय होता है। ऐसे मध्यम वर्ग को समाज का रीढ़ माना जाता है। ज्यादातर लोग, जैसे - डाॅक्टर, प्रशासक, नेता, अभिनेता, लेखक, वकील और जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं अर्थात् समाजसेवी इसी वर्ग से आते हैं।

              हमारे कुछ साथी हैं - संतोष, अमरेन्द्र, अमित और रौशन, इनकी तो गजब की कहानी है। इन चारों की शादी बड़े धूम-धाम से हुई। ये सभी सरकारी सेवा में हैं। ये अपनी पत्नियों को पहले देख चुके थे। इनकी पत्नियाँ अपेक्षाकृत शारीरिक रूप से पतली और सुन्दर थीं। पर इनकी पत्नियों ने पता नहीं पहले से खाना-पीना छोड़ रखा था या ज्यादा ख्यालों में खोई रहती थीं। इसलिए उस दिन बीमार पड़ गईं, कुछ को तो तेज बुखार भी था। फिर क्या था, घर वाले क्या करते, इनको सेवा में लगा दिया। ये बेचारे उनको दवा खिलाते और ग्लास से पानी पिलाते हुए अपने जीवन की शुरूआत की। इनकी ज्यादा बड़ी कहानी नहीं थी। ये उनके बगल में सोते थे और पूछते रहते थे कि अब कैसा अनुभव कर रही हो, उनके सर और शरीर के ताप को अपने हाथ से अनुभव करते हुए, धड़कन और नब्ज टटोलते हुए। कोई उसी दिन, तो कोई दूसरे दिन एक-दूसरे के जीवन में उतर गए।

