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मंगलवार, 29 मार्च 2016

* भीम सिंह का जहाज *

                         भीम सिंह हमारे क्षेत्र के जाने-माने शख्सियत हैं, इनका नाम बच्चा-बूढ़ा सभी के जुबान पर है। इनके पूर्वज रईस थे और इन्हें रहीसी विरासत में मिली थी। इनके पास एक दो नहीं पुरे सात पानी की जहाज थी जो गंगा नदी में भाड़े का सामान (माल) के साथ सवाड़ी  ढोने का कार्य करती थी। ऐसे जहाज तो आज बहुत बड़ी-बड़ी होती हैं जिस पर लड़ाकू विमान से खेल के मैदान तक होते हैं। भीम सिंह की जहाज इतनी बड़ी नहीं थी किन्तु जो गंगा में चलती थी उन में सबसे बड़ी थी। यहाँ के लोग शायद इस से बड़ी जहाज नहीं देखी होगी। जिस कारण यहाँ के आस-पास के क्षेत्र में एक जुमला प्रचलित हो गई है, अगर कोई भी व्यक्ति, कोई बड़ा समान बनता है और वह बेडौल होता जिसे छोटा करने पर भी काम चल जाती तो लोग कहते "भीम सिंह का जहाज बना दिया, जो कभी भड़े ही नहीं।"

                             भीम सिंह का जीवन रहीसी में गुजर रहा था। वह कही भी जाता तो लाव-लश्कर के साथ जाता। ऐसा नहीं की वह कुर्र प्रविर्ती का था। वह जरुरत मंद लोगों का मदद भी करता था। इसी क्रम में उसका जहाजो से कमाई कम होने लगी और उसका खर्च बेहिसाब बढ़ता गया। उसके रहीसी में कुछ पतित गुणों का समिश्रण हो गया। वह अपने मित्रों के साथ मुजरा सुनने और सुनाने मुजरेवाली के पास जाता। इसी दौरान उसे एक मुजरे वाली से इश्क हो गई। मुजरे वाली का नाम सांता बाई था। सांता बाई के नयन-नक्स तीखे थे। उसकी शारीरिक संरचना को बनाने वाले ने सचमुच नाप-तौल कर सही सांचे से बनाया था। उसकी आवाज कोयल के सामान मधुर थी, उसका तारत्व का कोई जबाब नहीं था। वह निर्त्य कला में अत्यंत निपुण थी। उसकी निर्त्य सचमुच मनमोहक होती थी। वह ऐसे थिरकती थी जैसे मोर थिरकते हैं। बाध्य यंत्रो से उसका ताल-मेल देखने लायक होती। वह तबले के थाप पर ऐसा सामा बांधती की देखने वाले की सांस थम जाती। उसने अपने रूप एवं गुण का भरपूर इस्तेमाल किया। भीम सिंह उसके प्रेम पाश  या यू कहें की रूप पाश में बंधता गया।  जैसे नाग-नागिन को पाश से बंध जाने के बाद उन्हें उस समय आसानी से अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार भीम सिंह सांता बाई के रूप पाश में बंध गया। वह अब अपने जहाज के व्यापार पर कम ध्यान देता। सम्पूर्ण समय वह उसी के पास रहता। जहाज का कारोबार मुंशी-मुनीब के भरोसे रह गया, जो अपना पेट भड़ने के बाद जो शेष राशि बचता वहीं बही-खाते में दिखाते। अब उसका व्यापार घाटे का सौदा हो कर रह गया।

                      भीम सिंह सारी दुनियाँ से वेपरवाह सांता बाई के पास पड़ा रहता। उसे जब पैसे की जरुरत होती या सांता बाई जब कोई फरमाइस करती उसे पूरा करने के लिए मुंशी को कह देता। मुंशी उसके आदेश को सर आँखों पर लिए घूमता। धीरे-धीरे उसका सारा व्यापार कर्ज में डूब गया। एक दिन वह सांता बाई के बांहो में पड़े हुए उसे शादी के लिए कहा तो सांता बाई बोली इतना जल्दी क्या है। मैं कहीं दूसरे के साथ दूसरी जगह थोड़े ही जा रही हूँ। अब जब भी वह कोई फरमाइस करती, भीम सिंह अपनी मुंशी को कहता तो मुंशी कहता मालिक कर्ज बढ़ गया है। भीम सिंह ने आदेश जारी किया जहाज बेच दो। फिर क्या था एक-एक कर बारी-बारी से छः जाहजे बिक गई। अपनी स्थिति से वेपरवाह भीम सिंह सांता बाई के पास पड़ा रहता। वह उसके शादी का प्रस्ताव स्वीकार करने का इंतजार कर रहा था। वह सांता बाई पर इतना मंत्र-मुग्ध था की उसे अपने स्थिति का भान नहीं हो रहा था। वह उसके हर सही गलत फरमाइस को पूरा करवाता। वह उसके अवस्था (स्थिति) पर मंद-मंद मुस्काती। उसकी वह मुस्कान एक जहरीली नागिन से कम नहीं थी। भीम सिंह उसके मोहपाश में बिलकुल जकड़ चूका था। शायद उसे वहाँ से निकालना आसान नहीं था और कोई उसे वहाँ से निकालने का प्रयाश भी नहीं किया। भला दुनियाँ वालों को किसी से क्या ? यहाँ तो प्रतिशत लोग बनते का यार (दोस्त) हैं। लोग को बस अपनी सुबिधा चाहिए, अगर आप को बुरा साथ-संगत, वस्तु, आदत अच्छी लगती है और आप उस से खुश रहते हैं तो लोग उसी माध्यम से अपना कार्य आप से करवाना चाहते हैं। उन्हें आपके भलाई-बुराई से कुछ नहीं लेना देना।

