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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

* सेमी *

                      मैं सेमी अभी कहाँ हूँ और किस हालत में हूँ !ए मैं आपको बाद में बताउंगी मेरी हालत उन मानसिक विक्षेपितों जैसा हो गई है, जिन्होंने अपना ठौर-ठिकाना भुला दिया है। कुछ विक्षेपितों को अपना क्रिया-कलाप तो याद रहता है पर वे क्या और क्यूँ कर रहें हैं, इस पर उनका अपना पकड़ नहीं होता, साथ ही उन्हें इसकी भी भान नहीं होती। इन से मेरी हालत कुछ अच्छी है। क्यूँ के लिए तो मैं कुछ नहीं कर सकती पर क्या-क्या हो रही है औरक्या-क्या हमारे साथ हुई लगभग पूर्णतः नहीं पर अंशतः मुझे आज भी याद है। 

                           आप सोच रहें होंगे, आखिर यह कौन है ? इसकी कहानी क्या है ? इस पर विश्वास किया जाए या नहीं इत्यादि-इत्यादि। मैं आप को बता दूँ , "मैं आग्नेयास्त्र समूह का एक सदस्य हूँ।" मेरी यह कहानी आपबीती है। हमें लोग क्यों रखना चाहते हैं, हमारे उत्कृष्ट सदस्यों को कैसे प्राप्त करते हैं, जो इसके योग्य नहीं भी हैं।हमें रखने या प्राप्त करने का क्या तरीका है। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ की आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं मतलब आप हमारे द्वारा बयान की गई बातों को सत्य माने। 

                          आज ही नहीं प्राचीन काल से यह परम्परा रही है, जिन्हे हमारी आवश्यकता है, चाहे इसका कारण कुछ भी हो। जैसे आत्मरक्षा, सम्पत्ति सुरक्षा, दबंगई,रोजी-रोजगार प्राप्ति हेतु या शौखिया उन्हें शासन-प्रशासन द्वारा अनुज्ञा (लाइसेंस) प्रदान की जाती है। जिस पर मेरी प्रकार, संख्या और उनके तस्वीर के साथ उनका पूर्ण पत्र-व्यवहार एवं स्थाई, अस्थाई पता अंकित रहती है। निर्गत अधिकारी का हस्ताक्षर शील मुहर के साथ वर्ष को दर्शाया जाता है। मेरी और उनका अभिलेख सम्बंधित विभाग में सुरक्षित रहती है। 

                           आप को मैं यहाँ बता दूँ मैं या मेरी सहेली आज तक किसी का जान बचाई नहीं बल्कि लिए ही हैं। कोई कुछ भी दलील दे यह सिद्ध नहीं कर सकता की मेरे समूह का सदस्य किसी की रक्षा की हो। हाँ मैं यह मान सकती हूँ। जो हमें पहले इस्तेमाल करता है। वह किसी का पहले जान ले सकता है। हमारी जाती समूह का फितरत ही है, खून बहाना, जान लेना। कुछ लोग जो दिल के कमजोर ( यानि दिल का पुकार सुनने वाला, क्यों की दिल प्रथम बार सत्य और सही बोलता है पर लोग उसे अपने स्वार्थ, अभिमान एवं क्रोध से दबा देते हैं) और दिमाग के दुरुस्त होते हैं। वह हमें देखने के उपरांत समझौता में विश्वास व्यक्त करते हैं। मुझे इस्तेमाल न किया जाए ऐसा प्रयास करते हैं। 

                             मेरा नाम सेमी, कोई १५ बोर भी कहता है।  यह  ८.४ एम.एम. सेमी पुराने समय में या आज से पहले, मैं स्वचालित आती थी। अब वर्तमान में नहीं। वर्तमान में  मुझ में से स्वचालित वाली पुर्जा हटा दी गई है। सशस्त्र बालो को छोड़, सामान्य नागरिकों को स्वचालित आग्नेयास्त्र रखने की अनुमति नहीं है। इसके लिए न कोई अनुज्ञा निर्गत की जाती है। अब मैं आप को अपनी व्यथा सुनाती हूँ। 

