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रविवार, 17 जनवरी 2016

* विचार *

                       "विचार" के आधार पर समाज का निर्माण होता है। कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे। विचार शून्य समाज की हम कल्पना नहीं कर सकते। विचार के आधार पर अनेको संघ एवं पार्टियाँ बनती हैं और बनी भी हैं, जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष एवं प्रयत्न करती हैं और कर रही हैं। विभिन्न विचारों से ही समाज को विभिद्धता (विभिन्नता) मिलती है। विभिद्धता समाज को रोचक एवं प्रयत्नशील बनाती है। विचार में बहुत सारे गुण हैं, पर आज समाज में विचार के नाम पर जो कटुता आ रही है वह अति अशोभनिए एवं चिंतनीए है। आज लोग विचार को ढाल बना कर अपनी तुक्ष्य स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए तुक्ष्य हरकत कर रहें हैं। लोग आज जब भी किसी से किसी भी आधार पर अलग होते हैं तो उसका दोश  सीधे विचार पर मढ़ देते हैं। वे कहते हैं -'मेरा उनका विचार नहीं मिलता'। वे यह क्यूँ नहीं कहते की मेरा उनका स्वार्थ नहीं मिलता या उनके साथ या उनसे मेरा स्वार्थ सिद्धि नहीं हो रहा। लोग अपना सम्पूर्ण दोष बेचारी विचार पर मढ़ देते हैं। 

                       वर्तमान में लोग घर-परिवार, रिश्ते-नाते , व्यक्तिगत सम्बन्ध को तोड़ने के लिए भी विचार का सहारा ले रहें हैं और विचार को बदनाम कर रहें हैं। माना विचार के आधार पर संघ-संघठन,पार्टी का निर्माण करते हैं पर परिवार का क्या ? जहाँ हम जन्म लेते हैं। माना परिवार भी एक सामाजिक संघठन है। इसका मुख्य आधार संस्कार, रीती-रिवाज, सहयोग, त्याग एवं रक्त सम्बन्ध है। कुछ लोग विचार को आधार बना कर परिवार से अलग हो रहें हैं। चलो यह भी ठीक है की उनका वहाँ विचार नहीं मिलता और वे अलग रहते हैं, पर वे उनके सुख-दुःख से भी मुख मोर लेते हैं। क्या उनका यही विचार है ? नहीं, उनका यह स्वार्थ है। यह उनका पशुता है। 

                           लोग पार्टी, संघ, संगठन को भी परिवार के नाम से पुकारते हैं यहाँ तक की राज्य देश के लिए भी परिवार शब्द का इस्तेमाल करते हैं, पर वे न  आज तक परिवार को सही से समझ सके न किसी के विचार को। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग अवश्य एक दूसरे के सुख (खुशी) से ख़ुशी एवं दूसरे के दुःख दर्द से दुखी होते, पर ऐसा नहीं हैं। हमारी सभ्यता, संस्कृति में विश्व (जगत) को परिवार बताया गया है। यह कोई नई बात नहीं है। भारतीय शास्त्रों में "वसुधैव कुटुम्कबम्" की अवधारणा बहुत पहले ही विकशित हो चुकी थी, जो आज संकुचित हो गई है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है की जो लोग या व्यक्ति जब अपने छोटे परिवार से भी विचार को आधार बना कर उससे बिलकुल अलग हो जाता है। उस परिवार से उसे कोई सारोकार नहीं होता तो वह एक बड़े परिवार में विचार के आधार पर कैसे टिक सकता है। वह वहाँ विचार के आधार पर कैसे टिक सकता है। वह वहाँ विचार के आधार पर नहीं अपने स्वार्थ के आधार पर टिका रहता है।

