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रविवार, 20 अक्तूबर 2019

* सनातनीयों के खिलाफ़ शाम दाम दण्ड भेद की सड़यंत्र *

* सनातनीयों के खिलाफ़ शाम दाम दण्ड भेद की सड़यंत्र *


जो जन्म से हो कर्म से बंधा हुआ हो सभी का कल्याण चाहता हो उसी को सिर्फ धर्म कहलाने का हक है और सभी सम्प्रदाय या धर्म का एक अंश भर कह सकते हैं । ए सारी खूबियाँ सनातन धर्म में छोड़ कहीं नहीं पाई जाती है। यहीं कालांतर में हिन्दू धर्म कहलाया जो आप जानते ही हैं साथ में आपको विदित हि होगा की यह धर्म कहाँ तक था जो समय के साथ संकुचित होता गया । आज इसके अनुआई अपने आप में ही संकुचित होते जा रहें हैं । जो विश्व कल्याण के लिए अच्छा नहीं है ।जब कलयुग का शुरुआत हुआ समय अपना प्रभाव दिखाने लगी सनातनी कमजोर होने लगे और सम्प्रदाय जोड़ लगाने लगे ।

अगर पौराणिक कथाओं को छोड़ भी दें अगर यहाँ वेद उपनिषद का भी चर्चा न करें तो भी , अगर आपको जो विदेशी शिक्षाविदो द्वारा जो  पढ़ाया गया है जो आपके मन मस्तिक में रच बस गया है । वहाँ से भी देखें तो सनातन धर्म के खिलाफ शाम दाम दण्ड भेद की नीति का प्रयोग किया जा रहा है ।

चंद्रगुप्त और सेलुकस का युद्ध आपको मालूम ही है । ईस युद्ध में चंद्रगुप्त विजय हुए अगर वे हार जाते तो परिणाम का आप कलपना नहीं कर सकते । ए शाम नीति था । पृथ्वीराज चौहान सत्रह बार जिते और एक बार हारे परिणाम आपको विदित है ।

           कालांतर में यहाँ मुगलों और अन्ग्रेज का शासन रहा जिसमें सनातनीयों पर अनेक प्रकार के कर लगाए गए । मिसनरियों और सुफियो के द्वारा दाम के माध्यम से इन्हे रूपांतरण करने का प्रयास जारी रहा । आज भी मिसनरियों के द्वारा दुर्गम क्षेत्र, बनवासी क्षेत्र में सेवा के नाम पर लोभ प्रलोभन देकर जारी है । जो विशेष संस्कृति, रीति-रिवाजों के लोग और क्षेत्र हैं, वहाँ यह खेल धरेले से आज भी जारी है ।

दण्ड और तलवार नीति का इस्तेमाल इतना कठोर रूप से किया गया की अगर कोई सनातनी छोड़ कोई और होता तो उनका समूल नाश हो गया होता ।  इतिहास में इसका 100- 200 नहीं हजारों उदाहरण हैं । गुरु गोविंद सिंह जी के लड़के को जिन्दा दिवाल में चुनवा दिया गया । बन्दा वैरागी के शरीर से मांस गर्म लोहा से नोच लिया गया पृथ्वी राज चौहान की बेटी को अपना धर्म नहीं छोड़ने पर चिस्ती के कहने पर मुगल सैनिकों के सामने नंगा नोचने के लिए फेंक दिया गया था ।

आज भी सनातनियों और अन्य लोगों की सहायता से यह कार्य जारी है । आज इसमें कई गैर सरकारी संगठन, जाति और धर्म के नाम पर बने संगठन यहाँ तक की कई साहित्यिक संस्था के नाम भी ईस में सामिल है ।इसे हम इनके भेद नीति के अंतर्गत कह सकते हैं ।सनातनी  कोमल हृदय विश्व कूटुम्भकम में विश्वास रखते हैं । आज यहीं गुण इनके विनाश का कारण बनती जा रही है । आप साईं ट्रस्ट,  भीम सेना इत्यादि के गतिविधियों को बारीकी से अध्ययन करेंगे जांचेंगे पारखी नज़र से देखेंगे तो सभी चीजें आपको स्पष्ट हो जायेगी । साईं ट्रस्ट बनाने में इसके प्रचार प्रसार हेतु सहयोग करने राशि इकट्ठा करने वाले और राशि देनें वाले का चार्ट बनाये सारी कहानियाँ आपको समझ आ जाएगी । एक बात पर आपका
 चाहता हूँ । जितनी भी साईं मन्दिर बनी सभी सनातनी हिन्दू मन्दिर के बगल में ही बनी पहले छोटा फिर धीरे-धीरे बगल वाली मन्दिर से बड़ी हो गई , सभी का नाम भी बगल वाली या किसी हिन्दू देवी देवताओं के साथ जोड़ा गया है। मन्दिर के अन्दर देवी देवताओं का मूर्ति छोटा होता गया और साईं का मूर्ति  बड़ा होता गया और अब तो कई जगहों से देवी देवताओं का मूर्ति गायब भी की जा चुकी हैं । यह सनातन धर्म और संस्कृति को नुकसान पहुँचाने के लिए बहुत बड़ा सड़यंत्र है । जिसमें ए लोग कामयाबी भी हासिल कर रहे हैं ।

