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शनिवार, 18 जुलाई 2015

* अजब तुलना गजब कहानी ! राजू भैया-भाभी के जुबानी !! *

                                                 अजब तुलना गजब कहानी! 
                                      राजू भैया-भाभी के जुबानी!!

                   मैं और मेरा दोस्त राजू राज, दोनों ही लगभग हम विचार हैं और होने वाली घटनाओं को एक-दूसरे के साथ खुले दिल से साझा करते हैं। जीवन का एक पहलू, जिसे हम दोनों ने जिया, वही आपसे आगे साझा करूँगा।

                   राजू राज थोड़ा ज्यादा ही खुले विचार का है। औरतों और लड़कियों यानी स्त्रीलिंग से सम्बन्धित घटनाएँ, उनके अन्तर्मन में होने वाली हलचल, उनके विचार, यहाँ तक कि शारीरिक परिवर्तन से होने वाले विचारों को जानने के लिए वह उत्सुक रहता है। इसके लिए वह हर समय उस प्रकार की पुस्तक पढ़ता है, जिसमें विचारों की अभिव्यक्ति हो। साथ ही, जिस प्रकार के विचार अभिव्यक्त किये गये हैं, उसे स्वयं या अन्य व्यक्ति से साक्षा कर सत्य के तराजू पर तुलना करने की कोशिश करता है। उसी बात को आपके साथ साक्षा करने की कोशिश करूँगा।

                ऐसा नहीं कि वह कोई बड़ा विद्वान और ज्यादा पढ़ा-लिखा है, पर उसके पास आम आदमी से सामान्य जानकारियाँ, जो सभी को पता है, थोड़ी ज्यादा है। जीवन में होने वाली घटनाओं के प्रति जागरूक है। वह हाजिर जवाब भी है। हर बात पर गहराई से सोच-विचार करता है। मैं उसी के भाव-विचार को दूसरे के सामने रखते रहता हूँ। उसी के ज्ञान के कारण मैं कभी-कभी अनाड़ी और अज्ञानी कहलाते से बच जाता हूँ।

                राजू राज भारतीय सेना में जवान है। आज उसकी सेवा की अवधि सात वर्ष से ज्यादा हो गयी है। वह बताता है कि वह पैदल सेना में है।

               वह जब भी अवकाश पर आता है, तो हम सभी साथी उससे उसके हाल-चाल के साथ उसकी मनोभावना जानना चाहते हैं। इसकी एक वजह है, उसकी तुलनात्मक बातें और बात को व्यक्त करने का तरीका ही नायाब रहता है।

                एक बार की बात है। हम दोनों अपने गाँव से दूर सड़क के एक तरफ से दूसरी ओर पानी निकलने के लिये जो सायफन बना रहता है, उसी पर बैठे हुए थे। गपशप हो रही थी। इतने में हमलोगों से थोड़े बड़े हमारे पुराने साथी आ गये और हमारी चर्चा में शामिल होना चाहे। वे बोले - अरे यार राजू, तुम दोनों क्या बात कर रहे हो, जरा हमें भी तो बताओ। राजू तपाक से बोला - पूछो। यहाँ मैं आपको बता दूँ कि जो भाई साहब वहाँ आये थे, उनकी शादी उसी वर्ष हुई थी, जिस वर्ष राजू सेना में कार्यरत हुआ था। पर शायद उन दोनों की मुलाकात उस समय से अभी तक ज्यादा नहीं हुई थी। भाई साहब बोले - अरे यार पूछना क्या है। बताओ मजे में तो हो, सरकारी नौकरी हो गई, वो भी केन्द्र सरकार की, अभी तक कुछ खर्चा-पानी भी नहीं किया ।

