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सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

* जो सोचा वो पाया *

                 आप ने हमारी आलेख "हम ऐसा क्यों हैं " पढ़े होन्गे ,  नहीं पढ़े हैं तो कोई बात नहीं। यह आलेख इसी ब्लॉग का एक पाठ है। उस आलेख में हमारी स्थिति के लिए कौन एवं क्यों जिम्मेवार (जवाबदेह) है को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। 
                  आप ने सुना होगा 'जस करनी तस भोगही दाता , नरक जात अब क्यों पछताता ' । यह उद्धरण तब इस्तेमाल किया जाता है , जब कोई गलत कार्य करता है और उसका उसे गलत परिणाम जब प्राप्त होता है तो उसे अफ़सोस होता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने एक दोहा लिखे हैं :- 

                                                        "कर्म प्रधान विश्व करी राखा। 
                                                      जो जस करनी तासु फल चाखा।। 
आप को हम यहाँ बताते चले की सोच भी एक प्रकार का कर्म है। हम जैसा सोचेंगे वैसा ही होगा , इस में दो राय नहीं है। यह अनुभव की बात है। आप ने देखा होगा कोई लड़का दिन-रात पढ़ाई में लगा रहता है पर उसे आसानी से सफलता नहीं प्राप्त होती। वह सफल तो होता है पर उसे उसके परिश्रम के अनुसार फल प्राप्त नहीं होता। इसका एक ही कारण है सोच। वह सोचता है पास होऊंगा या नहीं। अमुक प्रश्न आएगा की नहीं। मुझे सारे उत्तर याद नहीं होते इत्यादि। ए जितना भी नहीं है उसके अंदर नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं। उसे प्राप्त होने वाले परिणाम के प्रति प्रतिकूल स्थिति पैदा करते हैं। जैसे परीक्षा के समय उसका बीमार हो जाना ,पैटर्न का परिवर्तन हो जाना , अंतिम समय में गलत निर्देश प्राप्त कर लेना इत्यादि।

                         जैसा की हमें ज्ञात है। यह सृष्टी आकर्षण से बंधी है अगर यह आकर्षण क्षिण या समाप्त हो जाए तो सम्पूर्ण सृष्टी विनिष्ट हो जाए। हम यहाँ एक ईट को ले जिस से मकान ,घर ,भवन इत्यादि का निर्माण होता है। आप कहेंगे यह कौन नहीं जनता। क्या ? आपने कभी यह सोचा की यह ईट या कोई ईट अपना आकर कैसे रख पाता है। जवाब है वह अपने विभिन्न पदार्थो के कणो के आकर्षण से। ठिक उसी प्रकार जब कोई सोचता है तो वह अपने आस-पास एक चुंबकीय गुण विकसित करता है , जो अपने सदृश्य स्थिति , परिस्थिति को आकर्षित करता है। जो सफलता असफलता के गुण दोष को निश्चित करता है। आप कहेंगे की कोई अपनी असफलता के बारे में कैसे और क्यू सोचेगा ? पर यह सत्य है। लोग सोचते हैं अमुक काम होगा की नहीं। मैं अब्बल होऊंगा की नहीं। उनके यही सोचने का तरीका और शंसय उनमे नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। सफलता के लिए पहले आपको अपनी सोचने की तरीका बदलने की आवश्यकता है। कुछ लोगो को आपने यह कहते हुए सुना होगा , अमुक व्यक्ति सपने में भी एसा नहीं सोचा होगा की वह यह पद प्राप्त कर पाएगा या जीवन में उसे इतनी सफलता मिलेंगी। यह कथन गलत है , पहले आप उस व्यक्ति के नजदीक जाइए उसके अन्तःमन की बात जानिए तो आपको ज्ञात होगा की वह हर वक़्त या मन ही मन ताना-बाना बुनता रहता था। वह समय अनुकूल प्राप्त होने पर चुकता भी नहीं था।

