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मंगलवार, 8 मार्च 2016

* उद्धधार *

                   उद्धधार यानि मुक्ति, जब कोई अपनी वर्तमान अवस्था स्थिति से निजात पाना चाहता है और जब उसे उस स्थिति से निजात, छुटकारा मिल जाता है तो कहते हैं उसका  उद्धधार हो गया या जब किसी को उसके वर्तमान स्थिति या अवस्था से उत्कृष्ट स्थिति या अवस्था प्राप्त होता है तो वह उसका  उद्धधार कहलाता है।

                    हम आप को यहाँ एक जीवन वृति का कुछ अंश सुनाने जा रहा हूँ। इसमें दो चरित्र हैं दोनों एक दूसरे का  उद्धधार का कारण बने। जब हमने उसका निर्णय जाना तो पहले मुझे बहुत ओ ... महसूस हुआ की कोई आज के समाज में भी इतना बड़ा फैसला ले सकता है। वह भी मध्यवर्गीय परिवार का सदस्य जो बिना समाज  सहयोग का एक कदम भी नहीं चल सकता। जिनकी सारी रीती-रिवाज, परम्परा समाज की दुहाई पर ही चलता है। हमें बाद में ज्ञात हुआ की वह उसका पूर्व का पहचान छुपा कर ऐसा किया साथ में मज़बूरी एवं लोभ भी समाहित था।

                       मेरे दोस्त का भाई का साला है करीमन। करीमन जैसा की नाम से विदित है। उसका रंग बिलकुल काला है फिर भी वह देखने में उतना बुरा नहीं लगता। उसके आँख नाक और वदन की बनावट उसे आकर्षित बनाते हैं। उसके मुख मण्डल पर गजब का चमक है जिसे आम बोल-चाल की भाषा में पानी कहते हैं। वह उसके चेहरे पर पूर्ण रूप से विराजमान है जो उसके रंग के प्रभाव को थोड़ा कम करता है।

                            जितना मैं जानता हूँ। करीमन के घर में खाने के लाले नहीं पड़े थे तो इतना आय भी नहीं थी की वो उच्चस्तरीय जीवन व्यतीत कर सके। उसके पिता जी का असमय मृत्यु हो जाने के बाद उनके पालन-पोषण की जबाबदेही उनके दादा-दादी पर आ गई। उन्होंने इन्हें किसी तरह पाल-पोश कर बड़ा किया। करीमन अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा था। जब वह युवा हुआ तो बाहर नौकरी करने लगा। उसी दौरान उसने अपने से छोटी बहन का शादी मेरे दोस्त के भाई से किया। जैसा की मैं जनता हूँ यह शादी बिना कोई खास लेन-देन (बिन दहेज़) के हुई थी फिर भी अन्य खर्च तो होता ही है। उस खर्च के वहन के लिए भी उन्हें जमीन बेचनी पड़ी थी। जिस से स्पस्ष्ट होता है, उनके पास कोई जामा और नगद पूंजी नहीं थी। उसके बाद भी उसने अपने और दो बहनों की शादी किया, एक भाई को दिल्ली रख कर पढ़ाया।

