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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

* नाम *


                      आप आम लोगो को कहते सुना होगा, नाम से बड़ा धन कोई नहीं होता, आखिरकार यह नाम है क्या ? जिसे सभी लोग कमाना चाहते हैं। इस जगत में या यू कहें तो इस ब्रह्मांड में हर एक का कुछ न कुछ नाम है, जिसे किसी न किसी के द्वारा रखा गया है, जो बाद में आम प्रचलन में आ गया । जाती नाम, कुल नाम, वर्ग नाम के बाद भी हर एक का अलग से एक और नाम। नाम को उसके निर्धारित पहचान से जोड़ा जाता है।ऐसे पहचान के लिए शस्त्र बलों में या विशेष (गुप्त) टीमों में एक विशेष संख्या होती है, जिस से उनकी पहचान होती है।
                        
                        किसी का नाम देने या रखने के पीछे अलग-अलग मानसिकता कार्य करती है।लोग अपने बच्चों का नाम महात्मा, प्रसिद्ध व्यक्ति या जिसे वह आदर्श मानते हैं, उनके आधार पर पर रखते हैं। नाम देने या रखने के पीछे धार्मिक आस्था के साथ-साथ कुछ रुढ़ी या रीति-रिवाज भी काम करती है, जैसे किसी का देहांत शैशव या बाल अवस्था में हो जाता है तो वह अपने अगले शिशु का नाम उटपटांग रख देता है। जैसे - घुरफेकन , घुरबिनियाँ, डोमन इत्यादि। इन सभी बातों के साथ आम लोग खास कर जो गाँव में निवास करते हैं , ए लोग एक पेशा विशेष को भी नाम देते हैं। जिस से मालूम चलता है की उनके दिल में उस पद के लिए कितना लगाव एवं इज्जत है।इन विशेष प्रकार के नामों से स्पष्ट होता है कि ए लोग या तो अपने यहाँ किसी को उस पद पर देखना चाहते हैं या ए पद उनके लिए आदर्श हैं , जिसे वे पाना चाहते हैं किन्तु वे अपनी आर्थिक और समाजीक स्थिती के कारण नहीं प्राप्त कर पाते तो नाम से ही संतुष्ट हो जाते हैं।इस प्रकार के नामों में हवलदार, जमदार, सुबेदार, कर्नल (करनेल) , जरनल, वकिल, वैरिस्टर, जज, मास्टर इत्यादि हैं । नाम सोच समझकर ही रखी जाती है, जो अभिलेखों में भी संग्रहित हो जाती है।
                       
                     लोग जो जानवर(पालतू) पालते हैं, उसे भी एक विशेष नाम से पुकारते हैं।वह पालतू भी समझता है की अमुक प्रकार का आवाज (नाम) उसे ही इंगित करता है। कुछ लोग अपने पालतू को विशेष वजह से भी विशेष नाम देते हैं। कुछ लोग किसी विशेष बात पर कहते हैं, मेरे नाम का कुत्ता या जानवर पालना और ऐसा होता भी है।
         