              जब हमने जानना चाहा कि ये बीमार क्यों हो गई, तो हमने महसूस किया कि ये उतनी बीमार नहीं थीं, जितना घरवालों ने तथा उन्होंने हमारे दोस्तों को अनुभव कराया। एक तो शादी के तीन दिन पहले से भोजन कम कर दी थीं और ग्लूकोज पी कर रह रही थीं। इन सभी की शादी मई-जून में हुई थी, जो बहुत ही गर्म माह होता है। इन्होंने मायके से ससुराल आने के रास्ते में बहुत कम यानी न के बराबर खाया-पिया। हमें इनकी सोची-समझी रणनीति लगी, ये हमें उच्च कोटि का नहीं लगा। हमारे बगल के एक राधेश्याम भाई हैं। इनके घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। वे पहले घर से बाहर यानी दालान पर, जिसे दुआर भी कहते हैं, वहाँ पर सोते थे, क्योंकि इनके घर में कमरों की संख्या कम थी। स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने शादी की। पहले वे घरवालों को शादी करने के लिए मना करते रहे, पर जब शादी हुई, तो ऐसा किए, जो बहुत कम लोग करते होंगे या किए होंगे। उनके एक जीजा जी थे। उम्र में बराबर, पर रिश्ते में छोटे थे। उनकी जिम्मेवारी थी, दोनों पति-पत्नी को मिलाने की। पर उनका जरूरत ही नहीं पड़ी। हुआ ऐसा कि हमने उनके दोस्तों को बात  करते हुए सुना कि - घर में जो पूजा-पाठ होता है, वो दिन में सम्पन्न हो गया। पता नहीं
कैसे, वे बेचारे उसी समय बीमार पड़ गए और उनके सिर में दर्द हो गया। अब क्या किया जाए ? उन्हें दवा लाकर दिया गया। सिर में तेल मालिश कर आराम करने के लिए उसी कमरे में, जहाँ हमारी भाभी जी थीं, भेज दिया गया। लेकिन भाभी जी को उस समय दूसरे कमरे में भेज दिया गया। शाम को राधेश्याम भाई खाना खाए और तैयार होकर उसी कमरे में आराम करने लगे। तब भाभी जी को उनकी माँ और चाची जी ने एक ग्लास दूध लेकर भेजा। साथ में तेल भी, जो उनके सिर और बदन पर लगाया जा सके। दोनों बोली - सिर्फ दूध पिला दो और थोड़ा शरीर दबा देना। हमें आशा है कि यह दम्पत्ति एक-दूसरे को दूध् पिलाते हुए अपने नये जीवन की शुरूआत किये होंगे। भाभी जी बदन दबा रही होंगी और भाई जी मना कर रहे होंगे और अपने
पास बिठा लिए होंगे या लिटा लिए होंगे, ऐसा मेरा अनुमान है।
                अब आप को पंकज, सुभाष और रोहित की कहानी सुना रहा हॅूँ। तीनों को लवर ब्वाय कहा जाता था। हमें आशा है, आप समझ गए होंगे क्यों। इनका नाम चर्चा में आ गया था। ये सब जानते थे, पर उम्र में पूर्ण प्रौढ़ नहीं थे। इनकी शादी हुई, इनकी पत्नियाँ घर में आ गईं। किसी ने उन्हें कह दिया कि आज घर में नहीं जाना है, तो ये खा-पीकर छत पर सो गए। आधी रात में उनके रिश्तेदारों ने उन्हें घर में भेजा। जब वे घर में गए, तो देख रहे हैं कि उनकी पत्नियाँ सो रही हैं। एक तो आधे बिस्तर पर सो रही थी, पर दूसरी दोनों पत्नियाँ अपने शरीर के अनुसार ज्यादा जगह में फैलकर यानी बीच में अपना दोनों हाथ फैलाकर सो रही थीं।वह (सुभाष) भी अराम से आधे पर सो गया। उसकी भाभी सुबह 4 बजे दरवाजा खटखटा दीं। जनाब उठकर चले गए। अगले दिन उसी तरह बगल में सो गये, पर दोनों एक-दूसरे पर अपना हाथ रखते हुए मूक प्राणी की तरह एक-दूसरे में उतर गए। दूसरे जनाब ने प्रकाश को कम करते हुए अपना मुँह पत्नी के मुँह की तरफ करते हुए उसके बाजू पर अपना सिर रखते हुए सोने का उपक्रम करने लगे। पत्नी ने भी अपना मुख उसकी तरफ कर
दिया, फिर उसने अपना एक हाथ उसके बदन पर रख दिया। फिर पत्नी ने भी अपना हाथ उसके शरीर पर रख दिया। फिर क्या था, दोनों की सांसें तेज और गर्म होती गई और दोनों एक-दूसरे में समाहित हो गए। मूक रहकर ही अपने जीवन की शुरूआत की। तीसरे के साथ अजब ही बात हुई। वह (पंकज) बिना स्पर्श किए हुए, पत्नी के शरीर और बाजू के बीच में जो जगह खाली था, उसमें सिर रखकर सो गया। उसकी पत्नी, जो सोने का उपक्रम कर रही थी, उसके मुख पर अपना हाथ रख दी, तो उसने हटा दिया। फिर वह अपना हाथ दुबारा रख दी, तो उसने फिर हटा दिया। तो उधर से आवाज आई - नाराज हैं। पंकज बोला - नहीं, तो वो बोली - फिर ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या किसी और को चाहते हैं ? पंकज बोला - नहीं ऐसी बात नहीं है, फिर दोनों कसमे-वादे के साथ जीवन का शुभारम्भ किए।

             तो ऐसा भी होता है। पहल किसी को तो करनी ही पड़ेगी। अगर दोनों तरफ से मीठी बात और मुस्कान के साथ पहल हो, तो जीवन का आनन्द ही कुछ और हो।

