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मंगलवार, 21 मार्च 2023

*दोषी का दोष या दोष व्यवस्था का*

 

*दोषी का दोष या दोष व्यवस्था का*

 

       आए दिन विभिन्न प्रकार के आपराधिक घटनाएं हो रही हैं और इनकी तादाद दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। इसका दोष कौन है। पारिवारिक परिवेश, सामाजिक परिवेश या यह व्यवस्था। आज बहुत से अपराधी लोग समाज में आम लोगों के बिच अपने अपराध का बगैर प्रायश्चित किए हुए या न भोगे हुए प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस पर हमें हमारी समाज हमारी व्यवस्था को सोचनी चाहिए।

 

 

       मैं श्रद्धा आफताब केस का कोई भी जिक्र न करते हुए सिर्फ रिफरेंस याद करते हुए एक सवाल उठाना चाहता हूॅं । जब कोई हत्यारा या टार्चर करने वाले का यह व्यक्तित्व सामने आता है कि उसने इतनी खूंखार हत्या इसलिए की, या बेरहम इसलिए था क्योंकि वह मेंटल डिसऑर्डर से ग्रस्त था। वह साइकोपैथ, नारसिस्ट , बार्डर लाइन पर्सनेलिटी का था। उसे उचित सजा नहीं होती है। कुछ सालों बाद वह छूट भी जाता है। लेकिन  मेरे हिसाब से ऐसा साइको पैथ अपनी क्रिमिनल एक्टिविटी से किसी मासूम और उसके परिवार के कई लोगों की जिंदगी उजाड़ देता है। उन मासूम लोगों के साथ तो यह अन्याय हुआ। फिर जो हत्यारा है वह अतिशय स्वार्थ और शातिर पन में किसी को बरबाद कर दिया । आगे भी करेगा। ऐसे भी जो क्रिमिनल होते हैं वे स्वस्थ मस्तिष्क के तो होते नहीं। फिर इन्हें छोड़ दिया जाना यानी (मृत्यु के बदले मृत्यु नहीं) कानून के साथ लापरवाही नहीं है ? यहां तो मासूम के ऊपर अत्याचार को देखा ही नहीं जा रहा। ये सवाल इसलिए कि जब भी हत्यारा खुद को मेंटल साबित कर देता है, कोर्ट क्षमा दे देती है। निठारी हत्या कांड भी इसी का उदाहरण है। अभी आफताब पर भी केस ठोस इसी वजह नहीं बन रहा।

 

      दुःख होता है कि इतने जघन्य अपराध करने के बाद भी, खुद को मेंटल कह कर अपराधी कानून के आंख में धूल झोंक कर बच निकलता है। फिर कानून और इंसाफ का क्या मतलब है ? क्या सच में कानून अंधा है ? क्या यह हमारे कानून व्यवस्था की खूबी है,  सात खून भी कर दे तो पहले केस ही सालों साल लटकाया जाता है और फिर उसे मेंटल डिस्आर्डर साबित करके फांसी से बड़ी आसानी से बचाया जाता है।

 

      आज हमें ऐसे कानून व्यवस्था के विरुद्ध आवाज भी उठनी चाहिए सजा भी मिलनी चाहिए गलत को गलत कहना चाहिए। सिर्फ  कैंडल मार्च कर लेने और फिर उसके बाद सब दरवाजे बंद करके अपने घरों में बैठ जाएंगे ऐसे नहीं होगा । बस हो गया काम पूरा फिर उसके किसी को इन्साफ मिले या ना मिले हमें क्या ? जनता को आवाज़ उठाना चाहिए तभी सुधार आएगा ऐसा आंदोलन जो पुरे देश में नई क्रांति को जन्म दे और गुनाहगार बच ना सके।

 