               राजू बोला - यार, अब क्या बताऊँ, तुम्हीं से पूछता हूँ , दिल से सही जबाव देना, झूठ मत बोलना। ऐसे मैं तुमको मिठाई तो खिला ही दूँगा। पर यह बताओ, तुम भी तो दाम्पत्य जीवन का आनन्द ले रहे हो। मैं भी आज कहूँ कि जब तुम्हारी शादी के इतने वर्ष हो गये, बच्चा भी हो गया, खुशियाँ दुगुनी हो गई, मिठाई खिलाओ, तो तुम क्या कहोगे। जनाब हँस पड़े और कहा कि अरे यार, शादी में तो मैं मिठाई बाँटा ही था। शादी तो ऐसा लड्डू है, जो खाये वो पछताये, जो न खाये वो भी पछताये और खाये बगैर रहा न जाय। अब बच्चा हो गया, खर्च भी बढ़ गया। राजू बोला - बस-बस यही बात तो हमारे साथ भी है। भाभी अपना सबकुछ छोड़ कर आई और पछता रहे हो तुम। अब तुम ही बताओ, क्या वही उमंग आज भी है और मैं तो ये गाँव, ये साईफन की बैठकी, तुम सबको छोड़ कर गया हूँ। मैं जब प्रथम अवकाश पर आया था, तो रामायण गवाया था, माँ पूरे गाँव में मिठाई बाँटी थी। सेवा पर जाने के पहले कितना खुश था। सभी से चहक-चहक कर मिलता था। दूसरे साथी ने बात को काटा, तू तो आज भी चहकता है। राजू बोला - ये तो मेरा स्वभाव है और मुस्कुरा दिया। राजू ने पुनः कहा - खैर, देख नौकरी ऐसी है, जिसे अपने स्तर पर सभी पाना चाहते हैं। शादी वाली जोलोकोक्ति तुम बोले वही हमारे साथ भी है। जा पाया वो भी रोया, जो नहीं पाया वो तो रो ही रहा है, पर पाना सभी चाहते हैं। सभी इसे पाने के लिए प्रयासरत हैं। दूसरा साथी जिससे राजू की बात हो रही थी, बोला - हाँ-हाँ ! जिसको सरकारी सेवा प्राप्त हो जाता है, ऐसे ही बोलता है। उसका काम सिर्फ दूसरे को भड़काना रह जाता है। इस समय बेरोजगारी में ढूँढने से शायद ईश्वर मिल जाये, पर योग्य नौकरी (रोजगार) मिलनी मुश्किल हो गई है। राजू मुस्काया और बोला ऐसी बात नहीं है। ऐसी उपमा न दो, ईश्वर की तुलना नौकरी से न करो। तुमको तो पत्नी के रूप साक्षात् देवी मिल गई है, जो तुम्हारी मनोभावना को समक्षते हुए तुम्हारी सुख-सुविधा क्या ध्यान रखती है। इतनी सुन्दर और सुशील भाभी मिली। नौकरी के लिये हमें सबको छोड़ना पड़ा और वो सब कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आ गई और...। दूसरा साथी बात को काटते हुए - बस-बस अब रहने भी दो, तुम्हारी तर्क के आगे हम क्या हैं ! हम सभी जोर से हंस पड़े और बात जहाँ से आई, वहीं को गई। हमारे साथी बोले - घर पर आओ, भाभी के हाथ का बनाया हुआ चाय पिलवाता हूँ। राजू बोला - सिर्फ चाय पिलवाओगे या... और कुछ। दूसरा साथी बोला - आओ तो सही और हम सभी हँसते हुए एक-दूसरे से विदा हुए।

                मै मध्याह्न का भोजन कर घर पर ही था। पलंग पर लम्बा होकर समाचार-पत्र उलट-पलट कर रहा था। बगल में मोबाईल पर कबीर और रहीम का दोहा बज रहा था। राजू आवाज मारते हुए मेरे पास आया और बोला क्या बात है ? जनाब कबीर वाणी सुन रहे हैं। पुनः बोला - सुन रहे हो या सुना रहे हो। मैंने बोला - तुम जो समझो। जिसके दिमाग और मन में जो चल रहा होता है, वह वैसा ही सोचता है। यहाँ तो सोचने और बोलने कि आजादी है और तुम तो...। राजू बात काटते हुए बोला - बस-बस हमें अभी इस बहस में नहीं पड़ना है। हम जानते हैं, तुम अच्छा बहस करते हो। मैं बोला ठीक है, धन्यवाद, कोई तो हमें अच्छा बहस करने वाला कहा, बैठो। राजू बोला - हम यहाँ बैठने नहीं आये हैं। चलो, तुम्हारी वो जो बगल वाली मौसी हैं, उनके यहाँ चलना है। मैं बोला किसलिए, क्या बात हो गई ? राजू बोला - भूल गया उस दिन चाय पे बुलाया था, नहीं जाऊँगा, तो बुरा मानेगा। मेरे दिमाग में एक बात चल रही है। उसका हल या कहो तुलना करने का कोशिस करूँगा। इस विषय पर बहुत दिन से सोच रहा हूँ। बस तुम्हारी सहमति की मुहर की जरूरत है। मै बोला - यह कौन सा चाय पीने का समय है। सुना है - फौजी आदमी सोचते कम हैं। राजू बोला - क्यूँ ? मैंने कहा - सुना हूँ कि पीटी-परेड से फौजी का दिमाग घुटने में आ जाता है और घुटने से सोचा नहीं जा सकता। लगता है आप मुझसे बहुत सारी बातें छुपा रहे हो। जैसे ही मैं उसको आप बोला, वह समझ गया कि मैं नाराज हो रहा हूँ, क्योंकि मै उसे ज्यादातर, जब कोई नहीं रहता है, तो तू से ही सम्बोधन करता हूँ तथा धीरे से चुटकाते रहता हूँ।