                        आपने सुना या पढ़ा होगा की बिहार का एक मध्यवर्गीय शिक्षक कौन बनेगा करोड़पति में पाँच करोड़ जित कर रातो-रात करोड़ पति बन गए। कई लोगो को आपने यह कहते सुना होगा की वह सपना में भी नहीं सोचा होगा की वह करोड़पति बन जाएगा। पर यह गलत है , जरूर उनके अंदर धन ,सम्पति , वैभव प्राप्त करने की सकारात्मक विचार रही होगी जो स्थिति को उनके समक्ष ला कर खड़ा कर दिया और उन्हें  उसका पूरा लाभ प्राप्त हुआ या यु कहे की उन्होंने स्थिति का भरपूर उपयोग किया। अब आप कहेंगे की मैं परीक्षा में फेल  नहीं होऊंगा में नकारात्म सोच कहा है ,पर यह सोचने का सही तरीका नहीं है। प्राकृति एक बच्चा (शैशव) के समान है। हम जब किसी बच्चे  (शिशु) को कोई शब्द या वाक्य सिखाते हैं तो वह पहले अंतिम अक्षर या शब्द को पकड़ता है , ठीक उसी प्रकार प्राकृति के साथ भी है। जब कोई अंत में नहीं का उच्चारण करता है तो वह उसे आकर्षित कर लेता है और उसके अनुसार ही हमारे समक्ष स्थिति उत्पन्न होती है।

                         आप कहेंगे की मैं अमुक बात कब से सोच रहा हूँ , वह कहाँ संपन्न हो रही है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है की हमारी सोच-विचार पल-पल परिवर्तीत होती रहती है। हम जानते हैं की किसी कार्य को सम्पन होने के लिए बल की आवश्यकता होती है। यहाँ भी कार्य (फल) बल सिद्धांत से जुड़ा है। हर कार्य को सम्पन होने के लिए एक निश्चित मात्रा में साधन और ऊर्जा चाहिए। जब तक ए दोनों उचित मात्रा में उपलब्ध नहीं होंगे विचार वास्तविक रूप नहीं ले सकती। आपने वेग पढ़ा होगा , प्रकाश ,हावा , ध्वनी का वेग भिन्न-भिन्न माध्यमों में भिन्न-भिन्न होता है। पलायन वेग भी आपने पढ़ा होगा , जब पलायन वेग (१५ किलोमीटर / सेकण्ड )  से कोई वस्तु गति करती है तो वह पृथ्वी से दूर चली जाती है। यानि पृथ्वी के गुरूत्व बल के परे। उसी प्रकार सोच-विचार का भी वेग होता है। जब ज्यादा तेजी से सोच-विचार बदलता है तो वह हमसे पलायन कर जाता है। उस पर न तो हमारा नियंत्रण होता है और वह हम पर न कोई प्रभाव कर पाता है। जब हम एक निश्चित गति से सोच को निरन्तर बनाए रखते हैं तो वह कार्य में परिवर्तीत होनें के लिए यथा स्थिति उत्पन्न करती है। हम यहाँ सोच को कार्य रूप में परिवर्तीत होने के लिए एक तथ्य और रख सकते हैं। हम सभी धरातल पर भूमि के निचे से जल निकालने के लिए कुआँ खोदते हैं , या पाईप गाला कर चापाकल या नल लगाते हैं। आपने देखा होगा धरातल पर प्रत्येक स्थान पर इसका स्तर अलग-अलग होता है। स्वच्छ जल के लिए या जल की प्रचुरता के लिए आवश्यकता परने पर और गड्ढा खोदते हैं या पाईप को और गलाते हैं। ठीक सोच के साथ भी एसा ही है। सोच का कार्य रूप में आने के लिए उसके उत्कृष्ठा के अनुसार निरंतरता की आवश्यकता होती है। सोचने वाले की दृढ़ता , आत्मबल , उसकी क्षमता (क्षमता में शारीरिक ,मानसिक , बौद्धिक , आर्थिक इत्यादि सभी ) जो उसके पास उपलब्ध है , उसे प्रभावित करती है।

                        इस सिध्दांत के सिध्दि के लिए एसे तो हम आपको बहुत सारे उदाहरण दे सकता हूँ पर यहाँ मैं आपके समक्ष (सामने) जो उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ , वह विल्कुल अनुभव किया गया है। प्रस्तुत उदाहरण शिर्षक जो सोचा वो पाया को सत्य सिध्द करता है।

