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बुधवार, 22 मार्च 2023

आज के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं*

 

·      आज के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं

 

एक गंभीर प्रश्न है कि इंग्लिश मीडियम से या हिन्दी मीडियम से पढ़ कर आने वाले साधारण स्तर के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं और क्या उपलब्ध है, चाहे हिंदी में या इंग्लिश में। वे शायद आमतौर पर व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब पर ही निर्भर रहते हैं। क्या यह युवाओं को कैरियर, प्रेम और विवाह के प्रारंभिक सालों तथा सामाजिक राजनीतिक  मामलों पर सही पूरी जानकारी देने के लिए काफी है ? इसी तरह हिन्दी मीडियम के बहुत मेधावी युवा ज्ञान, मनोरंजन, विचारोत्तेजक सामग्री कुछ पढ़ पा रहे हैं ? दोनों समुह के युवा जीवन जीने की तकनीक जो समाचारों में नहीं मिलती कहां से लेते हैं या ले सकते हैं। हम लोग दोनों समुह के लायक काफी सामग्री दें रहे हैं ?

 

                              आज मनोरंजन के रूप में मोबाइल का इस्तेमाल युवा वर्ग जमकर कर रहा है, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम सहित यू ट्यूब चैनल पर तरह तरह की सामग्री परोसी जा रही है। प्रतियोगिता से सम्बंधित किताबें और पत्रिकाएं तो युवा वर्ग पढ़ रहा है, लेकिन मनोरंजन के लिए पत्र पत्रिकाएँ पढ़ने का प्रचलन घटते जा रहा है। पहले मनोरंजन के लिए बच्चे, युवा और राजनीति से अभिरुचि रखने वाले लोग माया, इंडिया टुडे, आउटलुक जैसी पत्रिकाएँ ख़रीदकर पढ़ते थे। दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ ख़ासकर सरस सलिल तो हर घर में देखने को मिलती थी। उस समय मनोरंजन और जानकारी के लिए हर उम्र और वर्ग के लोग पत्रिकाएँ पढ़ते थे। आज इसमें कमी आई है प्रतियोगी छात्र गंभीर लेख और जानकारी दैनिक अख़बार के संपादकीय पेज से लेते हैं।

 

             मेरी जानकारी में तो OTT युवाओं के मनोरंजन का अब पहला माध्यम बना हुआ है। मोबाइल पर OTT प्लेटफार्म उपलब्ध हैं इसीलिए वह उनकी ज़रूरत बना हुआ है। वाट्स ऐप या दूसरे सोशल मीडिया लैपटॉप में भी चलाए जाते हैं। जिन्हें प्रिंट में पढ़ने का शौक है वो अब भी पढ़ते हैं। हिंदी भी पढ़ते हैं। उन्होंने अपनी पाठ्य पुस्तकों में हिंदी कहानियां और कविताएं पढ़ी हैं तो वो उनके लिए अपरिचित नहीं है। लेकिन OTT और सोशल मीडिया उनकी पहली पसंद अभी बना हुआ है। उसके पीछे सामग्री प्रदाता (content  provider) की मजबूत विपणन रणनीति (Strong Marketing Strategy) होती है। युवाओं की रुचि समय के साथ बदलती रहती है। किताबें अभी फुरसत में और डिजिटल माध्यम में अधिक पढ़ी जा रही हैं लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहेगा।

 

               मैं खुद अपने ही घर में देख रहा हूँ। मेरे तीनों बच्चें अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन इनके पढ़ने का तरीका देख कर मुझे गुस्सा आ जाता है। फोन लैपटॉप से पढ़ाई करते करते, तिनों जाने क्या देखने लग जाते हैं। जब टोकता हूँ तो कहते हैं, अरे कुछ नहीं बस थोड़ा सा ही देख रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर बस बकवास ही देख रहे होते हैं। ज्ञान के अलावा  फेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे चैनलों पर बच्चों के लिए अश्लीलता भी कम नहीं भरी पड़ी है। अब बच्चों पर निर्भर करता है कि वह कौन सा ज्ञान लेना चाहते हैं।