              वह मेरा मन भांपते ही अपने दोनों बाजू से पकड़कर मुझे हिलाने लगा और बोला ऐसी बात नहीं है। जानते हो, हम फौजी जवान तीन बजे भी चाय पीते हैं। यहाँ तो चाय एक बहाना है, उनका दिल भी रखना है और अन्दर में जो बात चल रही है, उसके बारे में भी कुछ जानना है। हम दोनों चल दिये। मैं उसे रास्ते में टोका, कौन सी बात है ? वह रूक गया। क्योंकि जिनके घर हम जा रहे थे, उनका घर पास में ही था। आपको यहाँ बता दूँ कि ये हमारी अपनी मौसी नहीं थी, बल्कि बहुत दूर की थी। हम जब उन्हें मौसी कहते थे, तो वह बहुत खुश होती थीं। राजू बोला - जानते हो, तो मैं बोला - जनाओगे तब तो जानूँंगा। राजू बात को आगे बढ़ाया, बोला - एक लड़की है, उसकी शादी होने वाली है। वह हमसे पूछी कि हमें ये बताइये कि हमें कैसे रहना चाहिये, जो हमें सभी प्यार, स्नेह और इज्जत दें। पहले तो मैंने उसे घुमाने की कोशिश की। पर बार-बार वह यही बात दोहराती रहती है, जो मैंने उससे कहा - ठीक है, शादी ठीक होने दो, फिर मैं बता दूँगा। उसी दिन से मेरे मन-मस्तिष्क में मन्थन चल रहा है। वो लडकी कौन हो सकती है, ये तो आप जान ही गए होंगे। मैं सर हिलाते हुए बोला - हूँ और हम लोग आगे बढ़ गए।

                  कुछ समय पश्चात् हम दोनों मौसी के दरवाजे पर थे। मैं दरवाजा खटखटाते हुआ आवाज दिया - मौसी ! कोई है क्या ! मौसी दरवाजा खोली। हम दोनों ने उन्हें प्रणाम किया। वे हमें खुश रहने का आर्शीवाद देते हुए बोलीं - क्या बात है, ज्यादा व्यस्त रह रहे हो का और ये छुट्टी पर आ के भी ड्यूटी पर है या दिन भर सोता रहता है। हमने एक साथ बोला, ऐसी कोई बात नहीं है। हमने कहा बहादुर नहीं है का। मौसी बोली - है न, टीवी देख रहा है। तब तक हमारे साथी घर से बाहर आ चुके थे। आपको बताता चलूँ कि हमारे साथी का नाम बहादुर नहीं है। बल्कि मेरे मुख से निकलने वाला ऐसा शब्द है, जो मैं लगभग अपने से बराबर या अपने से उम्र में छोटे के लिये इस्तेमाल करता हूँ। हमने आंगन में ही बैठना चाहा, तो मौसी और साथी दोनों ने ही घर में बैठने के लिये कहा। हम घर के तरफ चल दिये। मौसी बोली - आंगन में बैठेंगे। ज्यादा जल्दी है क्या? घर में बैठो, बातचीत करो। हमको मालूम है, रोज-रोज तो आवोगे नहीं। आंगन में मेरे पास कोई-न-कोई आता रहेगा। राजू बोला - आप आदेश तो कीजिए, हम प्रतिदिन आ जायेंगे। हम सभी मुस्कुरा दिये। हम दोनों के बात करने का यही तरीका है। जो हमें समझता है, हमारी बातों से खुश रहता है। कोई-कोई तो हमारी बातों से झेंप भी जाते हैं।

                  हमने जैसे ही कमरे के दरवाजे के अंदर पैर रखा, भाभी जी जो अब तक बैठी थीं, खड़ी हो गई। हमने उनका अभिवादन किया। उन्होंने उसका जवाब भी दिया। हाथ से स्थान दिखाते हुए हमें बैठने के लिये कहा। मैं अपना स्थान ग्रहण करते हुए चुटकी लिया, क्या बात है ! मेरे प्रणाम का जबाव नहीं दिया। किसी को नमस्ते के बदले नमस्ते मिला और मुझे कुछ भी नहीं। ये कहीं सरकारी सेवा का कमाल तो नहीं। मैं इतना बोला था कि वो मुस्कुराती हुई बाहर चली गई। मौसी मिठाई और पानी लेकर चली आई। हमने कहा - इसकी क्या जरूरत है, तो मौसी बोली - इस दुनिया किस चीज की जरूरत है। मैं बोला - आप जैसी मौसी की। मौसी मुस्कुरा दी। इतने में भाभी जी आ गई, उनके हाथ में चाय की प्याली थी। उन्होंने हम सभी को चाय दिया। मैं चाय लेते हुए बोला - आप मेरी बात का जवाब नहीं दी। मौसी बोली - बबुआ ई तोहरो से हाजिर जवाबी बिया। हमने कहा - आखिर ये राज्य की राजधानी जिला पटना की रहने वाली हैं

