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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

* शर्त (बाजी) *

                   र्त जितना ही छोटा शब्द है , इसकी परिणाम और इसे पूरी करने के लिए लिया गया प्रतिज्ञा और इच्छा उतनी ही बड़ी होती है। इस जगत में जितने प्रकार के लोग हैं , उतने ही प्रकार के शायद शर्त  भी है। लोग एसे भी शर्त  लगाते हैं ! हमने सोचा भी नहीं था। वो भी औरत। जब पूरी बात मेरा दोस्त राजु ने बताई तो मैं दंग रह गया। आज उसकी आपबीती को कलमबंद करने जा रहा हूँ। 

                      राजू  सभ्य नेक और चरित्रवान लड़का है। उसके चरित्र पर उसके घर वाले , खास कर माँ और बहन को पुरा भरोसा है। वह हर कार्य को समय से संपन्न करता है। उसे अपने पास-पड़ोस और समाज से सराहना मिलते रहता है। उसे (राजू  को) उसके दोस्त नागा के नाम से भी कभी-कभी सम्बोधित करते रहते हैं। नागा जैसा की मैं जनता हूँ  , भारत में साधुओं का एक वर्ग है जो स्त्रियों से दूर रहते हैं। उनका शरीर और विचार पर नियंत्रण रहता है। शायद इसी तुक या तर्क का इस्तेमाल उसके दोस्त उसके प्रति करते हैं। 

                          राजू  तीन भाई दो बहन है। एक भाई उससे छोटा और सभी भाई-बहन उससे बड़े हैं। दोनों बहन की शादी हो गई है। राजू  के बड़े भाई का शादी हुआ उसके तदुपरांत (तुरन्त बाद) की यह बात है। शादी बड़े धूमधाम यानी अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार, नोक-झोक के साथ सम्पन्न हुआ। दुल्हन यानि राजू जी की भाभी जी घर आ गई। रीती-रिवाज के अनुसार पूजा-पाठ हुआ , चौठारी हुई साथ में सगे-सम्बन्धी जो शादी में सपरिवार आए थे , वे भी अपने-अपने घर को जाने लगे और चले भी गए। उसके यहाँ सिर्फ उसके दोनों बहन रुक गई , इसका कारण था की राजू की माँ को कही रिस्तेदारी में खास वजह से जाना था। राजू भी अपनी माँ संग गया ,वहाँ से वे लोग डेढ़ माह के बाद वापिस आए। वापिस आने के बाद राजू बताता है की वह भी अपने दिनचर्या के अनुसार अपने कार्यो में व्यस्त हो गया। उसी दौरान उसे आभास हुआ की जरूर कोई बात है।  फिर उसे जो जानकारी  प्राप्त हुई वह चौकाने वाली थी।

