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बुधवार, 23 सितंबर 2015

* एक पहलु *

                 आज सभी जगह समानता की लड़ाई जारी है। इसके लिए सभी स्तरों पर जागरूकता अभियान , आंदोलन चलाए जा रहें हैं। घर और समाज सभी जगह इसी पर चर्चा जारी है। जैसे महिला शसक्तीकरण , लड़का-लड़की एक समान के नारे लगाए जाते हैं।

                 अगर भारतीय इतिहास पर ध्यान दिया जाए तो सारी शक्ति महिलाओं के पास ही थे। सृष्टी निर्माण का श्रे भी एक महिला आदि शक्ति को ही जाता है। भारत में न तो पहले प्रदा प्रथा थी न ही सती प्रथा। आज एसे अनेकों कुरुतियाँ हैं जो पुरातन भारत में नहीं थे। नारी को शादी से ले कर जीवन के सभी क्षेत्रो में स्वंत्रता प्राप्त थी। धीरे-धीरे उनका स्तर गिरता गया और उनकी आज यह स्थती है। सभी अपने स्तर के लिए स्वयं उतना ही दोशी होते हैं जितना दूसरा।

                एसे विभिन्ता तो सृष्टी का नियम है , न विभिन्ता समाप्त हो सकती है न सभी समान हो सकते हैं। सृष्टी को गतिमान रहने के लिए दोनों को रहना ही होगा। हम चाह कर भी इसे नहीं मिटा सकते। अगर हम कहे की लिंगता का निर्धारण कैसे होता है , तो पहला आधार जैविकता है ,जिसमें शारीरिक संरचना आता है अर्थात शरीर की आंतरिक और ब्राह्य बनावट। दूसरा आधार समाजिक है। जन्म के साथ ही जैविक आधार पर उसे खान-पान , पोशाक , माहौल , सोच दिया जाता है। जिसके कारण एक अलग सोच , रहन-सहन , बोल-चाल विकसित हो जाता है। जो लिंगता निर्धारण का आधार बनता है।

                  आज पुनः समाज , परिवार के सदस्यों का खास कर माता-पिता का अपने लड़कियों के प्रति नजरिया बदल रही है। ए इनके (लड़कियों के) विकास और उथान के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हो रहे हैं , साथ में ए (माता-पिता) उस से आशा भी करने लगे हैं। वे अपने लड़कियों को अपना जीने का आधार और वृद्धा अवस्था या उसके पहले जरुरत पड़ने पर उसे अपना सहारा मान रहे हैं। बड़े लोग जिनकी आर्थिक स्थिती बहुत अच्छी है उनको छोड़ , मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवार की सम्पति उनका संतान ही होता है। जिसके सहारे इस परिवार के बुजुर्ग अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

                  अब नारी वर्ग यानि महिलाओं का कर्त्वय बनता है की जब उनका परिवार उनके प्रति समर्पित है या थे, तो वे भी उनके निर्वाह के लिए अपना हाथ बढ़ाएं , जिससे समाज के अन्य परिवारों और लोगों की यह भर्म जाती रहे की लड़कियाँ पराई सम्पती है। अगर लड़कियाँ इस ओर अपनी हाथ नहीं बढ़ाती हैं तो जैसे आज के कुछ लड़कों के कारण उनके परिवार का मोह भांग हो रहा है , वे अपनी जिम्मेदारी (जिम्मेवारी) लड़कियों को दे रहें हैं या खुद कर रहें हैं। वृद्ध लोग अपने देख-भाल के लिए संघ बना रहें हैं या अपनी देख-भाल के लिए किसी संगठन को पूर्व सर्त अनुसार भुगतान कर रहें हैं। अगर लड़कियाँ भी अपनी जवाबदेही नहीं समझेंगी तो लड़कियों से भी  इनका पुनः मोह भंग हो जाएगा। आज मध्यवर्गीय परिवार के कामकाजी लड़कियों को इस ओर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। हम आगे कुछ उदाहरणों का वर्णन करूँगा जिस से समाज में पुराने नजरियाँ को कायम रखने में मदद मिलता है।

                  हम जहाँ रहते हैं वहाँ की कुछ लड़के-लड़कियाँ जो तुरंत मैट्रिक या इण्टर उत्तीर्ण  किए थे। वे आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए टियुसन पढ़ाना सुरु किया जो उनके विकाश में सहायक भी साबित हुआ। इसमें हमने गौर किया की लड़के अपने खर्च को कम कर उसी में से घर वालो को कुछ राशि दे देते थे या अपनी पढाई इत्यादि का पूर्ण वहन करते थे , पर वहीं लड़कियाँ उस पैसे से कभी अपना कपड़ा तो कभी कोई श्रृंगार और जेवर खरीद लेती थी। अपनी पढाई तो जारी रखती थी पर अभिभावक से नामांकन , रजिस्टेस्न , फार्म भड़ते समय सहयोग कि मांग करती थी। अभिभावक भी कुछ नहीं बोलते थे और कहते , इसको पराये घर जाना है ,अभी नहीं पहने ओढ़ेगी तब कब ए सब करेगी।  ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगो को यह भी कहते सुना की हमें लड़की की कमाई नहीं खानी , जो अभिभावक की मनोवृति को दर्शाता है। समाज में अपनी स्थान बनाने के लिए लड़कियों को भी अपनी सोच बदलने की जरुरत है।