             एक गोपीनाथ है। इनकी जुबानी इनकी कहानी भी सुनाता हूँ। ये शादी के पहले अपनी होने वाली पत्नी के हाथों से नाश्ता कर चुके थे। उस समय शादी की कोई चर्चा नहीं थी। जब शादी की बात चली और शादी पक्की हो गई, तो इनका मोबाईल से बात का सिलसिला चलता रहा। करीब एक वर्ष के बाद इनकी शादी हुई। शादी हुई, पत्नी घर आई, तो उन्हें घर में ले जाया गया तथा बाद में सभी लोग घर खाली कर चले गये। उनकी पत्नी जी बिस्तर पर बैठी थीं। वे दरवाजा बंद कर दिए और बिस्तर पर बैठ कर बोले - तअ्..., तो पत्नी जी अपना भौं हिलाते हुए बोली - तअ्... क्या ? फिर दोनों हंस दिए और लाईट आॅफ कर दिया।

                 यह कहानी मनीष गुप्ता की है। इनका परिवार मध्य और उच्च श्रेणी परिवार के बीच वाली श्रेणी में रखा जा सकता है। इनका शादी बड़े धूम-धाम से हुई। घर पर रिसेप्शन की पर्याप्त व्यवस्था थी। इनके कमरे को बखुबी सजाया गया था। इन्हें पूर्ण सुविधा प्रदान की गई थी। मनीष बताता है कि जब वह कमरे में गया, तो वो पलंग यानी जिस पर बिस्तर लगाया हुआ था, उस पर बैठी हुई थी। हम भी बगल में बैठ गये। और दोनों हाथ से उनके घूंघट को थोड़ा ऊपर करते हुए, उनके हाथ कि अंगुली को पकड़ा। अपने पाॅकेट से एक डिबिया निकाल कर, उसमें से अँगूठी निकाल कर उन्हें पहनाते हुए हमने कहा - यह तुच्छ भेंट मेरी तरफ से, तो उन्होंने भी मुस्काते हुए कहा - हम भी आपके लिए कुछ लाए हैं। हमने कहा - आपका सबकुछ तो मेरे लिए ही है। तो वह बोली - वो तो है, आपका भी सब कुछ मेरा है, तो मैं मुस्कुरा दिया। वह पलंग से उतरने लगी, तो हमने कहा - क्या बात है, कोई परेशानी है क्या तो वह बोली - जी नहीं, बस एक मिनट और वह अपनी साइड बैग ले आई और उसमें से एक डिबिया निकाली। गोड़ लागकर (पैर छूकर) हमारे हाथ में थमा दी। हमने खोला तो देखा, उसमें लाल धागे में दिल के आकार में महावीर जी की आकृति बनी हुई था। हमने कहा - किसने बनवाया। वह बोली - हमने पापा जी से बनवाया। हमने कहा - क्या आप पापाजी से बोलीं कि हमें उन्हें देने के लिए गिफ्ट चाहिए। वह बोली - धत् ! कोई लडकी ऐसा बोल सकती है क्या, हमने कहा - हमें अपने पसन्द का एक लाॅकेट चाहिए। पिताजी बोले जा के फलाने दुकान से ले लेना और हमें वजन और दाम बता देना। हम जाकर ले आई। हमने (पंकज ने) कहा - तो ये बात है। फिर हमने कहा - हम आपके कमरे में आये हैं, आपका क्या इरादा है ? वह बोली - इरादा तो हमारा नेक है, पर कमरा तो आपका ही है। घर आपका है, तो कमरा भी आपका हुआ। मैं बोला - कुछ देर पहले आपने और हमने भी कहा था कि हम दोनों का सबकुछ एक-दूसरे के लिए है। फिर ये बीच में आपका-आपका कहाँ से आ गया। अब ये कमरा, ये घर, इस घर का सुख-दुःख, न मेरा न आपका, बल्कि ये तो हमारा हो गया। वह बोली - आपकी बात सही है। वह फिर पलंग से उतरी, वहीं मिठाई रखी हुई थी, एक क्वार्टर प्लेट में निकाली और ले आई, साथ में एक ग्लास पानी भी। हमने कहा - कैसे खाया जाए और एक मिठाई उठाकर उन्हें खिलाने लगा, तो मना कर दी और बोली - पहले आप और अपने हाथ से मिठाई उठाकर हमारे मुख के पास ले आई। हमने उसमें से आधा काट लिया, फिर वह खुद आधा खा गई। हमने भी अपने हाथ से उसे खिलाना चाहा, तो वह मेरे हाथ को पकड़कर मेरे मुँह के पास ले आई, इशारे से ही हमें खाने के लिए कहा, तो मैं फिर आधा मिठाई काटा, वह मेरे हाथ के द्वारा ही आधा मिठाई अपने मुख में ले ली। हमने दो घूंट पानी पिया, वह भी मेरे बाद उसी ग्लास से पानी पी। फिर हमने मेन लाईट बंद किया। वह दरवाजे की तरफ देख रही थी। हमने देखा दरवाजा सटा हुआ था, पर लाॅक नहीं था, हमने उसे लाॅक किया। हमने कहा - आपने ये जो बजरंगबली वाला मंगलसूत्र हमें दिया है, इसका क्या करें। वह बोली - गले में डाल लिजिए। हमने कहा - वहाँ हमने आपको मंगलसूत्र पहनाया था, यहाँ आप पहना दीजिए और वह हमें अपने हाथों से उस लाॅकेट को मेरे गले मे पहनाने लगी, तो हमने कहा - बजरंगबली तो ब्रह्मचारी थे, हमें भी ब्रह्मचारी रहना पड़ेगा। वह हंस दी। फिर हम दोनों एक-दूसरे का एक हाथ पकड़े हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बिस्तर पर लेट गए। फिर पता नहीं चला, हम कब और कैसे एक-दूसरे में उतर गए। हमें यानी मुझे कब नींद आ गई, पता भी नहीं चला। मेरी नींद 4ः45 में खुली, जब वह हमें जगाई। मैंने देखा - वह स्नान आदि करके हमारे सामने खड़ी थी। हम जब उठकर जाने लगे, तो वह मेरा चरण स्पर्श करने लगी। हमने कहा - ये क्या कर रही हो ? ये सब पुरानी बातें हैं, हम दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं। तो वह बोली - धर्म और कर्म इंसान को नहीं भूलना चाहिए। धर्म-कर्म इंसान को सुख और शांति देता है और आनन्दमय जीवन व्यतीत करने में मदद करता है। मैं उसको चुम लिया और घर से बाहर चला गया।