                            वह बताता है की शादी के वाद वह (राजू) और माँ घर पर नहीं थे। घर पर उसके भैया-भाभी , पिताजी दोनों बहन , छोटा भाई और एक चाची जी थी। भाभीजी अच्छी थी यानी दिखने में आकर्षक थी। उन्हें घर का सभी सदस्य मानते थे। उनका छोटा देवर यानि राजू का छोटा भाई उनसे नहीं भी तो ८ वर्ष छोटा होगा। उनका पूरा ख्याल रखता था। वह जो कहती थी , वह उस आदेश को तत्परता से निपटाता था। ननंद भी उन्हें मानती थी पर कुछ समय बाद उनके आचार-व्यवहार से दोनों नाखुश रहने लगी। एक तो बड़ी वाली दिखने में उतना चरफर नहीं थी , पर वह हर बात को गुनती थी , वह अपनी सुविधा या सहुलियत के अनुसार ही किसी से कोई वार्तालाप करती थी। वह किसी को सवारने , सलाह देने या किसी की जीवन में उसके रहने के तरीके में दखलंदाजी नहीं देती थी। उसे सिर्फ समय से खाने और आराम करने से था। वही राजू की छोटी बहन चरफर थी। कैसे रहना है , क्या करना है , किसी से क्या बोलना है इत्यादि पर ज्यादा ध्यान देती। साथ ही वह घर में महिला सदस्यों में छोटी भी थी जिस से उसे रसोइयाँ का सारा कार्य करना पड़ता था। प्रारम्भ में तो सौख से करती थी पर बाद में उसकी मज़बूरी हो गई। ज्यादातर गाँवो में कोशिस किया जाता है की नई दुल्हन को सवा माह चूल्हा-चौका न करनी पड़े। यह रिवाज उन पर भाड़ी पर गई। उनकी भाभी कोई काम में तो हाथ नहीं बटाती साथ में अपनी साडी कपडा खोल कर छोड़ देती थी , जिसे उनकी छोटी ननंद धोती थी। अती  तो तब हो गया की जब वह अपनी अन्तरंग वस्त्र भी छोड़ने लगी। चाची को इस सब से कोई मतलब नहीं था। एसे वह अलग खाना खाती थी , पर उनका आंगन एक ही था। उनका काम था उतार-चढ़ाव बोलना , कभी भी वह एसा नहीं बोलती थी जो किसी के लिए सही हो। उनका मोटो था " हम को क्या लेना है " एसा क्यों बोला जाए की अगला को अच्छा न लगे। जैसा की सभी जानते हैं , चोरी करना गलत है पर वह यह  बोल कर भी खुश नहीं हैं , अगला को नाखुश नहीं करना ही उनका मकसद था।

                            इसे हम नारी नीति भी कह सकते है , सभी अपने-अपने स्थान या तर्क के अनुसार सही हो सकते हैं। आपको बताते चले की इसी सवा माह में ही राजू के भाभी और छोटी बहन में कहासुनी हो गई। राजू के छोटी बहन को उसके भाभी और छोटे अनुज का रहने का तरीका अच्छा नहीं लगा । राजू की बहन ने भाभी से कही "आप बड़ी हैं आप एसा कैसे कर सकती हैं , किसी को सवार नहीं सकती तो आप को उसे बिगारने का कोई अधिकार नहीं है।" इसबात पर उनकी भाभी बोली "मैं कैसे भी रहूँ आपको क्या ? मैं घर के प्रत्येक सदस्य को अपने कस में अपनी मुठ्ठी में रखुँगी , उसके लिए हमें चाहे कुछ भी ककरणी-करानी परे।" तब राजू की बहन बोली देखती हूँ ! उसकी भाभी बोली देखना राजू भी मेरे इसारो पर नाचेगा।

                            राजू और उसकी माँ रिस्तेदारी से घर आ गए। माँ के डर या लाज-लिहाज से सभी लोग अपनी-अपनी कामो का सही से निष्पादन करने लगे। माँ का टोका टोकी शुरू हो गया जो एक सही अभिभावक को करनी चाहिए।  कुछ रोज रहने के बाद राजू की बड़ी बहन अपने ससुराल चली गई। राजू के रिस्तेदारी से आने के बाद दोनों बहनों में कुछ कहा-सुनी या राय-सुमारी हो रही थी।  जिसे राजू पूरी तरह सुन चुका था। उसकी बड़ी बहन बोली तुम्हे उस सब से क्या लेना है , रहना है तो चुप-चाप कुछ दिन रहो। तु सभी को सवारने , चरित्र निर्माण का ठिका ली हो का ? कैसे रो रही थी , भाई हम तो चली। पर छोटी बहन कुछ नहीं बोली। राजू सभी सभी बातों को सही तरीके से समझ लिया। उसे यह भी मालूम हो गया की दोनों ननद भाभी में शर्त लगी है की कैसे उसे (राजू को) तुम कस(वस) में करती हो।