                    एक अन्य घटनाक्रम :- मेरा एक दोस्त है विनय राय। उसके परिवार में उसके माता-पिता , स्वयं एवं उसकी पत्नी के अलावा उससे दो वर्ष छोटी बहन एवं बहन से तीन वर्ष छोटा भाई है। इनके माता-पिता मध्यवर्गीय परिवार के हैसियत अनुसार इन्हे पढ़या लिखाया। विनय इण्टर उत्तीर्ण  होने के उपरान्त भारत सरकार के कर्मचारी के अंतर्गत कार्यरत हो गया। उसका घर की स्थिति अच्छी थी। विनय के नियुक्ती के उपरांत आर्थिक तंगी बिलकुल जाती रही। विनय अपना पूरा वेतन पिता जी को सुपूर्त कर देता था। इसी दौरान उसकी बहन आशा स्नातक उत्तीर्ण कर गई। तदनुपरान्त आशा सि०आई० एस० एफ० (C.I.S.F.) में एस० आई० ( S.I.) पद के लिए निवेदन की , परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए वह एस० आई० पद पर नियुक्त हो गई। विनय और उसके परिवार के सारे सदस्य खुस थे।

                        उसके (आशा की ) नियुक्ति के तीन वर्ष बित चूका था। विनय एक दिन बैठा कुछ सोच रहा था। मैं उसके पास गया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा क्या बात है। वह सारी बात बताने लगा। वह बोला बहन की शादी करनी है। तुम जानते ही हो वह C.IS.F. में S.I.है उसके अनुसार ही तो घर-वर ढूँढना पड़ेगा।  मैं बोला दिकत काहा आ रही है। तुम कमा ही रहे हो उसकी सेवा भी तीन वर्ष से ज्यादा हो गई , पैसे की तो कोई कमी नहीं होनी चाहिए। वह बोला क्या बात करते हो उसके वेतन में से पैसा कहाँ बचता है। वह सारी पैसा खर्च कर देती है। मैं बोला कैसे ? विनय बताने लगा , वह अपने वेतन से अपनी खर्च चलाती है , अपने लिए सभी सुख-सुबिधाओं की वस्तु  खरीद रही है। साथ में आभूषण (जेवर) बनवाती रहती है। अपने लिए महंगा-महंगा कपड़े की सेट और क्या-क्या खरीदती रहती है। साथ में फ्लैट भी किराए का है। हम लोगों के लिए भी उपहार खरीदती रहती है। हम लोग उसके पास जाते हैं तो रहने खाने से भर्मण का सारा खर्च वही व्यय करती है। जब वह घर आती है तो सभी के लिए कपड़ा लाती है जाते वक़्त पिता जी को पाँच-सात हजार रुपया हाथ में दे देती है। मैं कहा इसमें क्या बुड़ाइ है , वह कम से कम सभी का जीवन स्तर तो उच्चा कर दी तो वह हँस दिया। मैं बोला तुम उसके शादी के खर्च के लिए कभी उस से या पिता जी बात किया ? विनय बोला किया था , पिता जी बोलें 'बेटी है' , क्या बोलें , उसकी शादी का खर्च तो हमारी जवाबदेही है। अगर तुम भी अपना वेतन हमें नहीं देते तो मैं क्या कर लेता ? उसके आय पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। इतना तो है की वह जहाँ रहेगी खुश रहेगी।  कुछ माह के बाद हमें ज्ञात हुँआ कि विनय अपनी बहन की शादी C.I.S.F. में ही लड़का S.I .है उसी से तय किया है और शादी  निश्चित समयानुसार हो भी गई। विनय बताता है की उस शादी में उसके परिवार का दस लाख रूपये के आस-पास खर्च हो हुआ। 

                   अब आप ही बताइए की यह विचारणीय पहलु है या नहीं। इस पहलु पर हम सभी को विचार करने की जरुरत है। बिशेष कर माता-पिता और लड़की को। इस एक पहलु से समाज का एक बड़ा सोच जुड़ा हुआ है। यही सोच आगे सामाज में होने वाली परिवर्तन और विकाश का दिशा निश्चित करेगा। लड़कियों को उनका कर्त्वय  ही उन्हें अधिकार दिलाएगी।  किसी ने कहा है "  कर्त्वय  ही अधिकार की जननी होती है " . इस में संसय नहीं की जा सकती।