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शनिवार, 2 जनवरी 2016

* खेल *

                     प्रति दिन की भाति उस दिन भी मैं संध्या  बेला में घर जा रहा था। उसी समय एक औरत अपने ९-१० वर्ष के लड़के को मार रही थी और बोल रही थी, बोल उन लोगों के साथ और जाओगे खेलने और साथ में कुछ लड़को का नाम भी ले रही थी। उसी समय मैं वहाँ से गुजर रहा था। मैं उसके पास गया और उसे रोकते हुए कहा क्यू मार रही हैं। मैं बच्चे से पूछा क्यू बाबू क्या सरारत (बदमाशी) कर दिया। वह रोते हुए बोला, हमने कुछ नहीं किया। फलनवा और फलनिया ने कहा चलो खेल खेलते हैं तो मैं भी गया था। मैं उस औरत के तरफ मुखातिब हो कर बोला, बच्चा है बच्चों के साथ नहीं खेलेगा तो किसके साथ खेलेगा। बचपन में खेलना कोई गुनाह काम थोड़े ही है। चलिए इसे छोड़ दीजिए। वह मेरे तरफ मुखातिब हो कर बोली, बबुआजी आप नहीं जान रहें हैं, ई सब कौन खेला खेल रहा है। ए सब बच्चा है !जवान का कान काट रहा है। ई लोग का हरकत देखिएगा और सुनिएगा तो........ । मैं बोला क्या हो गया, ऐसे भी पुत्र (बेटा) पिता (बाप) से तेज होते ही हैं, तभी तो आज देश, समाज तरकी कर रहा है। विकाश और उन्नति के लिए अगली पीढ़ी को पिछली पीढ़ी का कान तो कटनी ही पड़ेगी। मेरे चुप होने पर उस औरत ने जो बात बताई तो थोड़ा देर के लिए मैं सोच में पर गया एवं पुनः मेरी मस्तिष्क में वह १२ वर्ष पुरानी सम्पूर्ण घटनाक्रम याद आ गई। उस समय मेरा गिनती भी बच्चों में ही था। उस समय मैं जिस औरत से बात कर रहा था। उस से हमारा भाभी का रिश्ता था। यह रिश्ता कोई रक्त या वर्ग जाती सम्बन्धी नहीं था। बस उम्र के लिहाज से उनके पति को भाई (भईया) बोलने से हो गया था। उसने कहा बाबू जी आप नहीं जानते हैं। आप हमें भाभी कहते हैं फिर भी आज तक कोई ऐसी-वैसी बात या मजाक नहीं की, ये बच्चे बहुत गन्दी बात एवं गन्दी हरकत करते हैं। मैं बोला ऐसा क्या करते हैं ? वह बोली आप को बताना ही पड़ेगा, "ये बच्चे शरीर के गुप्त अंगो के साथ हरकत करते हैं। इन्हे अप्राकृतिक क्रिया भी करते हुए मैं देखी हूँ।"मैं बोला नहीं ऐसी बात नहीं होगी। उन्हें कुछ परेशानी रही होगी तो आप ने गलत समझ लिया होगा। वह जोड़ दे कर कहने लगी ऐसी बात नहीं है, मैं पूर्ण यकीन के साथ कहती हूँ की वही कही हूँ और वह १००% (सौ प्रतिशत) सत्य है। मैं झेप गया, खैर जाने दीजिए कहता हुआ मैं अपने घर की ओर चल दिया। 