                         राजू बिहार प्रान्त के जिला-भोजपुर का निवासी है। वह मध्यवर्गीय परिवार से है। जब वह पंद्रह-सोलह वर्ष का था , उसकी घर का आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जिसके कारण वह जल्दी से जल्दी कही काम पर लगना चाहता था। वह गाँव का रहने वाला था। इसलिए उसे विशेष मार्गदर्शन भी प्राप्त नहीं हुए। गाँव में ज्यदातर लोग सस्त्र बल (बेल्ट सर्विस) से जुड़े हुए थे ,जिस कारन उसी के लिए उसे मार्गदर्शन प्राप्त था। उस समय बिहार पुलिस में ऊचाई का बड़ा महत्व था या यू कहे की नियुक्ती भी लम्बाई (उच्चाई) के आधार पर ही होता था। राजू का लम्बाई उस समय १६७सेमी थी इसलिए वह पुलिस के लिए कभी सोचता भी नहीं था। उसे अपना भविष्य सेना में दिखाई दिया , उस समय सेना में सत्रह वर्ष आयु से कम के अभियर्थियों को उच्चाई में छूट प्राप्त था। उसी समय उसके साथ कुछ लोगों ने एसा बोल-वचन किया जो उसके दिल को महसुस हुआ यानि लोगों की बातों को वह दिल में ले लिया। वह बताता है की जब वह सड़क के किनारे व्याम कर रहा था तो उसके चाचा जी ने कहा चकुदार बनोगे का ? साथ ही उस समय गाँव में एक तुक कहा जाता था , " बेचो तरकारी या करो नौकरी सरकारी "  और एक तुक था  " प्राइवेट नौकरी एवं प्राइवेट छोकड़ी का क्या ग्रान्टी नहीं कब साथ छोड़ दे "। राजू शारीरिक रूप से भी विलकुल बच्चे की तरह था। वह बताता है की इन सब कारणों से वह मन ही मन निश्चय किया की वह नोकरी करेगा तो सरकारी वो भी सेना में। वह रात-दिन उसी के सम्बन्ध में सोचता , वह भर्ती के लिए जरुरी कागजात बनवाया तथा शारीरिक (फिजिकल) और लिखित परीक्षा का पूर्ण तैयारी कर लिया। वह लगभग पाँच से ज्यादा नियुक्ती प्रक्रिया में सम्मिलित हुआ ,वह कही भी कागजात ,शारीरिक (फिजिकल) और लिखित परीक्षा में नहीं छटता था। वह छटता था तो चिकित्सीय जाँच में। इसी दौरान वह सत्रह वर्ष पार कर गया , अब उसे उर्म के अनुसार लम्बाई में मिलने वाली छुट नहीं प्राप्त हो सकती थी। वह ट्रेड मैन भी बनना चाहता था। वह कहता था हमें कोई भी सरकारी नोकरी चाहिए। पहले से भी और भर्ती प्रक्रिया के दौरान भी उसे ज्ञात हुआ की सैनिको के पुत्र को लम्बाई में विशेष छूट प्राप्त होती है। उसके पिता श्री पहले सेना में कार्यरत थे , अपरिहार्य कारणों से वे लगभग सात वर्ष ही सेवा दिए और उसके वाद स्वेक्षा से से लिख कर सेवा निवृत हो गए थे। इसी दौरान राजू को सैनिक कल्याण बोर्ड का पाता चला , जो पूर्व सैनिकों के लिए कार्य करती है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है की उसके पिता जी कभी भी इस विषय-वस्तु पर कोई वर्तालाप नहीं करते थे। राजू उनका सेवा से निवृति पुस्तिका (डिस्चार्ज बुक) देखा था। इसी सिलसिले में वह अपना एक सहपाठी से बात किया जो उस से उर्म और तजुर्वा दोनों में बड़ा था।वह भी एक पूर्व सैनिक का पुत्र था।  