            और धीरे से, मौसी आप भी तो...। मौसी बोली - जोर से बोल, मैं भी तो वहीं की रहने वाली हूँ, किसी से कम थोड़े ही हूँ। इतने में कोई बाहर से आवाज मार दिया और मौसी चली गई। बच गए हम राजू, भाभी, भाई जान और उनका बच्चा हर्ष प्रताप।

            मौसी के जाने के बाद कमरा बिल्कुल शांत हो गया। सभी चाय की चुस्की ले रहे थे, साथ में एक-दूसरे का चेहरा निहार रहे थे। इस शांति को सिर्फ चाय का घूंट और दीवार घड़ी के चलने की आवाज ही भंग कर रही थी। इस शांति को तोड़ते हुए मैंने बात को आगे बढ़ाना चाहा। मैं बोला - हाँ जी ! मुख तो खोलिये, पता चले इतने सुंदर सजीले दुकान के अन्दर कुछ हमारे काम का सामान है भी या खाली है। भाभी बोली - दुकान है, तो सामान भी होगा। दुकान में तो सभी काम के ही सामान होते हैं। किसे क्या चाहिये दुकान से, ये तो उसके ऊपर है। आपलोग न बनिया बनिये, न ग्राहक, क्योंकि मैं कोई दुकान नहीं हूँ। दुकान में तो वस्तु की क्रय-विक्रय होती है। मैं बोला - बस-बस अब रहने दीजिये, अब बताईये कि हमारे अभिवादन का क्या हुआ। वह बोली - सुनिये जी आप लोग हमारे सामने छोटे तो हैं नहीं। इन्होंने नमस्ते कहा, तो मैं इन्हें नमस्ते कह दी। आप हाथ जोड़ के प्रणाम बोले, तो आपके लिए हाथ जोड़ दी और आशीर्वाद तो दिल से दिया जाता है। आप तो हाथ जोड़कर दरवाजे पर ऐसे खड़ा हो गये, जैसे कोई नेता जी वोट मांग रहे हों। हमने कहा - वोट नहीं आपका प्यार भरा आशीष चाहिए। हम कोई नेता जी थोड़े हैं। भाभी बोली - हमारा प्यार भरा आशीष आपके साथ है, पर आप नेता जी से कम थोड़े ही हैं। जैसे नेता लोग बहुत दिन के बाद या अपने मौसम पर ही नजर आते हैं, उसी प्रकार आप भी नजर आते हैं। हम मुस्कुरा दिए। फिर वो राजू के तरफ मुखातिब हुई और बोलीं - आप गुमशुम क्यूँ हैं ? हमने सुना है, फौजी आदमी बहुत बोलते हैं। और आप हैं कि बिल्कुल गुमशुम हैं। मैं बोला - जानती हैं। वो बोली - जनाईयेगा, तब तो जानूँगी। सभी हंस दिये। मैं बोला - इसकी आदत है, लोगों को झूठा साबित करना। फौजी बहुत बोलते हैं, इस बात को झूठा साबित करना चाह रहा है। अरे यार, एक तुम्हारे न बोलने से लोगों की धारणा थोड़े ही बदल जायेगी, औसत देखा जाता है। पता है ये कब बोलेंगे, जब दो-चार फौजी इकट्ठा हो जायेंगे। फिर ये क्या बात कर रहे हैं, पास वाला आधा भी समझ नहीं पाता। ये अपने में ही मशगूल हो जाते हैं। एक कहावत है - ‘खग जाने खगही की भाषा’, जो इन पर लागू होती है। राजू बोला - ऐसी बात नहीं है। हम दोनों ने कहा - फिर कैसी बात है ? राजू बोलने लगा - जितना हम लोगों की चिन्ता करते हैं, क्या कोई हमारा इतनी चिन्ता करता है। हमें तो लोग भूल ही जाते हैं। हमें उन्हें याद दिलाना पड़ता है। एक भोजपुरी में कहावत है, जिसे मेरी माँ कहती है - ‘जो पूत परदेशी भईलन, देवता-पितर सब से गइलन '। 
  