                             बिहार का दियारा क्षेत्र जहाँ शासन-प्रशासन के लोग कभी कभार ही जाते हैं। वर्षा के मौसम में नाव की सवारी कर यहाँ लोग आसानी से आवा-गमन करते हैं। यह क्षेत्र सोन और गंगा नदी के पेटी के मिलने से बना है। यहाँ नाव और आग्नेयास्त्र लगभग प्रत्येक घर में मिल जाएगी। कुछ क़ानूनी कुछ गैर क़ानूनी। वर्षा का मौसम छोड़ अन्य समय में किसी व्यक्ति को अनजान व्यक्ति द्वारा ढूँढना बड़ा कष्टकर एवं मुश्किल है। इसी दियरा क्षेत्र में एक टोला है, 'मान सिंह का टोला।' यहाँ एक घर में दो भाई हैं। एक का नाम सुरेन्द्र सिंह दूसरे का नाम महेन्द्र सिंह। इनका अपना घाट चलता है, जिसका घटवारी इन्हें प्राप्त होता है। इनके पास कई नाव हैं, जो मोटर चालित है। इनसे ए सवारी एवं माल (सामान) ढोने के साथ बालू  निकलवाने का भी काम करवाते हैं। इसके अलावे ये दोनों भाई बालू घाट में पट्टा पर कार्य करते हैं। इनके पेशा एवं सोच ने इन्हें आग्नेयास्त्र का शौकीन बना दिया। ऐसे इनके पास कई आग्नेयास्त्र हैं। जैसा की आपको बिदित है अब सेमी स्वचालित का अनुज्ञा नहीं मिलती है। फिर भी इन्होने ऐसे किसी जोगाड़ तंत्र से बनवा लिया। जिसे हम फर्जी भी कह सकते हैं। उसी अनुज्ञा पर ए मुझे प्राप्त किए। जो लोग आग्नेयास्त्र रखने की मानशिकता रखते हैं उन सभी में मैं, सभी की पहली पसंद हूँ। यहाँ से पास के शहर आरा में पाँच भाई रहते हैं। इनमें दो का नाम सभी जानते हैं। तीसरा भी सर्वगुण आगर है और  दो व्यवसाय में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। वहाँ से आस-पास के क्षेत्र में कोई भी बड़ा काम क़ानूनी हो या गैर कानूनी इन्हें बखूबी जानकारी होती है। उस कार्य में ए सहभागी रहते हैं या या उस काम को कौन सी गुर्गा कर रहा है या किया है इन्हे बखूबी मालूम होती है। ऐसे ए यहाँ एक व्यवसाई की हैसियत से जाना जाता है। पैसा एवं राजनीति के खेल में इनकी अच्छी पैठ है। इनके पास आस-पास के इलाके के बेरोजगारों एवं मुफ्त के फुटानी करने वालो की, एवं जिन्हें अपने योग्यता से ज्यादा पाने की लालसा होती है। जो समाज में दबंगई दिखाना चाहता है, जिसे कुछ लोग लफूआ भी कहते हैं। जो शारीरिक परिश्रम नहीं करना चाहते और झूठ-मूठ की जाती एवं पूर्वजों के प्रतिष्ठा से चिपके हुए हैं। उनका एक फौज इन्होंने रख रखा है और उनका बखूबी इस्तेमाल भी करते हैं।