                         कुछ लोगों का नाम हास्य परिहास में पर जाता है।जिसे हम व्यंग्य कह सकते हैं।आचार-व्यवहार से लोगों का पुकार का नाम प्रसिद्ध हो जाता है। जिसे कुछ लोग सम्मुख में तो कुछ लोग पिठ पीछे बोलते हैं। इस प्रकार के नाम से वह व्यक्ति जँहा रहता है , अपने समाज में एक पहचान बना लेता है। इस प्रकार के नाम को कुछ लोग पसंद करते हैं और कुछ लोग नापसन्द भी। कुछ लोग इसका विभिन्न तरीको से विरोध भी करते हैं। ऐसे नाम अभिलेखो में नहीं होते पर वहाँ के लोग उसे उस नाम से आसानी से पहचान जाते हैं।
                        हम यहाँ कुछ लोगों के विशेष नमो पर चर्चा करेंगे। मैं और मेरा दोस्त राजू इसी नाम विशेष पर चर्चा कर रहें थे। राजू लगातार हँसने लगा उसकी हँसी रुक नहीं रही थी तो हमने पूछा क्या हो गया ? राजू अपनी हँसी सम्भालते हुए कहाँ अरे भाई सरयू चाचा वाला हल हमारा , फौज में भी हो गया। हम क्या जानते थे की फौज में भी कटाक्ष वाली नाम चलती है। हमने कहा आगे वाली वाली बात तो बताओ उस रोज हुआ क्या ? हम आपको सरयू चाचा की कहानी बाद में सुना देंगे पहले राजू का सुन लेते हैं। राजू बताता है , "मैं अपनी ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) समाप्त कर यूनिट में गया। उस समय यूनिट फिल्ड में थी। वहाँ हेड क्वाटर (मुख्यालय) मध्य में तथा कम्पनियाँ वहाँ से दूर चारो दिशाओं में फैली होती है। हम हेड क्वाटर में गए वहाँ लोगो से मुलाकात और परिचय होने लगी एक सरदार साहब आए और हम लोगों से पूछे किस कम्पनी में पोष्टींग हुआ है। हमने अपनी कम्पनी बताई , फिर वे बोले अच्छा ! नाग रेड्डी के कम्पनी में जरा सम्भल कर रहना नहीं तो डस लेगा। हमने सोचा यह क्या मुसीबत है। अगले दिन हम वहाँ की सारी प्रक्रिया पूरा कर अपनी कम्पनी के लिए प्रस्थान कर गए। हमें छोड़ने के लिए यहाँ से एक टुकड़ी हमारे साथ हो ली और उधर से एक टुकड़ी हमें लेने आ रही थी , दोनों जब मिल गए तो मुख्यालय वाली टुकड़ी वापिस हो गई। वापिस होते समय उनमें से एक जवान ने कहा जाओ नाग रेड्डी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा।  वहाँ से चलकर हम अपनी कम्पनी पहुँचे। हमने वहाँ देखा एक सरदार साहब बाहर खड़ा हैं। हमने अपनी बेग-बेडिंग उतारा , लाम्बा-लम्बा साँस लिया। हमें पिने के गुनगुना पानी मिला। इसी दौरान सरदार साहब हमारी परिचय लेने लगे। वे पूछे तुम्हारा सीनियर जे. सी.ओ. कौन है , हमने कहा 'नाग रेड्डी' , यह नाम सुनते ही वह भड़क गए और बोले किस ने बताया , हमने कहा निचे एक साहब ने बताया था। वह सोच रहे थे ,जो पार्टी लाने गया था , वो बताया होगा , पर ऐसा नहीं था। वह मुँह बनाते हुए बोले "सी. एच. एम. इनका क्लास लो" एक मोटा सा व्यक्ति जो पहले से हीं वहाँ खड़ा था। कासन बनाते हुए हमें समझाने लगा। वह हमें सजा भी लगाया। वही हमें ऊपर से निचे सभी रैंक धारी ओहदेदारों का नाम बताया। हमें तो साँप ही सूंघ गया फिर हमें समझ आया , ऐ तो सरयू चाचा वाली बात है। हमें अंदर ही अंदर हँसी आने लगी, जिसे हमने दबाए रखा। सरदार साहब और सी. एच. एम. के जाने के बाद हम सभी हँस पड़े।