                           भाभी जी राजू से बोलीं - अच्छा ये बताईये ! आपको जब जाॅब मिला होगा, आप बहुत खुश हुए होंगे। हमें आप लोगों का पोशाक और आप लोग जहाँ रहते हैं, वो क्षेत्र देखने में बहुत अच्छा लगता है। आप लोगों का कदम से कदम मिलाकर चलना मन को लुभाता है। आपको जाॅब पर गये हुए इतना दिन हो गया, आपको कैसा लग रहा है ? राजू बोला - क्या बतायें ? भाभी जी बोलीं - यही जो हमने पूछा, सुना है आप इनफेंटरी में हैं। आप क्या करते हैं ? कुछ तो बोलिये, चुप क्यों हैं ? नहीं बोल पा रहे हैं, तो हमें सिर्फ ये तो बता दीजिये कि आपकी दिनचर्चा क्या है ? राजू मुस्कुरा कर बोला - ठीक है। हम तो सब बता देंगे, पहले आप बताइए कि...। भाभी बोली - पूछिए, शरमाइए नहीं। राजू बोला - अच्छा ये बताइए, जब आपकी शादी तय हुई, तो क्या आप खुश हुई थीं ? भाभी - हाँ, सभी होते हैं, कोई ज्यादा, कोई कम, कोई दिखाता है, कोई शर्माता है। राजू - आपके अन्दर किसी प्रकार का रोमांच या सोच उत्पन्न हुई होगी। भाभी - हाँ (मुस्कुराती हुई), अब ये न पूछिएगा कि शादी के बाद क्या हुआ। जो होता है, सभी जानते हैं। उसका परिणाम आपके सामने खेल रहा है। हम सभी मुस्कुरा दिये। राजू बोला - ऐसी बात नहीं, हम जो पूछना चाहते हैं, कुछ और है। अगर आपकी इजाजत हो तो...। भाभी बोलीं - पूछिए। राजू - नहीं, पहले आप यह बताइये कि आप सही-सही और बिना संकोच के विस्तार से बतायेंगी। भाभी सोच में पड़ गई। फिर बोली - ठीक है, बोलिये। राजू - आप हमको ये बताइए कि जब आपकी शादी तय हो गयी, तो उसके बाद क्या सोचती थीं। लोग भी आपको सुझाव देते होंगे, आप पूछती भी होंगी। लोगों की प्रतिक्रिया क्या थी ? अभी आप शादी-शुदा जिन्दगी का सुखद आनन्द ले रही हैं। हमारे समझ से आप खुश भी हैं। भाभी बोलीं - जी। राजू पुनः पूछने लगा - आप हमें यह बताइए कि एक लड़की शादी के बाद किसी की अद्र्धांगिनी, बहू, भाभी हो जाती है, उसे सभी रिश्ते निभाने पड़ते है। उससे सभी को अनेक अपेक्षाएँ होती हैं। वह जहाँ जाती है, वहाँ की स्थिति-परिस्थिति सभी से अन्जान होती है। उसे वहाँ किस प्रकार रहना चाहिए, मैं आपसे जानना चाहता हूँ। आप अपने अनुभव को हम लोगों के बीच व्यक्त करने का कष्ट कीजिए। भाभी बोलीं - क्या बात है ? आप इतने मार्मिक और रोमांचित करने वाली बात पूछ रहे हैं। ये तो कोई लड़की ही पूछ सकती है, जो उत्सुक और जागरूक हो, जो अपने दाम्पत्य जीवन में अपनी तरफ से किसी प्रकार की चूक नहीं करना चाहती हो। राजू बोला - ऐसा ही मानिए। भाभी बोलीं - तो चाय पर इतनी लम्बी वात्र्तालाप कैसे चलेगी ? आपलोगों के लिये मैं कुछ बनाती हूँ। राजू बोला - फिर हमें बतायेगा कौन ? हमें खिलाइए नहीं, समझाइए। भाभी बोलीं - ठीक है, भूंजा लाऊँ। राजू बोला - चलेगा और भाभी भूंजा लाने चली गई। हमारे भाई साहब बोले - भाई आपलोग बात कीजिये, मैं थोड़ा जानवरों को खाने के लिये चारा डाल देता हूँ और वे चले गये। भाभी जी मिश्रित भूंजा ले आई। हमें भूंजा देते हुए कहा - आप लोग अपने भाईसाहब को कहाँ भेज दिये। हमने कहा - आ रहे हैं।