      हम सभी को शर्म आनी चाहिए की हमारे देश में ऐसे हत्यारों को भी बचाने के लिये वकील तैयार खड़े हैं, उनके ज़मानत और बचाव के लिये तरह तरह के आर्ग्यूमेंट तरकीब करते हुए बचा कर अपनी जीत पर खुश होते हैं। ऐसे दरिंदों का केस लड़ने वाले वकील यह भूल जाते है कि हम अन्याय का साथ देकर ऐसे मुजरिम को बढ़ावा दे कर उन्हें और मजबूत कर रहें हैं।  भारतीय कानूनी प्रक्रिया में सिर्फ वकील का रोल ही विचार योग्य नहीं होता वरन् सम्पूर्ण प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए अदालत में जो व्यवस्था है वह सुधार करने योग्य है। एक तरफ न्यायालयों में जजों की भारी कमी है। दूसरी तरफ स्टाफ में बहुत भ्रष्टाचार है। बावजूद इसके कि सरकार की तरफ से इसे रोकने की दिशा में काफी कुछ किया जा रहा है। लेकिन जनता भी अभी समझने में मदद नहीं कर रही है। अदालतों में सामान्य आदमी बिना मांगे घूस देता है। उसे बिना घूस दिए सन्तोष ही नहीं होता। भले उसका केस जीतने वाला ही हो। उसे खुद कानून और न्याय पर भरोसा नहीं होता। इसलिए जनता की मानसिकता को भी बदलना जरूरी है।

 

             किसी और की वो न हो जाय। जलन और स्वार्थ हिंसा का ही रूप है ये लक्षण एक सामान्य अपराधी के भी होते हैं। फिर सारे अपराधों को साइको कहकर छोड़ ही दिया जाये और आम लोग शिकार बनते रहें। एक समय था जब अपराध की सजा भयंकर होती थी। फिर यह युग आया जब अपराधी के अपराध करने के दृष्टिकोण को भी डेमोक्रेसी से जोड़कर देखा गया, ताकि उनके अधिकारों का उल्लंघन न हो । लेकिन ऐसा करते हुए अंधता इसी ओर बढ़ गई और अब शिकार लोग ही और ज्यादा अन्याय सह रहे हैं। कोल्ड ब्लेडेड मर्डर यानी पूरी योजना से हत्या का मामला है उसने स्वीकार किया है कि उसके रोने के कारण एक दिन छोड़ दिया था पर इस अंदेशे से कि वह किसी के पास चली जाएगी उसे मार डाला। मेरे कहने का मकसद है कि चाहे वो साइको ही हो। तो भी जघन्य हत्या की सजा इसी अनुपात में होना चाहिए। ताकि दूसरे साइको को भी इसकी जानकारी हो। साइको हमेशा स्वयं को कानून से ऊपर समझता है। उसे उसकी सीख दी जानी चाहिए। वो साइको है। लेकिन इतना पागल नहीं कि अपना भला बुरा नहीं समझता हो। जरा सोचो अगर साईको है तो खुद के भी अंग काटे ना। ये सब सज़ा के बचने के तरीके होते हैं। साइको है तो अपने आप को भी नुकसान पहुंचाना चाहिए। अपने घर वालो को भी नुकसान पहुँचाना चाहिए। ऐसी मानसिकता वालों को कठोर सजा मिलनी चाहिए।

 

           आजकल सभी कुछ व्यवसाय हो गया है। अपराधी अपराध करने के पूर्व ही बचने का मार्ग सोच लेता है।  ऐसा करने के लिए किस किस की मदद ली जाती है यहां कह नहीं सकते। बस यहीं साहित्यकार का दायित्व बढ़ जाता है। साहित्यकार अपने विचार को प्रभावी तरह से प्रस्तुत कर समाज को चेता सकता है या यूँ कह सकते हैं कि समाज की आंखें खोल सकता है।  कलमधारी निष्ठा से जुड़े रहे.. बदलाव की उम्मीद के साथ.. यही कर सकते हैं।

श्री नरेन्द्र  कुमार

पिता श्री राजनाथ सिंह

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगांव,  थाना+अंचल – संदेश,

जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – 802352

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