                        आप को आगे बता दू की मेरी खबर भी इन्हें लगी। मेरा उन दोनों भाइयों के पास होना इन्हें अच्छा नहीं लगा या यूँ कहे की इनका दिल मेरे उपर आ गई। दोनों भाई मेरा भरपूर इस्तेमाल करते। मेरा उनके पास होना उस क्षेत्र में उनके लिए गर्व की बात हो गई थी। मैं जब उनके पास होती तो वे नदी के दूसरे छोड़ के घाट से विरोधी को उतरने भी नहीं देते। उधर व्यवसाई बंधु उर्फ़ सेठ जी हमें पाना चाहते थे या यूँ कहे की उन दोनों भाइयों से हमें अलग करना चाहते थे। इसी बीच संयोग से उसी क्षेत्र के दूसरा टोला जिसका नाम बथानी टोला है। वहाँ के एक गुर्गे ने मुझे उन दोनों भाइयों से नव पर ही धोखे से हथियाँ लिया। वे दोनों भाई उसे जानते न थे न वे लोग ही उसे जानते थे। पर वे किस स्थान के निवासी है वे दोनों भाई जान गए। मैं कहाँ हूँ और मुझे कौन रखा है, वे लोग किसके घर के थे इसके लिए उस क्षेत्र में तनाव व्याप्त हो गई। मेरे चकर में कई लोगों का जान चली गई। कई बार पंचायत हुई। मुझे छुपा दिया गया ताकी मुझे रखने वाले की पहचान उजागर न हो। वह गुर्गे के लोग जो मुझे उन दोनों भाइयों से हथियाया था। वे बथानी टोला के स्थाई निवासी नहीं थे। वे समय रहते वहाँ से खाली हाथ हीं निकल गए। इसका मुख्य कारण उस क्षेत्र में दोनों भाइयों का वर्चस्व था। जो व्यक्ति मुझे इनसे हथियाया था, वह उनसे सही तरीके से परिचित नहीं था। पर उन दोनों भाइयों को पूर्ण विश्वास था की वह सख्स बथानी टोला का ही है और यह सत्य भी था। इनके लिए वहाँ से मुझे निकालना आसान भी नहीं था। क्योंकि मैं किसके पास हूँ यह उन्हें मालूम न था। दोनों भाई अपने गुर्गे के साथ वहाँ गए पर इनका हथियार ले कर दबंग की तरह वहाँ आना वहाँ के लोगों को नागवार गुजरा। वहाँ के लोगों से उन्हें किसी प्रकार का सहयोग न मिला बल्कि उनका विरोध उन्हें झेलना पड़ा। वे वहाँ से खाली हाथ लोगों को कोसते हुए वापिस आ गए। उन दोनों भाइयों ने आपस में बैठ कर एक योजना बनाई और सही समय का इंतजार करने लगे। लोग समझे वे शांत हो गए, पर वे कब शांत होने वाले थे। वे मुझे पाने को व्याकुल हो रहे थे। जैसे उनका संगी गुम हो गया हो या उसे कोई भगा ले गया हो। मेरा खो जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वे अपना तौहिणी समझ रहे थे।

                                  वर्षा का मौसम था। सोन और गंगा नदी का पाट  पूर्णतः भरा हुआ था। जैसे शेर दहाड़ता है, हाथी चिंघाड़ता है उसी प्रकार दोनों नदी के आवाज से लोग शांत हो रहे थे। उस समय लगभग सभी लोग अपने-अपने घरों में ही रहना पसंद करते हैं। उस नाज़ुक स्थिति को देखते हुए दोनों भाइयों एवं उनके गुर्गे ने बथानी टोला को चारों तरफ से नव पर सवार हो कर घेर लिया। उस समय वह टोला समुद्र में एक छोटा द्वीप (टापू) से ज्यादा कुछ नहीं था। दोनों भाइयों ने समुचित आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए, लोगों का सम्बोधन किया और अपनी बात बताई तथा सभी का तलाशी लेना चाहा। उनके इच्छा का किसी ने बिरोध भी नहीं किया। जो लोग थोड़ा कुनमुन कर रहे थे, वे भी वस्तु स्थिति को भांपते हुए चुप एवं शांत रहने में ही भलाई समझा। वे छानबीन कर लिए पर मैं उन्हें वहाँ कहा मिलने वाली थी। मैं जिसके पास थी वह मुझे बचाने के लिए या फिर उनके डर से उस दहाड़ में भी एक छोटी सी नाव पर ले कर सो रहा था। उस नाव को आम तौर पर डेंगी भी कहते हैं। मुझे वहाँ उस स्थिति में रखी जा सकती है। वे लोग सोच भी न सके। वे पुनः खाली हाथ वापिस लौट गए। वे समुद्र की तरह बिलकुल शांत हो गए। पर उनके मुखबिरों का दल सक्रिय रहा।