 

                 वैसे, मुझे लगता है हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चें, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों से प्रतिभा में कम नहीं होते हैं। अंतर बस इतना है कि उन्हें हिंदी भाषा आती है और मुझे तो लगता है अंग्रेजी मीडियम वाले बच्चें ही ज्यादातर भाषा के मामले में कमजोर होते हैं। आज के समय में बच्चे काॅमिक्स , स्पाइडरमैन, सुपरमैन, शक्तिमान आदि से दूर हो चुके हैं इनके स्थान पर छोटे बच्चों के लिए हथोड़ी, मोटू पतलू जैसे कार्टून आते हैं जो ज्ञानवर्धक नहीं होते हैं और बड़े भी टीवी पर अधिक समय बिताते हैं या फिर, इंस्टाग्राम, फेसबुक यूट्यूब, वैवसीरिज आदि पर रहते हैं। बच्चे, युवा, बूढे और महिलाएं अपनी पसंद की सामग्री कहीं न कहीं तलाश ही लेते है पर इन सबसे उन्हे सतही जानकारी मिल पाती है चाहे अच्छी हो या बुरी। पुस्तके, शोध ग्रंथ या अच्छी पत्रिकाएं विद्वत समाज के अलावा नाममात्र लोग ही पढ़ते हैं यही हाल पत्रिकाओं का हो चुका है।

 

                दोनों ही स्तर के युवाओं में अगर राजनीतिक मामलों से संबद्ध जानकारी की भी बात की जाए तो युवा वर्ग में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई पड़ती, वह तब ही इसमें रुचि दिखाते हैं जब किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती है और तब वह इसके लिए मनोरमा ईयर बुक प्रतियोगिता दर्पण इंडिया टुडे आदि पत्रिकाओं को पढ़ते थे परंतु अब वह भी नहीं पढ़ते एक की इसके लिए भी उन्हें ऑनलाइन क्लासेज के जरिए सारी सामग्री उपलब्ध हो जाती है। जहां तक मनोरंजन का सवाल है इसमें भी जिन बच्चों का जन्म 1990 से 2010 के बीच हुआ है, वह समय जब मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम था और सोशल मीडिया की चकाचौंध से इस कदर प्रभावित नहीं हुआ था, उस समय के बच्चों में  किताबों के प्रति थोड़ी बहुत दिलचस्पी थी, बच्चों में हैरी पॉटर जैसे किताबों के प्रति अधिक रूचि रखते हुए हमने देखा है। लेकिन अब किताबों के प्रति कोई खास रूचि नहीं दिखती क्योंकि उनके लिए मनोरंजन हो या ज्ञान सबके लिए यूट्यूब, व्हाट्सएप अथवा फेसबुक एक आसान सा साधन बन गया है। जहां दिमागी  कसरत नहीं करनी पड़ती, किताबों के पन्ने उलटने जैसी मेहनत नहीं करनी पड़ती। बहुत ही कम युवा पीढ़ी होंगे जो किताबों में खास रुचि रखते हैं। किताबों में उनका रूचि बनाए रखने के लिए या उनके रूचि में वृद्धि करने के लिए लिखने वालों को भी खास मेहनत करनी पड़ेगी मुझे ऐसा लगता है। साथ ही उन अभिभावकों को भी जिनके बच्चे किताबों से कटते जा रहे हैं उन्हें भी उतना ही श्रम करना होगा। बच्चे किताबों से कट रहे हैं यह तो पक्का है। अब सवाल उठता है कि फिर समाधान क्या है? स्वास्थ्य वर्धक खाना स्वादिष्ट भी हो तो शायद बात बने। सही बात तो मनोरंजक ढंग से परोसें। बाकी आजकल के बच्चें किसी भी मीडियम में पढ़े हो अपने मनोरंजन और ज्ञान पाने के तरीके ढूँढने में माहिर होते है। टीवी, मोबाइल, गेम्स, मूवी वगैरह में से अपनी जरूरत के मुताबिक सीख ही लेते है और पोलिटिक्स हो या बॉलीवुड फैशन हो या करेंट इश्यूज़ हो सारे न्यूज़ से वाकिफ रहते है। विविध एप युवाओं के ज्ञान और मनोरंजन का साधन बन गए है। दुखद बात ये हैं कि किताबें हो या न्युज पेपर बस एक झलक मात्र के लिए हो गए है।