              एक है धुरंधर बाबू। इनका जैसा नाम, वैसा काम। इन्हे मधु सेवन की आदत है। ये बेचारे लत से लाचार हैं। ये शादी में भी दो घूंट लगा कर गए थे। अति तो तब हो गई, जब ये सुहागरात के दिन भी नहीं माने। इन्होंने दोस्तों के साथ पैक मारा और माउथ फ्रेशनर मारकर कमरे में चले गए। जाते ही उन्होंने कमरे का दरवाजा सटाया और लाॅक कर दिया। इनकी पत्नी पलंग पर बैठी हुई थी। वह वहीं बैठी रही और वे (धुरंधर) जाकर उनके बगल में बैठ गए। जब वे उनकी तरफ अपना मुँह करके बैठे, उनका मँुह अपनी तरफ किया और कुछ बोलने के लिए जैसे ही मुँह खोला, वह अपना मुँह घुमा ली। ध् ाुरंधर बाबू बोले - क्या बात है ? शादी से खुश नही हो क्या ? किसी और को चाहती हो क्या, जो मुँह घुमा ली। वो बोली - जी ऐसी बात नहीं है, आपके मुँह से बास आ रहा है। धुरंधर जी बोले - अरे क्या बताएँ, दोस्तों ने जबर्दस्ती पिला दी, तो वो बोली - कम-से-कम आज तो आपको नहीं पीना चाहिए था और वह साइड हो गई। किसी को वचन दे चुकी हो क्या और बहाना बना रही हो - धुरंधर ने कहा। वह बोली - जी ऐसी बात नहीं है, आप जैसा चाहेंगे, वैसा करूँगी, पर आपको एक वचन देना पड़ेगा। धुरंधर बाबू बोले - तुम्हें भी एक कसम खाना पड़ेगा। तुम मेरा कसम खाओ कि तुम्हारा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं था। वह बोली - मैं आपकी कसम कैसे खा सकती हूँ। मै अपनी कसम खा कर कहती हूँ कि मैंने कभी ऐसा-वैसा नहीं किया। ध् ाुरंधर बाबू उठ कर चल दिए और बोलने लगे - ठीक है, तो मैं जाता हूँ, अगर तुम कसम नही खा सकती। तो उसने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली - ठीक है। अगर आप इसी से खुश हैं, तो आपकी कसम और उनका आँख छलक गया और बोली - अगर आप पीना नहीं छोडे़ंगे, तो मैं भी आपके साथ पिऊँगी। धुरंधर का नशा ही टूट गया। धुरंधर बोला - मैं कोशिश करूँगा कि नशा छोड़ दूँ। इस प्रकार ये महानुभाव अपने जीवन की शुरूआत किये।