                            मैं  कहाँ और किसके पास थी या हूँ इसकी सूचना सेठ बंधुओं को बखूबी थी। उनका तार उस गुर्गे से जुड़ा हुआ था। जैसा की मैं पहले बता चुकी हूँ। वे भी हमें प्राप्त करने का इच्छा रखे हुए थे। ऐसा नहीं की वे मुझे पा नही सकते थे पर वे इसके लिए कोई बड़ा कीमत चुकाना नहीं चाहते थे। यहाँ कीमत का मतलब रुपया-पैसा नहीं है। मैं जिसके पास थी उस में और सेठ बंधु के आदमी में मेरे सौदे की बात पक्की को गई। समय स्थान सब निश्चित हो गया। यहाँ भी सेठ बंधु पर्दे के पीछे ही रहे। वे नहीं चाहते थे की उनका भी तार इस में जुड़ा हुआ है या मेरी कोई खबर उनके पास है। उन दोनों भाइयों को मालूम हो। उधर दोनों भाई मुझे खो जाना अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रहे थे। वे मुझे किसी भी कीमत पर प्राप्त करना चाहते थे। उन्हें जैसे ही मेरे सौदे की भनक लगी। उन्होंने वहाँ अपना जाल बिछा दिया, पर वहाँ भी दोनों दल पहले से ही सतर्क था। जैसे ही दोनों दल मैदान में आई दोनों भाइयों का दल भी उसमे सम्मिलित हो गया। तीनों तरफ से गोली चली और दो लोग वहीं ढेर हो गए। मैं उन्हें वहाँ भी नहीं मिल सकी। मुझे उसी क्षेत्र में छुपा दिया गया। यूँ कहे हमें मम्मी बना दफ़ना दिया गया। मारे जाने वाले में दोनों भाइयों के दल में से कोई नहीं था। मेरी अदला-बदली करने वाली दल में से ही मारे गए थे।

                          उधर इस घटना की खबर सेठ बंधुओं को ज्ञात हुआँ। उन्हें इसका दुःख भी हुआँ। उन्हें दुःख से ज्यादा यह चिंता थी की कही वे मुख्य पृष्ठ पर न आ जाए। वे उस क्षेत्र का मुख्य कार्य (काम) उन दोनों भाइयों से ही करवाते थे। उस क्षेत्र में किसी कार्य की सफलता के लिए उन दोनों भाइयों की सहमति जरूरी चाहिए थी। सेठ बंधु अब यहाँ सुलह चाहते थे। उनके प्रयास से उस क्षेत्र के सभी गुर्गो को एकत्र किया गया। इस प्रकार की घटना पुनः न दोहराई जाए, इसके लिए दोनों भाइयों को मनाने की प्रयास किया गया। दोनों भाइयों ने कहाँ हमें हमारा हथियार चहिए। सेठ जी ने उन्हें मुझे और उस घटना को भूलने का अपील किया। वे उन्हें मेरे बदले में या मुझे भूलने के लिए अपने तरफ से पैसे देने का पेशकश किया और कहा उस में क्या रखा है, कोई दूसरा ले लो। दोनों भाइयों ने पैसा लेने से इंकार कर दिया और कहा पैसे की बात नहीं है। हम इतने दयनीय स्थिति में नहीं हैं की हमें आप से आर्थिक मदद लेनी पड़े। वहाँ राय विचार और अन्य लोगों को हिदायत दे कर उस घटना को दोनों भाइयों के जेहन से विसारने का प्रयास किया गया।

                          मैं आज गुमनाम स्थिति में हूँ। मेरे खोने का कसक दोनों भाइयों के दिल में आज भी है। मुझे जिस दिन सक्रिय किया गया या मैदान में निकालने का प्रयास किया गया और उसका भनक दोनों भाई को लगी तो पुनः पुरानी घटना दोहराई जा सकती है। वर्तमान में मेरे सम्बन्धी सभी लोग शांत हैं। भविष्य में मुझ से सम्बंधित कोई घटना क्रम घटती या होती है तो उन सभी के साथ मैं पुनः आप से अगली कड़ी में मुखातिब होउंगी। तब तक के लिए राम-राम।