                         अब आप को सरयू चाचा वाली बात बताये देते हैं। सरयू चाचा शहर में नौकरी करते थे। जब गाँव आते तो गाँव के लोग , वहाँ के रीती रिवाज के अनुसार उनका भी अभिनन्दन करते। जैसे कोई प्रणाम चाचा , प्रणाम भईया , प्रणाम दादाजी इत्यादि अपने रिश्ते और उर्म के अनुसार प्रणाम के साथ एक रिस्ता लगा देतें हैं। इसी दौरान हमारा एक दोस्त पंकज यही हमारे गाँव में हीं रहने लगा। यहाँ उसका अपना ननिहाल है। वह अपने रिश्ते के अनुसार ही लोगों को मामा , नाना ,भईया कहता था। एक रोज हुआ यु की हमलोग खेल रहे थे। सरयू चाचा उसी रास्ते से आ रहे थे। पंकज आगे बढ़ कर बोला प्रणाम मामा , फिर क्या था , सरयू चाचा ने पंकज को मारने के लिए दौरा लिया , विभिन्न प्रकार के अपशब्दों का उच्चारण करते हुए गाली बकने लगे। उस समय हम बच्चों को मालूम नहीं चला, पर बाद में हम समझ गए की वे मामा कहने के कारण गुस्सा हुए थे। फिर क्या था जब वे किसी रास्ते से जाते और किसी लड़के का उन पर नजर पर जाता तो वो छुप कर उन्हें मामा कह देता। लड़का अगर दिख जाता तो मरने के लिए दौड़ाते या फिर गाली-गलौज करते। धीरे-धीरे उनका यह नाम मशहूर हो गया। वे अब बच्चों और बड़ो सभी के लिए हास्य का एक पात्र बन गए। उनका यह नाम उनके क्षेत्र (गाँव-जेवार) में मशहूर हो गया।

                           हमने कुछ ऐसे पुकार नाम वाले सज्जन भी देखें , जिसे बोलने पर वे प्रसन्न होते हैं। हमारे बगल के ही एक सज्जन हैं। ऐसे उनका वास्तविक नाम से भी लोग परिचित हैं पर लोग उन्हें साहेब के नाम से सम्बोधित करते हैं। लोगों से हमने सुना है उनका परिवार पहले सुखी-सम्पन्न था , पर जब से हमने होश सम्भाला है , हमने उनके पास अभाव ही अभाव देखा है। वे अपना जीवन किसी तरह मांग-चांग कर गुजर-वसर करते हैं। लोग जब उन्हें साहेब कहते हैं तो वे शायद अपनी पुराने दिनों को याद कर प्रसन्न होते होंगे।

                            हमारे पास में ही एक बड़ा बाबू हैं बेचारे अभी तो बेरोजगार ही हैं , शायद उन्हें अब कोई रोजगार मिलने की सम्भावना भी नहीं भी है। उनके पिता श्री को पेंसन मिलता है और कास्तकारी से जो थोड़ा-बहुत आय होता है उसी से उनका और सम्पूर्ण प[परिवार का भरण-पोषण हो रहा है। गाँव में जब कभी भी कोई सामाजिक कार्य या कोई उत्सव , पूजा , त्यौहार मनाया जाता है तो वे उस में सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं , उस विधि-व्यवस्था में वे सचिव, अध्यक्ष या कोषा अध्यक्ष होते हैं। इसी वजह से लोग उन्हें बड़ा बाबू कह कर पुकारते हैं और वे इस से प्रसन्न भी रहते हैं।

                                 एक सज्जन हैं नाम है रघुवर यादव। वे हमारे गाँव (ग्राम) का चकूदार हैं। ऐसे गाँव में परम्परा है आम लोग अपने उर्म के अनुसार रिस्ता तय कर लेते हैं या जिनके बड़े-बुजुर्ग जिस रिश्ते से किसी को बुलाते हैं तो उस घर के अन्य छोटे सदस्य भी अपना रिस्ता की कड़ी तय कर लेते हैं। जब कुछ लोग साथ वाले होते हैं तो नाम से भी काम चलाते हैं। रघुवर यादव के साथ भी यही हुआ। अब इनके साथ वाले एवं कुछ उर्म में छोटे लोग जो पद पर उनसे उच्चे हो गए तो उन्होंने सोचा इन्हें नाम से या चकूदार कह कर बुलाना ठीक नहीं है। एक रोज किसी ने उन्हें किसी काम से बुलाया था और वे नहीं गए या नहीं जा सके तो लोगों ने उन्हें उलाहना वस  ही दरोगा साहेब और दरोगा जी के नाम से ससम्बोधित किया। उसके बाद ए उनका उप नाम ही हो गया , अब हर कोई उन्हें दरोगा जी तो कोई दरोगा साहब कह कर बुलाता है। वे प्रसन्न भी रहते हैं।