                      आप को मैं बताता चलु। उस रोज से ठीक बारह वर्ष पहले मैं भी उसी प्रकार का घटना देखा था, उस समय मैं भी बच्चों के श्रेणी में था, पर वे लड़के मुझ से भी और छोटे थे। उन में से कुछ तो मुझ से ५-७ वर्ष से कम छोटे नहीं रहे होंगे। अगर आज वही बात किसी के सामने रखा जाए तो रिश्ते को शर्मशार करने वाली होगी। मैं उसी बात को उनके अभिभावकों को बताया तो, वे अपने बच्चों पर ध्यान देने के बजाए, मेरे घर पर उलाहना ले कर आ गए की मैं उनके बच्चों को बदनाम कर रहा हूँ। मेरी माँ मुझे डाटते हुए बोली अब तुम बड़े हो रहे हो। यही सब देखते चल रहे हो। तुमको क्या लेना देना है। मैं भी देखा की दो परिवार के बदनामी के साथ, मेरे साथ भी कीच-कीच होगा। पुरवा-साख कराने से कोई फायदा तो है नहीं। मैं भी उस समय चुप रहने में ही भलाई समझा। बिना मतलब उनके और मेरे  घर से तू तू मैं मैं हो जाता। उनके अभिभावकों का कहना था की उनके बच्चे कह रहे हैं  की उन्होंने ऐसा नहीं किया या नहीं कर रहे थे। मैं सोचा तो इसका मतलब अब वे बच्चे, बच्चे नहीं रहे। इसका मतलब उन्हें इसका आधा-सुधा ज्ञान है पर अभिभावक को तो सोचना चाहिए।

                         अब आप को ऐसी ही और घटना के विषय में बताते चलता हूँ, जो इस घटना के कुछ वर्ष बाद घटी थी। मैं अपने पड़ोस में लड़को को खेलते हुए देख रहा था। कुछ लड़के अपने खेल में मग्न थे तो उन में से दो-तीन उसी प्रकार का हरकत कर रहे थे। जिस प्रकार का वह औरत बता रही थी। मैं उनके हरकत को उनके माँ से बता दिया। जब वह लड़का घर गया तो उसकी माँ उसे मारने लगी और पूछने लगी पर उसकी दादी मेरा उलाहना देने मेरे घर पहुँच गई। मेरा नाम लेते हुए वह बोली वह मेरी बहु को क्या-क्या झूठ-साच बता दिया है। वह अपने लड़के को मार रही है। मैं उस समय घर में ही था। मेरी माँ बोली ठीक है दीदी मैं उस से पूछती हूँ, मगर मेरी माँ, मुझ से कुछ नहीं पूछी, अपने आप से बड़बड़ाते हुए वह  बोल रही थी। बच्चों का ख्याल तो रखेंगे नहीं अगर कोई सही या गलत देखा और बता दिया तो उसी पर चढ़ बैठते हैं। कुछ तो सोचना चहिए। मुझे आभास हुआ की माँ को भी इन बातो का भनक (जानकारी) जरूर है।

                            आज मैं उस पुरानी और इस नई बात में कोई अंतर नहीं देखा। समान उम्र समान हरकत। अंतर सिर्फ इतना था की कोई उस हरकत को अपने आँखों से देख ली थी और अपने बच्चे को सम्भालने का प्रयत्न कर रही थी पर उसका तरीका सही नहीं था। कोई-कोई अभिभावक तो अपने बच्चों पर ध्यान देते हैं पर कुछ लोग तो अगर कोई उनके बच्चे के बारे में कुछ कह दे तो वे उस बात को परखने के बजाए बताने वाले पर दाना-पानी ले कर चढ़ जाते हैं। बच्चों का उस हरकत को देख कर और आज सुन कर मैं सोचने पर मजबूर हुआ। आखिर क्या कारण है की बच्चे उम्र से पहले इस और आकर्षित हो रहें हैं। उन्हें इस प्रकार की क्रियाओं की जानकारी कैसे, समय पूर्व हो रही है। ऐ अपने उम्र के लिहाज से कुछ ज्यादा नहीं बहुत ज्यादा सक्रियता दिखला रहे हैं तो हमने प्रताल में पाया की इसके कई पहलु हैं।