                           भीम सिंह का लॉ-लश्कर धीरे-धीरे कम होता गया। उस से मिलने आने वालो मित्रों की संख्या भी कम होते-होते नगण्य हो गई। एक बूढ़ा मुंशी कभी-कभी आता जो उसे सांता बाई के नशे में डूबे हुए बेशुध अवस्था से जगाने का प्रयाश करता, पर वह सफल नहीं हो सका। एक रोज मुंशी बोला मालिक अब तो जग जाइए। मैं अपना फर्ज समझ कर कह रहा हूँ, कल दुनियाँ वाले मुझे गाली न दे की बूढ़ा स्वार्थ में परा रहा अपने अन्नदाता को कभी जगाने का प्रयास नहीं किया। इस पर भीम सिंह हँसता हुआँ बोला 'काका इसके आगे हमें सौ गली पसंद है। मैं अब यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा मुंशी बोला मालिक जिनके साथ हमारा व्यापार चलता है वे लोग हिशाब करना चाहते हैं। भीम सिंह बोला ठीक है कल उन्हें यहीं ग्यारह बजे लाना और आप जाइए। वह सांता बाई की तरफ मुखातिब हो कर बोला, कल हमारे हिस्सेदार (पाटनर)  आ रहें हैं उनके बैठने के लिए व्यवस्था करवा देना। वह कुटिल मुस्कान के साथ हामी में शिर हिला दी।

                                दूसरे दिन निश्चित समय पर मुंशी के साथ कई लोग आए जो भीम सिंह के साथ जहाज का व्यापार करते थे। उन्हें एक बड़े हॉल में ले जाया गया। जहाँ चारों तरफ ताम-झाम लगा हुआ था। ऊपर कसीदार झूमड़ लटकती हुई घूम रही थी। वहाँ किसी प्रकार की सुविधा और आकर्षण में कोई कमी नहीं थी। पर वे लोग भीम सिंह की स्थिति से परिचित थे। भीम सिंह हॉल में आ गया, साथ में सांता बाई भी थी। सभी का सभी से अभिवादन हुआ फिर परिचय। बाहर से जो लोग आए हुए थे, सब कुछ जानते हुए भी पूछा, ए .... भीम सिंह बोला,  ए मेरी साँस हैं इनके लिए मेरा हर कुछ कुर्बान है। जैसे कोई जीव बिना साँस का नहीं रह सकता ठीक वैसे ही मैं भी उसी प्रकार बिना इनके एक पल नहीं रह सकता। इनकी खूबियाँ मैं क्या गिनाउ। व्यापारी लोग भावशीकोरते हुए मुस्का कर अच्छी है। भीम सिंह कौन ? व्यापारी बोले, आप आपकी पसंद आपकी लगाव, पर हमारे पूर्व शर्त के अनुसार हमारे व्यापारिक बातचित में दुपक्षीये समझौता था तीसरा वयक्ति व्यापारिक पाटनर छोड़ यहाँ नहीं रह सकता। आप चाहे तो मुंशीजी को रख सकते हैं। भीम सिंह ठीक है, ऐसे हम और ये दोनों एक ही हैं। फिर भी..... बीच में बात काटती हुई वह बोली ठीक है, मैं चलती हूँ, जब आप लोगों का हिसाब समाप्त हो जाए तो हमें बता दीजिएगा और वह वहाँ से चली जाती है।