                               अब मैं आपको एक जानी-मानी कहानी सुनाता हुँ। आप ने इसे जरूर कहीं न कहीं पढ़ा होगा या सुना होगा। अगर न पढ़े हैं और न सुने हैं तो यहाँ पढ़ लीजिए। एक सज्जन थे। वे सभी तरफ से सुखी-सम्पन्न थे। उन्हें किसी प्रकार का कोई हैरानी-परेशानी , कष्ट-कलेश या चिंता-फ्रिक नहीं था। एक बार वे अपने उधान में आराम कुर्सी पर बैठ कर प्राकृति का छठा निहारते हुए आनंद ले ले रहे थे और उस दृश्य में पूर्ण रूपेण तन्मय थे। एकाएक अपना नाम सुन कर उनका ध्यान भंग हुआँ। कोई बगल से उन्हें उनका नाम से बार-बार पुकार रहा था। वे अपना नाम सुन खिज्झ गए। वे बुदबुदाते हुए बोले घर वालो को और कोई नाम मेरे लिए नहीं मिला था। मेरे पास क्या नहीं है सिर्फ एक अच्छा सा नाम छोड़ कर। फिर वे चिंतित रहने लगे , हर समय नाम पर ही सोचते रहते।वे हर समय खोए-खोए रहने लगे। उनका हालात दिनोदिन विक्षिप्तों जैसा होता जा रहा था।चिंतित रहने के कारण उन्हें अनेकों परेशानियाँ सताने लगी।

                                   एक रोज प्रातः काल वे नित्य क्रिया सम्पन्न कर घर से अपने नाम पर ही सोचते और चिंतन करते हुए निकल पड़े , रास्ते में वे हर मिलने वाले से उसका नाम पूछते , जिस में से जो उन्हें अच्छा , सुन्दर और उचित लगे उसे वे अपने लिए चुन सके। इसी दौरान उन्हें एक शव यात्रा दिखाई दिया तो उन्होंने सोचा पहले स्वर्ग वाशी का ही नाम पूछा जाए। शव यात्रा में जा रहे लोगो से से उन्होंने उसका नाम जानना चाहा। लोगों ने उसका नाम अमर बताया तो वे झेप गए और आगे बढ़ गए। आगे कुछ लोग खेत-खलिहान में काम कर रहे थे। उनमे एक व्यक्ति पुवाल बुन रहा था। उस सज्जन ने उसके ओर मुखातिब हो कर उसका परिचय पूछा , वह अपना नाम धनपत बताया। वे वहाँ से बुदबुदाते हुए आगे बढ़ गए। सामने एक दूसरी वस्ती थी ,वहाँ धुप में कुछ बच्चे खेल रहे थे। उसी में एक लड़की भी थी। उसके तन पर उस मौसम के अनुसार समुचित वस्त्र भी नहीं था।  उस सज्जन ने उसी लड़की से उसका नाम पूछ बैठे , वह अपना नाम लक्ष्मीनिया बताई। फिर क्या था उनके मुख से अन्नयास ही निकल परा - 
 " अमर को मैं मरते देखा
 धनपत बुनत पुआल 
लक्ष्मी के तन वस्त्र नहीं 
   सबसे अच्छा मैं ठठपाल। "
और हस परे। अपने आप से वे कहने लगे पुकार के नाम और अभिलेख के नाम से कुछ नहीं होने वाला है। नाम में क्या रखा है सब तो काम में ही है। मुख्य नाम तो काम है। वे नाम के द्वन्द को अपने मन से निकाला और चिंता मुक्त हो गुनगुनाते हुए अपने घर वापिस चल दिए। अब उन्हें अपने नाम से किसी प्रकार का कोई सिक्वा-शिकायत नहीं था , न घर वालो के प्रति कोई उलाहना। 

                           मेरे बंधू इस प्रकार नामो में कुछ नहीं रखा है। मनुष्य का कर्म प्रकष्ठा ही उसके नाम को उत्कृष्ट बनाता है। व्यक्ति द्वारा किया गया कर्म ही नाम को सिद्धि प्रदान करती है। यथा सिर्फ नाम पर न जाए। सुख-शांति , समृद्धि आपको अपने कर्म से प्राप्त होंगी।