               हमारी चर्चा पुनः शुरू हुई। भाभी बोलीं - देखिये जी, जब हमारी शादी तय हो गई, तो हमें कुछ अजब तरह का रोमांच का अनुभव हुआ। अमूमन हमारे विचार से सभी लड़का-लड़की अंदर से रोमांचित होते हैं, मैं भी हुई। लड़के शायद ज्यादा अपनी होने वाली दुल्हन के बारे में सोचते होंगे, पर लड़की अपने होने वाले पति के साथ उनके घर-परिवार, वहाँ की स्थिति-परिस्थिति सभी के बारे में सोचती है। हमारी शादी तय होने के सात माह के बाद एक निश्चित दिनाक 23 जून को हुई, जिसे दोनों परिवारों के लोगों ने अपनी सुविधा और धार्मिक मान्यता के अनुसार शुभ मुहूर्त में रखा। वो सात माह शादी तय होने और शादी होने तक गजब का होता था। ऐसे लड़की का पालन-पोषण हमारा समाज उसी प्रकार करता है जैसे कि उसे दूसरे के घर जाना है। लड़की को मानसिक तौर पर तैयार कर दिया जाता है कि उसके पति का घर ही उसे अपना घर लगने लगता है। हमसे जब कोई चूक हो जाती और जिसके स्तर की होती, सभी यही बोलते कि ससुराल में जाकर यही करोगी। हमारा नाम हंसाओगी का। हमारे खाने-पीने, बोलने, जागने-सोने, यहाँ तक कि कपड़ा पहनने के लिये टोका-टोकी शुरू हो गई, जैसे हमारे घर वाले हमें किसी ‘शो’ के लिये तैयार कर रहे हों और जैसे कम्प्यूटर में प्रोग्राम डाल रहे हों। उनका प्यार और आशीर्वाद हमारे साथ था। आज मैं घर-परिवार और टोला-मोहल्ला में जो अच्छी-बुरी हूँ, उनके दिये हुए संस्कार और स्नेह के कारण। हम सभी ने एक ठंडी सांस ली और भाभी रूक कर फिर बोली - आप लोगों को एक और बात बताती हूँ, इनका फोटो गया था। राजू बीच में बोला - किनका ? भाभी बोली - आपके भाई जी का और किनका। आज की तरह तो हमारा देखा-देखी नहीं हुआ था। इन्हें देखने हमारे पापा जी आये थे और इनके मामा जी हमें देखने गये थे। पिताजी इनका एक फोटो ले गये थे, जिसे मैं एक बार देखी थी, जो कि पापा जी ने टेबल पर रखा था। हमारी भाभी ने फोटो लाकर हमें दिखाई, तो हमें बहुत अच्छा लगा। वही हमें अपने शरीर को साफ और स्वच्छ रखने के लिये बताई। ऐसे तो सभी लोग सभी कार्य और बात को अन्य माध्यमांे से भी जान जाते हैं, पर समाज में बनाये हुए सभी रिश्तों का अपना ही महत्त्व है।

                    राजू बोला - आपकी बात सही है। सभी रिश्तों का अपना महत्त्व है, पर आधुनिकता और भौतिकता के सामने रिश्तों का महत्त्व कम होता जा रहा है। किसी ने कहा है - भौतिक वस्तु इस्तेमाल के लिए और इन्सानी रिश्ते प्यार के लिये बना है। रिश्ते में दरार आने लगती है, जब लोग भौतिक वस्तु से प्यार और इन्सान को इस्तेमाल करने लगते हैं। हमें बताइये कि शादी के बाद एक लडकी को कैसे रहना चाहिये ?

                    भाभी बोलीं - आपको बता दें कि जिस रात का कपल यानी शादी-शुदा जोड़ी को इंतजार रहता है, जिसे लोग सुहागरात, फस्ट नाईट, हनीमून, दो जिस्म एक जान की रात, पता नहीं और क्या-क्या नाम देते हैं, उसके पहले हमें एक रात यू हीं मिल गया। क्योंकि आपके घर में मान था और उस दिन जो पूजा होनी थी, दूसरे दिन हुई, जिसकी कहानी सहपाठी, सहेली और आपके जैसे देवर सुनना चाहते हैं। राजू बोला - उस रात कि बात को यहीं छोडि़ये। हमें दूसरा बात बताईये। उस रात की बात के लिये हम अलग से समय निकालेंगे। भाभी बोलीं - ठीक है।

                   सुहागरात के पहले जो हमें एक रात मिला था, उस रात हम लगभग एक बजे तक जागती रहीं। कारण था, ग्यारह बजे तक तो हमसे लोग बात करते रहे। जब मैं बिस्तर पर गई, तो नींद नहीं आ रही थी। अन्जान स्थान, अन्जान बिस्तर, ऊपर से मन में अनेकों ख्याल आ रहे थे। ख्यालों में पता नहीं चला, हम कब सो गई। चार बजे सुबह में ही दीदी जी यानी आपकी बहन जी, मेरी ननद जी ने हमें आवाज दिया और दरवाजा खटखटाया। मैं हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोल दी। वो हमें नित्यक्रिया करने और स्नान के लिये बोलीं। मैं तैयार हुई और पूजा-पाठ की। घर का दूसरा सदस्य जान भी नहीं पाया। इसके लिये आपकी मौसी बहुत खुश हुई। इस समय को लगभग दो सालों तक मैंने ऐसे ही नित्य रखा। मैं दीदी जी की आभारी हूँ, जो मुझे उस दिन जगाई। वही बात हुई, जो अंग्रेजी में कहते हैं - फस्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन, जो आज तक बरकरार है। राजू बोला - अब आठ बजे सुबह तक सोती हैं। भाभी बोलीं - नहीं जी, अब तो आदत हो गई है, देर से सोना और जल्दी जगना। उस समय नींद भी बहुत आती थी। बड़ी मुश्किल से हमने नींद के साथ समझौता किया। शुरू के समय में ही लोग ध्यान देते हैं और अच्छी-बुरी आदतों को जल्द से जल्द जानना चाहते हैं।