 

 

 

            अंग्रेजी मीडियम के बच्चें हो या हिन्दी मीडियम के बच्चें सबकी रुचि और रुझान समान है। मोबाइल/ कुछ ही सेकंड में मनोरंजन ज्ञान एक ही जगह उपलब्ध करा देता है। लेकिन आजकल बच्चों का रुझान सोशल मीडिया की ओर बढ़ा है। वैसे तो मोबाइल के द्वारा मुट्ठी में पूरी दुनिया है। मोबाइल बच्चों के मानसिक और शारीरिक सम्बन्धित बहुत सारी परेशानियां उत्पन्न कर रहा है। जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

 

 

 

श्री नरेन्द्र  कुमार

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगाॅंव,  थाना+अंचल – संदेश,

जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२

ईमेल –  nka35333@gmail.com

मोबाइल सं० – ८५८४०००९२३



*आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों*

 

आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों

      आज की पीढ़ी की मानसिक स्थिति कैसी है। जो एक असफलता या कोई विषम परिस्थिति आने पर किसी एक व्यक्ति से सम्बंध टूटने पर जान दे देते हैं। क्या उस व्यक्ति के बाद दुनिया ही नहीं रहेगी। क्या सफलता के सारे रास्ते बंद हो गए। क्या अब जीवन जीने कोई तरकीब या वजह शेष नहीं रहा। इसको समझना जरूरी है।

 

      अभी दस दिन पहले हमारे एक पड़ोसी के बेटे ने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, पड़ोसी बाहर पदस्थापित थे, पत्नी छोटे बेटे के साथ कही शादी में सम्मिलित होने बाहर गयी थी । इस बीच बेटे ने ये कदम उठाया । शायद पढ़ाई के तनाव के कारण यह घटना घटित हुई।

      पढ़ाई का दबाव हो या प्यार का मामला हो या अन्य कोई समस्या उससे संघर्ष करने के बदले आत्महत्या, उस समस्या से पलायन करने का आसान तरीका है। आत्महत्या की बढ़ती संख्या यह बताती है कि आज समाज में संघर्ष करने की शक्ति कितनी कम हो गई है। जीवन में असफलता मिलने पर आज के नौजवान अपनी जीवनलीला समाप्त करने पर उतारू हो जाता है वह यह नहीं सोचता सफलता पाने के लिए असफलता कि द्वार से ही गुज़ारना पड़ता है।

        पढ़ाई का दबाव और प्यार के मामले के अलावा माँ बाप का तनाव भरा रिश्ता घर का खराब माहौल , माँ या बाप का घर से बाहर अनैतिक सम्बन्ध भी एक कारण है । समाज में बच्चे जब बाहर उनके लिए फुसफुसाहट सुनते है तो कभी-कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते । माता-पिता द्वारा जो प्रतिशत का दबाव बना रहता है वो कम हो, जिससे बच्चे कम अंक लाने पर भी माता-पिता को खुलकर बता सकें। जिस विषय में रुचि हो वो भी बता सकें। अभिभावक को अपने बच्चे से उसकी मानसिक दृढ़ता को ध्यान में रखते हुए ही अपेक्षा रखनी चाहिए। ज्यादा अपेक्षा और उस अपेक्षा को पूरा करने के लिए दबाव बनाने से बच्चे उस लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाते या उतना परिश्रम नहीं कर पाते तो अवसाद में चले जाते हैं।