                        करीमन ठेका पट्टा वाले के साथ काम करता था। जो मुख्य रूप से रेलवे एवं संचार टावर का काम करते थे। इसमें उसे पगार के साथ कुछ इधर-उधर से भी आमद(आय) हो जाती थी। जितना मैं जानता हूँ, वह अल्कोहल नहीं लेता पर वह अपने सहभागियों के साथ पिकनिक एवं पार्टी अवश्य मनाता था। उसके बहुत सारे घूमते-फिरते दोस्त थे। उसकी जवानी भी अपनी तरुण अवस्था को पार कर रही थी। उसके ऊपर कोई मजबूत गार्जियन भी नहीं था। घर का भी कोई सही स्थिति नहीं था। जिस कारण उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आ रही थी। इन सब कारणों से वह इधर-उधर ज्यादा घूमता रहता। तृष्णा कहे या हवस की भूख उस में जग रही थी। जिसे मिटाने के लिए वह मुजफरपुर के चककर चौक एवं अन्य दूसरे गलियों का अपने साथियों के साथ चककर लगाता रहता। उस में अभी गैरत बाकि थी जिस कारण वह वहाँ जाने के बाद भी ज्यादा सक्रिए नहीं था। वहाँ आने-जाने, घूमने के क्रम में उसका नजर वही एक लड़की पर पड़ी जिसे वह पाना चाहा। उसकी फरमाइस उसने वहाँ की मालकिन से किया। मालकिन ने माना कर दी और बोली इसकी कीमत तुम नहीं दे सकते, कोई और पसंद कर लो और इच्छा पूरी करो। अच्छी सेवा की शर्त हमारी है। तुम्हारा मन खुश हो जाएगा। किसी प्रकार की शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा। वह बोला हम भी इसके शौकीन नहीं हैं। हम तो बस यू ही मन बहलाने के लिए घूमने चले आते हैं। हम सब को पसंद भी नहीं करते। वह बोली अच्छी बात है यहाँ आना माना थोड़े ही है। वह अब वहाँ जाता और सिर्फ घूमता, उस लड़की को देखने के बाद वापिस आ जाता। वहाँ की मालकिन उसकी हरकत देखती थी। उसने उस लड़की से उसे बात करने की छूट दे दी। अब वह उस से मिलने प्रति दिन जाया करता और बहुत खुश रहता। दोनों घंटो-घंटो बातें करते रहते। लड़की ने उसे साफ बता दी की वह इस धंधा से निकलना चाहती है और वह आजतक इस में पूर्ण संलिप्त नहीं है। वह उसे तो पहले से पाना चाह रहा था अब उसकी इच्छा और दृढ हो गई। उसने भी अपनी सारी कहानी उसे बता दिया और बोला मैं तो अभी कवाड़ा हूँ। यहाँ बस यू ही घूमने आ जाता था तो तुम्हें देखा और तुम मुझे पसंद हो मालकिन को बताया तो वह बोली तुम इसका कीमत नहीं दे सकते। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ पर तुम्हारा कीमत तो.. , वह हँस कर बोली मेरा कीमत रुपया पैसा नहीं है, मैं जिसके साथ रहूँगी उसे मुझे अपना नाम और कुल एवं वंश नाम देना होगा। वह बोला मैं तैयार हूँ पर गाँव घर में रहना बड़ा मुश्किल होगा। एक तो वहाँ सभी एक दूसरे के विषय में पूर्ण जानकारी चाहते हैं दूसरा तुम्हें ये सुख-सुबिधा नहीं मिलेगी। वह बोली अगर हम लोग स्थाई रूप से शहर में बस जाये तो कैसा रहेगा। वह बोला पर मेरे पास इतना आय कहाँ है की मैं शहर में बस सकु और किराए पर कितने दिन रहेंगे। वह बोली उसकी चिंता तुम न करो उसकी व्यवस्था मेरी माँ कर देगी। वह आश्चर्य से बोला तुम्हारी माँ वह कहाँ हैं। वह बोली वही जिसने तुम्हें मुझ से मिलने का इजाजत दिया और बोली थी की तुम उसका कीमत नहीं दे सकते। वह भी इसी दिन का इंतजार कर रही है की मेरा नाम किसी वंश, कुल से जुड़ जाए। इसलिए तो अभी तक हमें इस धंधे में नहीं उतरा है। ऐसे तो बहुत लोग शादी के लिए तैयार हैं पर उनका न कोई प्रतिष्ठा है न वंश उन से जुड़ने के बाद भी हमें यही धंधा करना-कराना पड़ता फिर क्या फायदा। मेरे औलाद भी इसी से जुड़ा रह जाएगा। पैसा का व्यवस्था तो हो जाएगा पर नाम का व्यवस्था कैसे होगी फिर वह बोली कल आना मैं माँ से बात करती हूँ। वह लड़की अपनी माँ से बात करती है, माँ ने उसे जितना जानकारी मालूम करने के लिए बताई थी वह सारी बात जितना वह जानकारी इकट्ठा (एकत्रित) कर सकी थी या मालूम कर ली थी माँ को बता दी साथ में यह भी बता दी की शादी करने के लिए भी तैयार है। उसकी माँ बोली शादी के लिए तो बहुत लोग तैयार हैं।