              एक संतोष बाबू हैं। इनका सुहागरात फिल्म से भी एक कदम आगे निकल गया। ये बताते हैं कि जब वे कमरे में अपने भाभी के आदेश पर गए। घर का कमरा पूर्ण रूप से सजा हुआ था। वह पलंग पर बैठी हुई थी। हमने कमरा का दरवाजा ओंठगाया और लाॅक कर दिया और पलंग पर बैठ गया। वह उठी और थाल ले आई, जो पहले से सजाया हुआ था। उसमें दीपक जला दिया, मेरी आरती की, तिलक लगाई, फूल छींटी, फिर मिठाई खिलाई, मुझे गजब तरह का अनुभव हो रहा था। मैंने कुछ रूपये थाल में रख दिया। वह मेरा चरण स्पर्श कर अपना हाथ अपने सिर पर फेरी, तो हमने कहा - हमें मिठाई खिला दी, अपने कुछ नहीं खाओगी। वह जो मिठाई मैं खाया था, उसी को खा गई। मैने पूछा - पानी है क्या, तो वह पानी लायी। फिर वहीं पर दूध रखा हुआ था, दूध लायी तो हमने कहा रहने दो। वह बोली - थोड़ा ले लिजिए। फिर मैं आधा से कुछ ज्यादा दूध पीते हुए उसे पिला दिया। मुँह साफ किया। फिर अपने पाॅकेट से एक मंगलसूत्र निकालकर उसे दिया और मैंने कहा - मेरी तरफ से आपके लिए। लाइट पहले से ही नहीं थी। मोमबत्ती जल रही थी, जो तब समाप्त होने वाली ही थी। वह बोली - अपने हाथों से पहना दीजिए। मैं जैसे ही पहनाने लगा यानी पहना दिया, वैसे ही दीपक बुझ गया और हमारे जीवन का दीपक जल गया। क्या समझा ! हमलोग मुस्कुरा दिये।
         
                अब कहानियों का दौर यहीं समाप्त करते हैं और मुख्य मुद्दे पर आते हैं। कुछ लोग सुहागरात को रक्त का धब्बा ढूँढते हैं, तो कोई दर्द-पीड़ा का अनुभव करना या करना चाहता है। ऐसा नहीं होने पर एक-दूसरे पर शक करते हैं या दूसरे शब्दों में एक-दूसरे से शिकवा-शिकायत रहता है। पर आज के समय में ऐसा सम्भव नहीं है। पहले की अपेक्षा अब ज्यादातर शादियाँ लड़का-लड़की के पूर्ण यौवन होने के पश्चात् ही होती हैं, दोनों की उम्र में भी कम ही अन्तर होता है। अब लड़का-लड़की दोनों ही शारीरिक परिश्रम करते हैं।