                राजू बोला - मान लीजिये, मैं आपकी बहन की जगह पर हूँ। तो आप हमें क्या सलाह देंगी। देखिये जी, ऐसे आप मेरी बहन तो नहीं, पर बहनोई हो सकते हैं। हमने बोला - बना लीजिये, कुछ दहेज भी बच जायेगा। और हम सभी हंस दिये। राजू हमारा हाथ दबाते हुए बोला - चुप रहो। भाभी बोलीं - जब आप पूछे हैं, तो बता ही देती हूँ। सुनिये, जब कोई लड़की ब्याह के ससुराल आती है, तो वह ज्यादा न बोले, जितना आवश्यक हो, उतना ही बोले। सभी की बात ध्यान से सुने। सभी को आदर देना उसका कत्र्तव्य हो। बहुत से आंगतुक, रिश्ते-नाते वाले कुछ दिन के बाद चले जाते हैं। कोई-कोई खड़ी बोली बोलने वाले और कुछ खड़सू भी होते हैं। उनका अलग से ख्याल रखें। नई दुल्हन के पास घर और पास-पड़ोस के छोटे बच्चे तथा लड़कियाँ ज्यादा समय देती हैं। उनसे अनावश्यक और ज्यादा न बोलें। ये तो आम बात हो गई, पर मुख्य बात है, जो दुल्हन के लिये उस समय ज्यादा मुश्किल होती है। उस समय नींद बहुत आती है। नई दुल्हन को कोशिश करनी चाहिये कि सबसे अन्त में अपने कमरे में जाये या सासूजी बोले तो और घर का काम निपट गया हो तब अपने शयन कक्ष में जाये। प्रभात में जल्द जगने की कोशिश करे। उसे नित्यक्रिया स्नान आदि करते कोई ना देखे। उचित श्रृंगार और पहनावा रखे। मृदुभाषी रहे। ये कुछ दिन का प्रभाव ही उसके सुखद जीवन की दिशा तय करता है। एक बात और आपको बता दूँ कि हम भी अपनी मायके की बहुत बड़ाई करती हूँ। पर, मायके की ज्यादा चर्चा नहीं करनी चाहिये। हर बात में मायके को न लायें, न ज्यादा किसी से तुलना करें। नहीं तो मजाक और उपहास का पात्र बनना पड़ेगा।

                    राजू बोला - अच्छा भाभी तो हम चलते हैं। उस रात वाली बात और उसके बारे में जानने लिये मैं अलग से समय निकालूँगा। भाभी बोलीं - वो तो ठीक है, पर जाने की इतनी जल्दी क्यूँ है ? आप तो अपने सर्विस के बारे में कुछ बताये नहीं। पहले आप बताइये, फिर जाने की सोचियेगा।

                    राजू बोला - ठीक है। अगर मैं तुलना करूँ, तो आप हंसियेगा। एक इन्फेन्टरी के जवान का हाल उस ब्याही बहू वाली है, जो ससुराल में नई-नई आती है। भाभी जी हंस दी और बोली मजाक नहीं बनाइये, चुपचाप बताइये। राजू बोला - चुप हो जाऊँगा, तो कैसे बताऊँगा। भाभी बोलीं - ठीक है, ठीक है। मैं अपने शब्द को वापस लेती हूँ, अब बोलिये। राजू बोला - मुख से निकला वाणी, कमान से निकला बाण वापस नहीं होता, अतः इंसान को सोच-समझ कर उचित शब्द ही बोलना चाहिये। ठीक है सुनिये।