उसके पास सैनिक कल्याण बोर्ड के द्वारा निर्गत किया गया रक्त सम्बन्ध (रिलेसन सर्टिफिकेट) था , जिसके आधार पर वह भर्ती प्रक्रिया में विशेष छूट प्राप्त करता था। राजू ने जब उससे पूछा तो वह सम्पूर्ण प्रक्रिया बताने के बाद कहा तुम्हारा यह कागजात नहीं बन सकता , क्यूकी तुम्हारे पिता जी नौकरी छोड़ कर आ गए थे। तुम्हें जेल भी जाना पर सकता है। राजू सोचने लगा अब क्या किया जाए। उसकी आर्थिक स्थिति उसे सोचने पर मजबूर कर रही थी। वह मन ही मन सोचा एसी जीवन जीने से अच्छा है की जेल ही चला जाऊ , वहाँ भर पेट खाना तो समय से मिल जाएगा। वह मन ही मन निश्चय किया की वह सैनिक क्ल्याण बोर्ड जरूर जाएगा। राजू अपने पिता जी को बिना बताए उनका सेवा निवृति पुस्तिका (डिस्चार्ज बुक) और उनका नौकरी से सम्बंधित दूसरे सभी कागज़ ले कर पास के शहर में जहाँ सैनिक क्ल्याण बोर्ड था वहाँ गया। वही के एक कर्मचारी को वह सारी कागजात दिखा कर सारी स्थिति बतलाया उस व्यक्ति ने उसे निर्देश दिया और बताया की इस टेबल पर एक साहब आएंगे उन्हें सिर्फ डिसचार्ज बुक दिखाना और अन्य कागज अपने पास रखो। उस टेबल पर एक व्यक्ति आया तो राजू ने उन्हें डिसचार्ज बुक दिखा कर सारी बात बताई तो वह व्यक्ति बोला तुम्हारे पिता जी कहाँ हैं। राजू बोला घर पर , फिर वह व्यक्ति बोला उन्हें ले कर आना , उनसे एक आवेदन लिखवाना जिस में विषय होगा , वह तुम्हारा रिलेशन सर्टिफिकेट चाहते हैं , साथ में तुम अपना दो पासपोर्ट साइज फोटो प्रखण्ड विकाश पदाधिकारी से अटेस्टेड राउंड स्टाम्प के साथ करा कर लाना।  जिस पर लिखा होगा की तुम इनके पुत्र हो। राजू घर आ गया और ए सम्पूर्ण बात अपने  पिता जी को बतलाया ,उसके पिता जी बोले मुझे सेना से कुछ नहीं लेना है , राजू बोला मुझे तो लेना है , फिर राजू की माँ ने भी दबाव बनाई। अगले दिन ये सारी करवाई कर वे दोनों पिता-पुत्र सैनिक क्ल्याण बोर्ड गए। वहाँ के अधिकारी ने पूछा क्या आपने अपना पहचान पत्र बनाया है तो वह बोले नहीं , फिर वह पहले उनका पहचान पत्र बनाया उसकेबाद राजू का रिलेशन सर्टिफिकेट। उस व्यक्ति ने पूछा इसका नाम शीटरोल एवं नाइन फाइप एट (958 ) में है , राजू के पिता जी बोले नहीं। वह व्यक्ति बताया की एक शपत पत्र (एफडेविट) बनाओ जिसमें लिखना इसका जन्म नोकरी से सेवा मुक्ति के बाद हुआ और मैट्रिक के प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट ) का फोटो स्टेट प्रमाणित करा कर लाना उसे अभिलेखागार (रिकार्ड) भेज दूंगा। वे इस सम्पूर्ण करवाई को पूर्ण किए , राजू इस सर्टिफिकेट के आधार पर भर्ती प्रक्रिया में सम्मिलित होने लगा। बाद में रिकार्ड से से एक पत्र आया जिस में जो कमी थी वह लिखा गया था , कुछ और कागज की मांग की गई थी , जिस में एक जन्म प्रमाण पत्र भी था जो उन लोगो के समझ नहीं आया , जिस वजह से वे लोग चुप हो गए।