        आज कल के जो युवा हैं उनका पालन पोषण  इस तरह से किया जाता है कि जीवन में असफलता मिलते ही निराशा हावी  हो जाती है और आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगते हैं। आज के युवाओं में सहन शक्ति व विपरीत परिस्थितियों में काम करने की क्षमता का कम होने के बहुत सारे कारण है। जिसमें संयुक्त परिवार का विघटन और भावनात्मक दिमागी मनोवैज्ञानिक सहयोग का न होना भी एक महत्वपूर्ण कारण कहा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जीवन में इतना महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए कि उसके खातिर  व्यक्ति अपने जीवन को खत्म कर ले। बच्चों से हर अच्छी बुरी बात शेयर करनी चाहिए (विशेष किशोर बच्चों से) ये तो एकांगी बात हुई संयुक्त परिवार में किसी एक की मुसीबत पर सब सहायतार्थ खड़े होते थे । आज जैसा अकेलापन नहीं हुआ करता था।

        मेरी युवा बेटी ने एक तरह से पूछा ही मुझसे की उसके सारे दोस्त नव वर्ष की पार्टी रख रहे हैं तो वह भी जाएगी। उस पर हमें उस से कहना चाहिए था कि हाँ, ठीक है, जा सकती हो तुम। लेकिन जल्दी वापस आ जाना। मेरे कहने का मतलब होता जमाना ठीक नहीं है। लेकिन मैंने कहा कि उसे अभी अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस पर वह कुछ पल मुझे देखती हुई बोली कि उसे पता है, उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है। मैं चिंता ना करूँ, क्योंकि वह  बड़ी हो गई है। अपना ख्याल रखना आता है उसे। उसकी बात पर मुझे हंसी आ गई। लगा सच में मेरी बेटी बड़ी ही गई है। आज के बच्चे काफी समझदार हैं, उन्हें अपना भला बुरा पता है। पढ़ाई का दबाव हो या उसके दोस्तों को लेकर बात-बात पर टोका टाकी बच्चों को अपने अभिभावक से और दूर कर देते हैं। हाँ, सही गलत का ज्ञान देना गलत बात नहीं है। पर हिटलरशाही बने रहने से बच्चे और हाथ से बाहर निकलते चले जाते हैं।

      कई माता-पिता को कहते सुना है कि आज के बच्चे इतनी सुविधाएं मिलने के बाद भी ठीक से पढ़ते लिखते नहीं हैं। लेकिन उन्हें यह बात समझ में नहीं आती कि आज प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को सहयोग करनी चाहिए, न की दबाव दें। बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहने से माता-पिता और बच्चों के बीच ज्यादा मजबूत रिश्ता बन पाता है। ऐसा मुझे लगता है।

 

       मुझे लगता है कुछ अपवादों को छोड़ कर आज कल के युवा हमारे समय के युवाओं से बहुत ज्यादा समझदार और परिपक्व हैं। वे अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक हैं। वयस्क जीवन में उन्हें क्या बनना है और वे अपने गोल को पूरा करने में जी  जान लगाने से पीछे नहीं रहते। बच्चों पर कभी किसी तरह का दबाव मत डालिए। उन्हें उपदेश या सीख मत दीजिए। जो काम आप उन्हें करता हुआ देखना चाहते हैं। उन्हें आप स्वयं करिए क्योंकि बच्चे सदैव अपने माता-पिता का अनुकरण करते हैं। सदा उनसे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। मेरा तो मानना है कि बच्चे को जिस भी क्षेत्र में अपनी पहचान  बनानी है, बनाने दें, वरना, जीवन भर उनके मन में इस बात को लेकर कुंठा बनी रहेगी कि मैं जो करना चाहता था। करने नहीं दिया गया बच्चों पर अनुचित दबाव, एकतरफा प्यार और समस्याओं से पलयनवाद जैसे कारणों से अवसाद होता है और आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों के अलावा सच्चे दोस्त इससे उबरने का रास्ता बताते हैं। दुनिया में जीने के हैं सौ कारण है । उसे एक कारण से ना मिटाए पलायनवादी न बने। यह समस्या का समाधान नहीं कायरता की निशानी है।

 

 

श्री नरेन्द्र  कुमार

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगांव,  थाना+अंचल – संदेश, जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२