                                राजू बताता है की वह भी मन ही मन सोचा देखता हूँ , भाभी जी कौन सी मंतर चलाती हैं। जैसा की हमें ज्ञात है राजू  कर्त्तव्य निष्ट है।  वह अपने स्तर का सारा कार्य को बखूबी निपटाता है। गाँव-घर में जितनी एक व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है।

                                भाभी राजू का बखूबी ध्यान रखती थी ,राजू भी उनके हर आदेश (कार्य) को निपटाता था , पर वह पहले अकेला में माँ से आज्ञा लेता था या उनकी जनकारी के लिए बता देता था। भाभी जी भी उसके खाने-पिने का पूरा ख्याल रखती थी। वह जब शाम को जब घर आता तो भाभी जी उसकी हाथ पैर में तेल लगाती , सर दबाती जो उसे अच्छा लगता था। कही से कोई खाने की वस्तु आती तो वह राजू के लिए अवश्य रखती थी। यह सारी  बातें राजू को बहुत अच्छा लगा। पर वह भाभी को कुछ भी ला कर देता तो माँ को अवश्य बता देता। राजू उनसे आँगन में ही बात करता था। राजू अगर शाम को खाना खाने आता तो अगर खाना बन रहा होता तो वहीं रसोई घर में ही बैठ कर खा लेता। रसोई घर दो तरफ से खुली थी।  जब खाना बन जाता तो सभी लोग आँगन में ही खाते।  भाभी जी अपना विशेष प्रभाव न देख जान गई की राजू शख्त मिजाज का है। वह यह भी जान गई की राजू सभी बात को माँ जी को बता देता है या जो हमें वह ला  कर देता है वह पूर्ण रूप से छुपा हुआ नहीं है तो वह उस से दूसरी तरह से पेस आने लगी। वह उसे तेल लगाती तो उसके सर से अपनी उरेज सटा देती ,उसके सर में घर्षण करती कभी चुम्मा ले लेती इत्यादि कामुक गतिविधियाँ करती। राजू भी मन ही मन सोचा आखिर देखना चहिए की यह कितनी स्तर तक निचे गिर सकती हैं। राजू उन्हें सह देने लगा तो वह...... स्तर तक पहुँच गई , पर राजू वहाँ से वापिस आ गया। वह उस गर्त में नहीं गिरा (उतरा) । वह बता रहा था की अब वह उनसे न तो ज्यादा बोलता है और न ज्यादा सम्पर्क रखता है। वह कहता है की उनके लिए वह पहले वाली प्रतिष्ठा भी उसके दिल में नहीं रहा। अब दिखावे के लिए दुनियाँ वालों के सामने औपचारिकता के लिए अभिवादन अभिनन्दन होता है। आगे राजू कहता है की वह इतना आगे इस लिए पहुँचा की वह उनकी वास्तविकता जानना चाहता था की क्या एसा भी हो सकता है की , "र्त" के लिए एक शादी-शुदा स्त्री ..... गर्त के स्तर तक जा सकती है। उसके इस व्यवहार से घर में कुछ भी हो सकता है। क्या एक पुरूष औरत को उसी के विचार से नहीं बांध सकता है ? उस पर अपनी मर्जी नहीं डाल सकता ? एसा हो सकता है। राजू कहता है की मेरा ह्रिदय कहा की यह एक सभ्य पुरुष के लिए उचित नहीं है। इसे बाद में ब्लैक मेल की संज्ञा भी दी जा सकती है , अगर आप किसी यंत्र का इस्तेमाल करते हैं। साथ में इसे नैतिक रूप से भी सही नहीं ठहराया जा सकता। राजू उन से दुरी बना लिया और मन में निश्चय किया की वह न तो कभी किसी के आगे शर्त रखेगा यानि अनावश्यक बाजी नहीं लगाएगा ,  हो सकेगा तो वह इस विचार का प्रसार भी करेगा। जिस से शर्त लगाने की प्रवृर्ति हतोसाहित हो सके।