                           पहला तो हमने पाया की आज संयुक्त परिवार बिखर रहा है। इसका सीधा प्रभाव बच्चों के परवरिश पर पड़ रहा है। कुछ संयुक्त परिवार है तो भी उनमे वह संयुक्ता नहीं रही। संयुक्त परिवार में बच्चे अपने दादा-दादी के पास ज्यादा रहते हैं। जिस से उन्हें खिस्से कहानियों द्वारा चरित्र निर्माण के साथ सामाजिक स्थिति समझने में मदद मिलती है। इस प्रकार के परिवार में जिसे नाती-पोता हो जाता तो वे एक दम्पति की जीवन त्याग कर घर में सन्यासी की तरह रहते हैं जो बच्चों का चरित्र निर्माण करता है। दादा-दादी के पास रहने से बच्चे बाल्यावस्था (बाल्यअवस्था) में इस प्रकार की क्रियाओं से अनभिग रहते हैं।

                             हमें ज्ञात है की मानव एक ऐसा जीव है, जिसके शिशु में सबसे काम चेतना पाया जाता है। इसमे धीरे-धीरे चेतना का विकाश होता है। यह अनुकरण से अथार्त  देख सुन कर ही सीखता है। अर्थात हम अपने बच्चों को जैसा माहौल दृश्य देंगे वे वैसा ही सीखेंगे।

                          संयुक्त परिवार के विघटन एवं व्यक्तिगत परिवार के निर्माण के फलस्वरूप बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं और उनके साथ ही सोते  हैं। इस दौरान अगर दम्पति प्रेम प्रलाप या प्रेम क्रीड़ा करते हैं। वे अपने बच्चों का ध्यान नहीं रखते की वह अभी कहाँ है या क्या कर रहा है, साथ में अगर वे यह सोचते हैं की यह तो अभी बच्चा है और वह बच्चे के उपस्थिति को नजर अंदाज करते हैं, जो गलत है। बच्चा उनके क्रियाओं को सीखता है और फिर उसे करने या दोहराने का प्रयत्न करता है। बच्चा अपने आस-पास होने वाली क्रियाओं का अनुकरण करता है।

                            दूसरा कारण हमने पाया की आज लोगों के पास निवाश के लिए प्रयाप्त स्थान नहीं है या यू कहे की उसका सही प्रबंधन भी नहीं है। एक ही कमरे में माता-पिता बच्चे सभी सोते हैं। उसी दौरान अगर वे बच्चे को नजर-अंदाज करते हुए किसी प्रकार का क्रिया कलाप करते हैं तो बच्चे उसे ग्रहण कर बाद में प्रदर्शित करते हैं। हम इतिहास में जाए तो देखेंगे सभी का निवाश अलग-अलग था। औरत कहाँ रहेंगी, मर्द कहाँ रहेंगे, कौन बच्चा कहाँ किसके साथ रहेगा। अब यह रीती (नियम) टूटता जा रहा है। जिसका परिणाम हमें देखने को मिल रहा है।

                         बच्चों का इस प्रकार का आचरण प्रदर्शन का अन्य मुख्य कारण है असामाजिक प्रकृति के लोग जो बच्चों के सम्मुख जान-बुझ कर उस प्रकार की बातें करते हैं या क्रिया कलाप और अवांछनीय हरकत करतें हैं। कुछ लोग तो अनजाने में उस समय इस बात को बच्चों के सम्मुख मजाक के तौर पर करते हैं। जिसे बच्चे बाद में प्रदर्शित करते हैं। कुछ लोग आधुनिकता दिखने-दिखाने के चकर में अपनी सभ्यता संस्कृति छोड़ अन्य सभ्यता का अनुकरण करते हैं। इसका प्रभाव भी बच्चों पर पड़ रहा है।

                             हमें इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी सभ्यता संस्कृति की गिरते स्तर को बचाना चहिए। अगर हमने मानव तन पाया है। मानव सामाजिक प्राणी है तो हमें अपने आचार-व्यवहार को समयानुकूल नियंत्रित रखना चाहिए। इस प्रकार का खेल बच्चों में कम से कम हमारे द्वारा प्रसारित न हो, इसका ख्याल रखना चाहिए।