               यहाँ हम उस वर्ग की चर्चा तो छोड़ ही दिए, जो उच्च वर्ग अथवा हाईप्रोफाईल कहलाता है। यह ऐसा वर्ग है, जो मध्यम वर्ग से निकलकर उच्च वर्ग में सम्मिलित हो रहा है। इस वर्ग में शादी होने के बाद नयी जोड़ी उसी दिन पहले से निश्चित किसी हिल स्टेशन, टूरिस्ट प्लेस या धर्म-स्थल पर साथ-साथ चले जाते हैं। इस प्रकार साथ सफर करते हुए ये अपने जीवन की शुरूआत करते हैं, जहाँ घर और समाज की बंदिश नहीं होती। दो अंजान लोग सफर में ही मिल जाते हैं, एक-दूसरे के हो जाते हैं। बस, विधिवत् पहले इन्हें मिला दिया जाता है और फिर साथ उठते-बैठते, खाते-पीते हुए ये अपने सफर में एक-दूसरे के हो जाते हैं।

                यहाँ हम सुहागरात के दिन ध्यान देने वाली बातें, जिस पर गौर करना जरूरी है, उसकी चर्चा करेंगे। हमें उस दिन क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ? पहले हम हाईप्रोफाइल लोगों की चर्चा करेंगे, क्योंकि इनके साथ भी बहुत सी घटनाएँ देखने में आयी हैं। हाईप्रोफाइल में एक ऐसा वर्ग भी है, जिसके पास संसाधन की कमी है। उन्हे टूर पर जाने से पहले और टूर पर जाने के बाद निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए  :-

* जगह का चुनाव करते समय शान्तिप्रिय क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए, जहाँ का वातावरण ज्यादा अशान्त न हो, जहाँ दंगा-गदर कम होता हो।

* हो सके तो वहाँ पहले से ही होटल/कमरा बुक करा लें।

* अनावश्यक भार (वजन) न ढोयें।

* अपनी रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तु को अपने साथ अवश्य ले लें।

* जहाँ जा रहे हैं, वहाँ का विवरण अपने परिवार वालों को दे दें।

* ज्यादा गहना और जेवरात अपने साथ न ले जाएँ।

* उचित मात्रा में मुद्रा या कैश कार्ड अपने साथ रखें।

* सफर सावधानीपूर्वक तय करें।

* लड़कियों को कुछ विशेष आईटम, जो हर जगह उपलब्ध नहीं हो सकती, उसे अपने साथ रख लेना चाहिए, जिससे उन्हें बाद में शर्मिंदा नहीं होना पड़े।

* हो सके तो मिलाप का साधन अपने साथ रखना चाहिए।

पहुँचने के बाद ध्यान देने वाली बात : -

* आप किस होटल, रेस्तरां, हो सके तो किस कमरे में रूके हैं, इसकी सूचना घर वालों को दे देना चाहिए।

* आप कब तक रूकेंगे और सही से आप पहुँच गए, यह भी बता देना चाहिए।

* आप जिस कमरे में रूके हैं, वहाँ कोई गुप्त कैमरा और रिकार्डर तो नहीं है, इसकी जाँच आपको कर लेनी चाहिए, नहीं तो बाद में आपको परेशानी उठानी  पड़ सकती है।

* आप जहाँ रह रहे हैं, वहाँ मोबाईल नेटवर्क काम कर रहा है या नहीं।

* सोते वक्त अपना दरवाजा ठीक से बन्द करें।

* नशा (व्यसन) का सेवन न करें।

* किसी प्रकार की परेशानी होने पर वहाँ जो सहायता केन्द्र है, उसे जल्द-से-जल्द सूचित करें।