                      अगले दिन तीनों इकट्ठा (एकत्रित) हुए। पूर्ण विस्तार से वार्तालाप हुई। मालकिन ने अपने तरफ से पूर्ण तहकीकात की। उसके घर में कौन-कौन है। उनका रिश्तेदारी कहाँ-कहाँ है। अगर इसे प्रेम विवाह दिखाया जाए तो कौन-कौन विरोध और कौन-कौन सहयोग करेगा। तय हुआ की पहले मंदिर में शादी होगा दोनों साथ रहेंगे फिर न्यालय में। उसने करीमन से पूछी किस शहर में बसना चाहते हो। उसके बाद उसने भी अपनी राय दी। वह बोली यहाँ से दूसरा शहर ही ठीक होगा। आपके लिए पटना ही ठीक होगा। एक तो वह यहाँ से दूर है दूसरा आपके क्षेत्र में है, तीसरी खूबी है वह राजधानी है। अगर दूसरे स्थान पर बसोगे तो लोग बहुत छान-बिन करेंगे, वहाँ क्यों किस लिए, कैसे बसा। इस से अपका नाम, वंश नाम बचा रहेगा। किसी को ज्यादा सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी। कुल वंश से जुड़ाव बना रहेगा और वहाँ शहरी सुरक्षा भी प्राप्त हो जाएगी  जो आम शहरों में होता है। शहरों में लोग किसी से ज्यादा जुड़ाव या उसके विषय में जानकारी रखने की इच्छा बिना वजह नहीं रखते जैसा की गाँवो में होता है। वहाँ से यह तुम्हारे रिश्तेदारी-नातेदारी में भी घुल-मिल जाएगी और इसकी अपनी पहचान भी बन जाएगी। तीनों इस पर सहमत हो गए। उसके बाद दोनों का शादी मंदिर में सम्पन हुआ। दोनों पटना आ कर किराए के मकान में रहने लगे। मालकिन या अब यूँ कहे करीमन की सास जी ने अपनी बेटी के नाम बहादुरपुर पटना में जमीन खरीद कर उस में माकन (घर) निर्माण शुरू करा दी। 

                           उधर गावँ में शोर हो गया की करीमन प्रेम विवाह कर लिया। गाँव वालों ने सोचा करीमन गाँव आ कर बहुभोज देगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोगों में काना-फूसी होने लगी। लोगों ने अनेक बातें कही जो हवा में तीर चलाने समान थी। लोग अपने-अपने ढंग से अंदाज लगाने लगे। इनमें  से कुछ का सही भी था। उसके चाचा जी उससे मिलने आए। वे कुछ छान-बिन किया तो उन्हें कहीं से लड़की के विषय में कुछ मालूम हुआँ, उन्होंने करीमन से कहा चलो शादी कर लिया अच्छा है। तुमने कभी हमारे बारे में घर-परिवार, दादा-दादी के विषय में सोचा। गाँव में लोग क्या-क्या कह रहें हैं। दादा-दादी तो कुछ वर्षो में चल बसेंगे पर हमारा एवं हमारे वंशजों का क्या होगा। हमारे बाल-बच्चों का शादी-व्याह रुक जाएगी। गाँव में हम लोगों का साँस लेना दूभर हो जाएगा। वे उस पर दबाव बनाने की कोशिश करने लगे। वे पेशे से अधिवक्ता थे। शायद वह उनके बातों में थोड़ा आ भी गए। फिर तीनों करीमन ,करीमन की सास एवं करीमन की पत्नी राय-विचार किया तदनुपरांत करीमन अपने चाचा से मिल कर उन्हें पटना में ही बस जाने का सलाह दिया और बहुत सारे दलील भी। वे बोले मेरे पास इतना पैसा कहाँ है। घर-परिवार चलना बच्चों को पढ़ाना है, इतना सारे खर्च हैं पैसा बचता कहाँ है। वह बोला इसका चिंता न करें। मैं जमीन अपने बगल में हीं रजिस्टरी करा दे रहा हूँ। कुछ नगद का भी वयवस्था करा दूंगा। दोनों चाचा-भतीजा वहीं बस गए। उन दोनों का शादी उसके चाचा के उपस्थिति में न्यालय में भी सम्पन हो गया। सभी उस उस समय को छोड़ कर आगे बढ़ गए।

                               दोनों किसी बड़े सोच या साहसिक कदम और समाज कोचुनौती देने या लोगों का सोच बदलने के लिए ऐसा नहीं किया, बल्कि मज़बूरी में समझौता किया। कहा जाता है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी' , उस लोकोक्ति को चरितार्थ किया। एक को गरीबी से छुटकारा मिला तो दूसरे को नाम कुल वंश का पहचान। इस प्रकार दोनों एक दूसरे का उद्धधारक भी बने। शौख एवं सुधार के लिए नहीं मज़बूरी में हैं सही दोनों का उद्धधार तो हो ही गया।