                    राजू अब विस्तार से बताने लगा। देखिये भाभी आप को तो हमारे घर की स्थिति-परिस्थति का पता है, जिसके कारण मैं जल्द-से-जल्द सेवा में लगा। ये मैं नहीं कह रहा हूँ कि मैं बहुत योग्यता रखता था। पर लोगों के व्यवहार के कारण मैं जल्द से जल्द नौकरी पाना चाहा और पाया। माँ कहाँ-कहाँ मन्नत भी मान दी। नौकरी लगने का तो खुशी होता ही है, पर उतना नहीं, जितना आपको अपने शादी ठीक होने पर हुआ था। भाभी शरमा कर हंस दी और बोली - बस कीजिये, आगे बोलिये। राजू बोलना शुरू रखा। भर्ती प्रक्रिया पूरा होने के बाद एक निश्चित दिनांक दिया गया। दिए हुए दिनांक पर हम भर्ती केन्द्र पर गये और वहाँ से एक निश्चित दिन 16 अप्रैल को हमें प्रशिक्षण केन्द्र भेज दिया गया। वहाँ पहुँचते ही तहकीकात शुरू हुई, कहाँ से आये हो, इस तरह के अनेक सवाल पूछे गये, जिसे बताना उचित नहीं समझता हूँ। प्रशिक्षण केन्द्र में साथ के जितने भी प्रशिक्षु थे, सभी को निश्चित समूहों में विभक्त कर अलग-अलग कम्पनियों में रख दिया गया। हमारी देख-रेख और हमें फौजी माहौल में ढालने तथा फौजी बनाने के लिये विभिन्न वर्ग के लोग नियुक्त कर दिये गये। हमें वहाँ के सभी लोग कुछ-न-कुछ बताते रहते। कुछ लोग बोलते, नहीं सीखोगे तो यूनिट में बहुत तकलीफ होगी। कोई बोलता, यही तुमको पूरे सर्विस में काम आयेगी। जैसे आपको सभी लोग शादी तय होने के बाद टीका-टिप्पणी करते रहते थे, वही हाल यहाँ भी था, जो सही भी था। यूनिट जाकर हमने देखा, प्रशिक्षण केन्द्र में जो जैसा था, यूनिट में भी वैसा ही है। आप अभी जैसे बहुत सारी नई जानकारियाँ और अनुभव ग्रहण कर लीं है, वैसे ही एक फौजी भी फौज के बारे मे अनुभव के रूप जानकारियाँ ग्रहण कर लेता है। शादी के दिन जिस प्रकार आपको सजा-धजाकर अतिथियों के बीच अग्नि के समक्ष वचनबद्ध किया गया था, उसी प्रकार एक जवान जब अपना प्रशिक्षण उत्तीर्ण कर लेता है, तो एक निश्चित तिथि को वह सज-धज कर अतिथियों के बीच अपने धर्म के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज और रेजिमेन्ट ध्वज के समक्ष शपथ लेता है। उस दिन वह फौजी संस्था के साथ वर-वधू की तरह कच्चे धागे से बंध जाता है।

                फौजी जवान को शपथ दिलाने के बाद विभिन्न माध्यमों से किसी के नेतृत्व में उसे अपने-अपने यूनिट को भेज दिया जाता है।

               यहाँ वही हालत मेरी हुई, जैसे आपको अपने ससुराल में आने के बाद हुआ। वहाँ पहुँचने के बाद हमें सभी से परिचय कराया गया। यूनिट का क्षेत्र घुमाया गया। रात को सोया, तो थकने के कारण गहरी नींद आई। चार बजे एक श्रीमान् ने जगा दिया और अभिनन्दन के साथ दिनचर्या शुरू हुई, जो रात में ही समाप्त हुआ। यह सिलसिला प्रतिदिन का रहा। हमारे जो सीनियर थे, वह सो जाते, तो हमलोग भी सो जाते या वह बोल देते - जाओ आराम करो, तो हमलोग आराम के लिए चले जाते। दो साल के अंदर यूनिट के अंदर जिसने जैसी छवि बनायी, वह आज भी थोड़ा-सा अंतर के साथ बना हुआ है। अब आप बताइये, है न एक नववधू की जिन्दगी। भाभी बोलीं - बात तो आपकी ठीक है। तुलना भी गजब किये, मान गई। पर एक बात में अंतर है। हमें रात्रि में भी मन या बे-मन से जागना पड़ता है। तो हम सभी हंस दिये और राजू बोल पड़ा - आपकी बात बिल्कुल सही है। ये तो मैं बताया ही नहीं, हमें भी रात्रि में रात्रि प्रहरी (संतरी) के लिये जागना पड़ता है। कभी-कभी लगातार या ज्यादातर एक-दो रोज के बीच ड्यूटी होती है। यहाँ तो आपके मन के बारे में कोई पूछता भी है, पर हमारा मन हो या न हो, हमारे बारे में तो कोई पूछता भी नहीं। अब तो आप मान गई न ! भाभी जी बोली - हाँ जी, आप तो अजब तुलना करके गजब कहानी बना दिए।

                    हम लोग खड़े होते हुए बोले - अच्छा भाभी इजाजत हो, तो हम चलते हैं। रात वाली बात के लिये फिर कभी आयेंगे। सभी मुस्कुरा दिये। राजू बोला - जानती हैं...। भाभी तपाक से बोलीं - जनाइयेगा, तब तो जानूँगी। राजु मुस्काता हुआ बोला - इसी कारण से एक फौजी अपनी परिवार को ज्यादा चाहता है। अगर पत्नी थोड़ी समझदार है, तो उसका बहुत ख्याल रखता है, उसकी तकलीफ को समझता है। अच्छा फिर मिलेंगे, तब तक के लिये इजाजत दीजिए, नमस्ते।
                                                                       

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