                         इसी दौरान राजू एक स्थान से भर्ती प्रक्रिया का सम्पूर्ण स्तर को पर कर गया , उसके जिला सैनिक क्ल्याण बोर्ड के प्रमाण-पत्र के सत्यापन के लिए उसके पिता जी सर्विस रिकार्ड भेजा गया ,तो वहाँ से जवाब आया की उनका कोई पुत्र नहीं है जो भर्ती हो सके। इस सुचना से भर्ती कार्यालय , राजू को अवगत कराया था। यह सत्यापन जरुरी था ,क्योंकि राजू सत्रह (१७) वर्ष का आयु पर कर चूका था और उसे लम्बाई में छूट चाहिए थी , जो वह प्राप्त भी किया था। उसका नाम पिता जी के सर्विस रिकार्ड में दर्ज नहीं है , एसा सुचना भर्ती कर्यालय में आया है जब दोनों पिता-पुत्र को ज्ञात हुआ तो दोनों रिकार्ड ऑफिस गए तो वहाँ उन्हें वस्तु स्थिति का पाता चला। वहाँ के दफ्तर बाबू ने बतया की जन्म प्रमाण पत्र चहिये तथा उसने यह भी बताया की यह कहाँ और कैसे प्राप्त होगा। वे वहाँ से पुनः गाँव आए एक वकील से मिल कर सारी समस्या बताए। उन्हें ज्ञात हुआ की जो दफ्तर बाबू बताया है वह शहरी क्षेत्र में होता है पर उन्हें यह भी ज्ञात हुआ की गाँव में पंचायत सचिव जन्म प्रमाण-पत्र निर्गत करता है। वे लोग पंचायत सचिव से मिले फिर सारी प्रक्रिया पूरा कर विलम्ब शुल्क के साथ उन्हें जन्म प्रमाण-पत्र निर्गत किया गया। उसी समय वहाँ सभी कार्यालय यहाँ तक की न्यालय का कुछ भाग भी हड़ताल पर थी जिस कारण उन्हें सारी प्रक्रिया पूरा करने में बहुत मुशिकल का सामना करना पड़ा। उन्हें प्रथम वर्ग का मजिस्टेट से सत्यापित शपथ पत्र चाहिए थी जिसे उन्होंने बड़ी मुशिकल से तत्काल प्राप्त किया उसके बाद अंचल में अर्जी दिया तदुपरांत अनुमंडल से अनुमति प्रदान करवा कर जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त किया। राजू के पिता जी जन्म प्रमाण पत्र एवं अन्य कागज ले कर पुनः रिकार्ड ऑफिस (अभिलेख कार्यालय ) गए। वहाँ (रिकार्ड) में राजू का पार्ट -2  आर्डर (भग दो आदेश) हुआ और उसका एक प्रति उन्होंने राजू के पिता जी को दिया। उस प्रति को राजू भर्ती कार्यालय में दिखाया और निवेदन किया की जाँच (सत्यापन) का कागज पुनः भेजा जाए। भर्ती कार्यालय वाले मान गए।  उन्होंने पुनः सत्यापन प्रतिवेदन भेज दिया।  राजू का जाँच पुष्टि कागजात आने में बहुत देर हो रही थी , उसके पीछे के अभियार्थी नियुक्ति पा चुके थे। सेना में भर्ती चिकित्सीय जाँच का सर्त है , छः ( ६ ) माह उपरान्त पुनः पूर्ण चिकित्सीय जाँच होता है। राजू इस से बहुत घबरा रहा था। भर्ती कार्यालय वाले राजू को नियुक्ति के लिए बुलाए थे। वह जब वहाँ गया तो उसे पुनः ज्ञात हुआ की उसका अभी तक सत्यापन नहीं आया है तथा अमुक दिनांक के बाद नियुक्ति नहीं होगी। साथ में पास-पड़ोस वाले बोलते राजू पेंसन आ गया का ! कोई बोलता इसका नौकरी हो रहा है , यही बड़ा पढ़ा-लिखा और देहगर हुआ है इत्यादि टिपणी करते। इन सब बोल-बचन से राजू बहुत मायूस होता , उसके पिता जी उसे ढाढ़स बंधाते। नियुक्ति के दिन सत्यापन नहीं आया था और और नियुक्ति एक निश्चित दिनांक के बाद नही होगा ऐसा जानकर उसके पिता जी उसी समय रिकार्ड (अभिलेख कार्यालय) चले गए। वहाँ से तत्काल सत्यापन भिजवाया वो भी तीन माध्यम से , बाइपोष्ट , सिग्नल , तथा बाई हैण्ड (हाथ से ) दोनों का रिसिप्ट (पावती) संख्या ले कर आय , तब तक सत्यापन का पत्र भर्ती कार्यालय पहुँच चुकी थी। तब जा कर राजू को नियुक्ति मिला। इसी कड़ी में राजू बताता है की उसका शारीरिक माप-तौल भर्ती कैम्प में तो सही किया गया पर जब प्रवेश-पत्र (एडमिट कार्ड) लेने गया तो वहाँ का एक अधिकारी पुनः माप कर लम्बाई कम कर दिया। उसके लिए भी उसे मुख्य भर्ती अधिकारी से मिलना पड़ा , पुनः माप हुआ , उसे वही व्यक्ति मापा जो उसे भर्ती कैम्प में मापा था। उसने बताया बेटा तुम्हारा लम्बाई बिलकुल उतना ही है जितना चहिए , कैम्प में तो लम्बाई  को दबा कर मापा जाता है , मैं कैसे तुम्हे उतना ही माप दिया। उसके माप को मुख्य भर्ती अधिकारी ने देखा और एकिन करने के बाद लाल स्याही से प्रमाणित किए। तदनुपरांत उसे प्रवेश पत्र मिला। राजू के पिता जी भी बताते हैं की इसके जन्म प्रमाण पत्र के सत्यापन के लिए जब वे रिकार्ड (अभिलेख कार्यालय) गए तो उस दिन कार्यालय बंद था तथा अगले दिन उस टेबल पर कार्य करने वाला अवकाश पर था , वे अधिकारी से मिले और उन्हें बताया की राजू का नियुक्ति नहीं हो सकेगा अगर सत्यापन सही समय से नहीं पहुँचेगा। उन लोगों ने पूरा सहयोग किया और देखो नतीजा सामने है।  इन दोनों पिता-पुत्र के कथन के उपरान्त  मुख से अन्यास ही निकल जाता है "जो सोचा वो पाया" ।