                                 मुंशी अपना बही-खाता फैलता हुआ, मालिक यह हमारी व्यापार का हिसाब-किताब है। आपको मालूम ही  है की हमारी छः जहाजे बिक चुकी हैं। इन  लोगों का हिसाब हमारे उपड निकल रहा है। साथ में और भी देनदारी है और जो कल आप ने बताया था..। भीम सिंह बस-बस, ठहाका लगता हुआ हा.. हा.. हा.. यानि हमारी सातवी जहाज भी डूब जाएगी। यह तो हमारी सबसे कीमती जहाज है। खैर, मुंशी जी लाइए कागजात सभी पर हस्ताक्षर कर दूँ। इसे भी बेच कर सारी देनदारी चूका दीजिए। कल कोई यह न कहे की भीम सिंह के पास मेरा लेनदारी है और जो कल बताया था, उसका भी व्यवस्था कर दीजिए। मुंशी बोला और शेष राशि। भीम सिंह, 'अपने पास रखिए। आपने बहुत सेवा किया है। भविष्य में जरुरत पड़ेगा तो ... मुंशी ठीक है मालिक, और सभी लोग वहाँ से प्रस्थान कर जाते हैं।

                                    भीम सिंह की मनोस्थिति उस समय गजब थी। वह एक तरह से पागल हो गया था। ऐसे वह पहले भी सांता बाई के जाल में पागल था और अभी का क्या कहना। उसकी मनोस्थिति का कोई कैसे अंदाजा लगा सकता था। हमारे यहाँ एक कहावत है "पुत्र शोक बर्दास्त होता है पर धन शोक नहीं" पर पता नहीं यहाँ उसे कौन सा शोक था। वहाँ से लड़खडाता हुआँ वहाँ से सांता बाई के भवन में जाता है। वहाँ उसे ज्ञात होता है की वह उसका इंतजार शयन कक्ष में कर रही है। वह वहाँ जाता है, सांता बाई को निहारता हुआ ठहाका लगता हैहा.. हा.. हा..। वह भी मंद-मंद मुस्कान से उसे बेहोश करती है। वह उसके पास बैठ कर उसके हर अंग को शिर से पैर तक निहारता है। उसके अंगो को टटोलते हुए ठहाका लगाता है। पुनः निहारने और टटोलने में लग जाता है। मानो वह अपना कुछ ढूंढ रहा हो। सांता बाई उससे पूछती है यह क्या कर रहे हो। भीम सिंह तुम्हारा थाह लगा रहा हूँ। तुम्हारी बनावट एवं गहराई को मापना चाह रहा हूँ। तुम्हारी प्रत्येक कोण का अनुभव चाह रहा हूँ। वह बोली इतने दिनों से थाह लगा रहे हो, अनुभव कर रहे हो। अब जो कुछ करना है, कहना है जल्दी करो। कुछ बचा है तो...... उसका भी ताकत दिखा दो जोड़ आजमाइश कर लो या फिर जाओ आराम करो। भीम सिंह ठहाका लगता हुआ, तुम क्या खाती हो, क्या पहनती हो, तुम कितनी गहरी हो। भीम सिंह के पूर्वजो का जहाज को जिसे कोई नहीं डुबो सका यहाँ तक की माँ गंगा भी, उसे तुमने डुबो दिया। जो जहाज हमारे पूर्वजो को खिलता था उससे सैकड़ो लोग जीवकोपार्जन करते (जीते-खाते) थे। उसे तुम अकेला खा गई और डकार भी नहीं लिया। तुम तो बरमूडा के ट्रैंगल से भी भयावह निकली जहाँ जहाजो का आता-पता खो जाता है। तुम और तुम्हारी अंग कौन सा समुद्रर, सागर है और ठहाका मारता हुआ भीम सिंह मुर्क्षित हो जाता है। कुछ दिनों तक उसका कोई आता-पता नहीं चलता। किसी को क्या आवश्यकता थी की वह उसका पता लगता,  खोज करता।

                           कुछ दिनों के बाद भीम सिंह को उसी क्षेत्र में  देखा गया।  उस समय वह सांता बाई और शहर के गलियों में विक्षिप्त अवस्था में घूमता हुआ दिखाई देता। सभी उससे नफ़रत करते। वह दाने-दाने के लिए मुहताज था। वह भीख मांगता हुआ नजर आता। एक रोज उसका पुराना मुंशी उसे अपने घर ले गया। अब वह ज्यादातर अपने मुंशी के दरवाजे पर ही रहता। उसका वह बूढ़ा मुंशी उसे खिलता-पिलाता और देख भाल करता। ऐसे कई लोग यह भी कहते सुने जाते की मुंशी और उसका लड़का उससे खूब मॉल बनाया है। जिसका चुकता मुंशी कर रहा है। यह सब सुन कर दिल को थोड़ा सकून मिलता है। चलो थोड़ा-बहुत तो इंसानियत अभी भी जिन्दा है।

                      हमें इस बात का ध्यान रखना चहिए की कही हम भी तो भीम सिंह की तरह डूबने तो नहीं जा रहे। किसी अति में तो नहीं फंस रहे। ऐसे संस्कृत में कहा गया है 'अति सर्वत्र बर्जते'।हमें ऐसे शौख, साथ-संगत एवं आदत से बचना चहिए जो हमें पतित करें एवं अंततः गर्त में ले जा कर डुबो दे।

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