* अनावश्यक लफड़े से बचें और लफड़ेबाजों से दूर रहें।

* शाॅपिंग करते समय डेªसिंग रूम, जिसमें कपड़े की फिटिंग जाँच करते हैं, उसे सोच-समझकर इस्तेमाल करें। हो सकता है, उसमें गुप्त कैमरा लगा हो, ऐसा कई जगह पाया गया है।

Note :-  कुछ डिजीटल कैमरे हैं, जो नेटवर्क को बाधित करते हैं। इस सिद्धान्त पर आप डेªसिंग रूम या अपना कमरा इस्तेमाल करने के पहले, वहाँ से बाहर आकर काॅल करके देखें। अगर बाहर काॅल हो रहा है और ड्रेसिंग रूम या कमरे के अंदर से काॅल नहीं हो रहा है, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए।

* अपने मोबाईल में अपने परिचितों के नम्बर संचित (Save) रखना चाहिए।

* हो सके तो दो-चार नम्बर डाॅयल करके भी रखना चाहिए।

* कहीं आते-जाते समय का ध्यान रखन चाहिए।

अब हम आम लोगों की बात करते हैं। हमें उस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

पहले क्या नहीं करना चाहिए:-

* किसी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए, जैसे - अल्कोहल, सिगरेट, भांग आदि।

* एक-दूसरे पर शक नहीं करना चाहिए।

* अनावश्यक कसम नहीं खाना चाहिए और न खिलाना चाहिए।

* अगर आप दोनों को जीवन में खुश रहना है, तो अपने दूसरे प्रेम सम्बन्धों की चर्चा नहीं करनी चाहिए और उसे भूल जाना चाहिए। लड़कियों को तो कभी सपने में भी उसे ख्याल नहीं करना चाहिए, न ही कबूल करना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर लड़के (मर्द) उस रिश्ते को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। ऽ कभी भी एक-दूसरे के पुराने रिश्ते की खोजबीन न करें। इससे किसी को कुछ नहीं मिलने वाला, सिर्फ नफरत को छोड़कर।

* किसी प्रकार की जिद न करे।

* कभी भी एक-दूसरे के साथ जबर्दस्ती नहीं करना चाहिए।

* किसी गैर (दूसरे) स्त्री/पुरूष से एक-दूसरे का तुलना न करें।

* अपनी इच्छा एक-दूसरे पर न लादें।

* ज्यादा उत्तेजित न हों या बिल्कुल शिथिल भी न रहें।

* आपका जीवन साथी कमजोर पड़ रहा है, यह कभी न झलकने दें।

    पहले क्या करना चाहिए:-

* अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार हो सके तो एक-दूसरे के लिए उपहार रखें। उपहार को कीमत में न तौलें।

* एक-दूसरे के लिए आदर-सूचक शब्दों का प्रयोग करें।

* पहल दोनों तरफ से हो।

* शयनकक्ष में हर वस्तु का उचित रख-रखाव हो और उस दिन की जरूरत के अनुसार वस्तु उसमें उपलब्ध हो। कमरे में ज्यादा भीड़-भाड़ न हो, हवा और प्रकाश का उचित प्रबन्ध हो। कमरे का माहौल खुशनुमा हो।

ऐसे ये काम घर वालों का है, जिनमें प्रमुख रूप से - भाभी, जीजा, जेठानी या वो रिश्तेदार, जिनसे इस प्रकार की बातें खुलकर की जाती हैं।

* एक-दूसरे पर विश्वास करें।

* एक-दूसरे की भावना को समझें।

* एक-दूसरे को प्रोत्साहित करना चाहिए।

* एक-दूसरे की खूबी/अच्छाइयाँ गिनायें।

* एक-दूसरे से सन्तुष्ट रहें।

* एक-दूसरे की सन्तुष्टि का ध्यान रखें।

अन्त में, मैं यही कहना चाहूँगा कि अफवाहों पर न जाएँ। जमीनी हकीकत को पहचानें और अपने जीवन साथी के साथ खुश रहें।


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