                           आपको पहले विदित हो ही चूका है की विश्व एक परिवार (वसुधैव कुटुम्बकम्) की आवधारणा भारतीय जनमानस में बहुत पहले से संचार कर रही है। आज जो लोग विचार को ढाल बना कर परिवार को तोड़ रहें हैं, उनके समक्ष एक ऐसे परिवार का उदाहरण प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, जिसके प्रत्येक सदस्यों के सान्निध्यों का विचार नहीं प्राकृतिक स्वभाव एक दूसरे का बिलकुल बिरोधी है, भिर भी वे एक परिवार से बंधे हुए हैं। उनके परिवार का मुख्य आधार एक दूसरे के प्रति सम्मान, समाज कल्याण है जो एक विचार का रूप है। इस परिवार का प्रत्येक सदस्य भारतीय सभ्यता संस्कृति में पुजनिए हैं। भारतीय सभ्यता संस्कृति से तालुक (सम्बन्ध) रखने वाला हर सदस्य इनसे परिचित है। लगभग सभी शास्त्रों एवं ग्रंथो में इनके परिवार के किसी न किसी सदस्य का किसी न किसी रूप में वर्णन मिल ही जाता है। आपके मन में विचार उठ रही होगी आखिर वह कौन सा परिवार है, जिसके सन्निध्यों का एक दूसरे के प्रति विपरीत प्राकृति स्वभाव है फिर भी वे एक पिरवार के रूप में हैं, तो आप को बता दूँ वह परिवार है शिव परिवार। इस परिवार का वर्णन हम संक्षिप्त में निचे प्रस्तुत करेंगे।
                          'शिव परिवार' शिव जी विभिन्न नमो से जाने जाते हैं, शंकर जी, भोले दानी, मृत्युंजय, भूतनाथ, महादेव, औघरदानी, महाकाल, नीलकंठ आदि-आदि। इनके गले में सांप की माला है तो सान्निध्य और वाहन नंदी जो एक बैल का रूप है। इनकी पत्नी पार्वती, गौरी, शक्ति शिवा हैं, जिनकी सान्निध्य सवारी बाघ है। इनके पुत्र गणेश और कार्तिक्य हैं। गणेश का सान्निध्य वाहन (सवारी) मूष  (चूहा) है। कार्तिक्य का सान्निध्य वाहन मोर है। अब यहाँ देखने वाली बात है की, मूष का शत्रु सांप है। सांप का शत्रु मोर है। बैल का शत्रु बाघ है। शत्रु क्या ए एक दूसरे का प्राकृति द्वारा प्रदत भोजन (आहार) हैं . .जब ए इतने विपरीत परिस्थिति एवं विपरीत स्वभाव के सन्निध्यों के साथ में भी परिवार के रूप में रह सकते हैं तो हम आप क्यूँ  नहीं ? इनका परिवार हमारी संस्कृति सभ्यता एवं सोच का उपज है। हमें इनके आदर्शों को ग्रहण करना चाहिए।

                          अब सोचने एवं मनन करने वाली बात यह है की लोग वर्तमान में छोटी-छोटी बातों को बड़ी समस्या बना कर विचार का हवाला दे कर एक दूसरे से या अपनो से दुरी बना रहें। इसका मुख्य कारण स्वार्थ, संकुचित मन और विकृत मनोदशा है।

                           विचार तोड़ने नहीं जोड़ने का कार्य करता है। आपने देखा की शिव परिवार विचार को आधार बना कर ही एक है। इनका विचार है लोक कल्याण, सदभावना, प्रस्पर आदर प्रेम। अब आप कहेंगे, कैसी लोक कल्याण, कैसी सदभावना, कैसी प्रेम तो आप को बता दे, महादेव ने लोक कल्याण वश ही हलाहल (विष) को अपने कंठ में धारण किया जिससे इनका कण्ठ नीला पर गया और इनका नाम नीलकंठ पर गया। लोक कल्याण वश ही कार्तिक्य ने देवो का सेनापति का पद ग्रहण किया। सदभावना का परिणाम है की इनके सन्निध्यों का विपरीत स्वभाव होने पर भी ए सभी एक परिवार से जुड़े हैं। आदर ही है जो गणेश सर्वप्रथम पूजे जाते हैं। इनके प्रेम का क्या वर्णन किया जाए, इनके प्रेम के समतुल्य कोई नहीं है। प्रेम वश ही शिवशंकर ने ताण्डव नृत्य किया।

                              मेरा आप से बस इतनी सी निवेदन है की आप न तो अपने विचार को मैली करें, न वेचारी विचार को बदनाम करें। विचार से जोड़ने का कार्य करें तोड़ने का नहीं।

                               ये हैं शिव परिवार के  सदस्य