          भीम सेना का नाम आपने सुना होगा अभी यह संस्था सुर्खियों में है जिसके कई कारण हैं । इसे बनाने वाले और धन मुहाईया कराने वाले पर ध्यान दिया जाय तो आपको इनकी चालाकी समझ आ जायेगी । अगर हम अम्बेडकर साहब के अंतिम समय का कथन को ध्यान दे तो उनके दूरदर्शिता को मानना पड़ेगा जिसका उन्हें डर था वहीं हो रहा है । अगर यह सेना पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए है तो बहुत अच्छी बात है पर एसा नहीं है ।यह संस्था पूर्ण रूप से अलग क्षेत्र में कार्य कर रहा है । लोगों को अपने संस्कृति और धर्म के प्रति हिन भावना को बढ़ाना । इनके पूजा पद्धति खान-पान, शादी-ब्याह के तौर तरीकों में परिवर्तन लाना ।गैर कानूनी और असंवैधानिक गतिविधि को बढ़ावा देना । एसे सम्प्रदाय को बढ़ावा देना जो आज पूरे विश्व में आतंक का प्राय है । जिसे बौद्ध के देश में छोड़ दे तो भी बौद्ध बहुल देशों में भी हे दृष्टि से देखा जा रहा है ।

        सनातनीयों को आज यह विदित होनी चाहिए की उन्हें येन केन प्रकारेण  नष्ट करने उनके संस्कृति को क्षति पहुँचाने का उनके  कृति को नष्ट करने का प्रयास वर्षों से आ रहा है । उनके साहित्य, ग्रंथों, प्रमाणों में छेड़छाड किया गया ।उनके ज्ञान विज्ञान को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया गया । लौह उत्पादन और रेशम उत्पादन तथा वैदिक खान पान और चिकित्सा पद्धति को नष्ट किया गया ।


        अभी भी समय है आपके लिए अपने आप को बचाने का जागरूक होइये और अपनो को जागरूक किजीए ।
🌹🙏नरेन्द्र कुमार 🙏🌹 क्षमा प्रार्थना के साथ 🌹🙏

सोमवार, 15 मई 2017

ड्रैगन 🐲 का आग 🔥में झुलसेंगे पड़ोसी जलेगा पाक

ड्रैगन 🐲 का आग 🔥में झुलसेंगे पड़ोसी जलेगा पाक

आप सभी को विदित है , डैगन आग उगलता है। ऐसे जीवन में आग का बहुत महत्व है जीवन को बढ़ाने और सुविधा जन बनाने के लिए आग का महत्वपूर्ण स्थान है। बिन आग का जीवन का कल्पना नहीं कर सकते हैं। वह अंदर का आग हो या बाहर का।
                 हम यहाँ दूसरे आग को छोड़ 🐲  का आग का चर्चा करना चाहेंगे। जो चाइना से सम्बन्धित है। चाइना के अन्दर ड्रैगन का आग जल रहा है। यह आग आवश्यकता पूर्ति विकाश तक तो ठिक है। पर अब यह आग उसके तृष्णा, स्वार्थ, साम्राज्यवाद,तुष्टीकरण में तबदील हो चुका है। जो अपने पड़ोसियों को आने वाले समय में बुरी तरह झुलसा कर रख देगा। यह अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए बुरे विचार धारा के आग को अपने सुविधा अनुसार हवा दे रहा है। एक तरफ नाम, पोशाक पर प्रतिबंध लगा रहा है तो दूसरे तरफ नफरत, डर, अमानुषता फैलाने वाले को संरक्षण प्रदान कर रहा है, जो इसके बुरे आग का प्रतीक है। वह विकाश के नाम पर कुछ एक को मदद कर रहा है जो बहुत ही सुन्दर बात है, पर यहाँ भी उसका उन्हें जलाने वाली भावना कार्य कर रही है। वह किसी को ऐसे मदद या सहयोग नहीं कर रहा, जिस से आम नागरिक का सुविधा बढ़े उनका जीवन स्तर उच्च हो। आप इसके योजनाओं का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे की इन योजनाओं से वह अपना उपस्थिति दर्ज कर रहा है,  जिस में उसकी सैन्य विस्तार है जो उसके विस्तार वादी नीति का सुचक है। वह ऐसा साधन विकाश कर रहा है, जिस से वह वहाँ अपनी सैन्य तैनाती आसानी से कर सके साथ में वह जिन्हें मदद कर रहा है, उन्हें कर्ज के कुचक्र में फसाते जा रहा है। इस कुचक्र में फसने के बाद इन देशों का वास्तवित विकाश रूक जाएगा और वे इसके उपनिवेश बनने पर मजबूर हो जाएंगे। इन्हें समय रहते सचेत और चिंतन शिल होने की आवश्यकता है। ड्रैगन के आग को नियंत्रण करने की आवश्यकता है। इस प्रकार सिद्ध है की ड्रैगन का आग में जलेंगे कुछ हिस्से जिस में न बचेगा कोयला न बचेगा राख।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

* चाइना चालाक है *

       * चाइना  चालाक है *

आप मानो या न मानो चाइना और चाईनीज हम से चालाक हैं। वहाँ के लोग और सरकार हमारे व्यवहार, हमारी आदत और हमारी हर पहलू का बारीकी से अध्ययन करते हैं। उसके बाद उसे वे अपने लाभ को देखते हुए उत्पादन करते हैं। तभी तो आप देख सकते हैं की चाइना उत्पाद आज हमारे हर पहलू में प्रवेश कर गई है। वहाँ की सरकार और लोगों का यहाँ के धर्म, सम्प्रदाय के लिए न कोई लगाव है न मान सम्मान फिर भी उनके उत्पाद के बिना ऐसा लग रहा है की यहाँ की धर्म और सम्प्रदाय चलेगा ही नहीं। यहाँ के लोगों का व्यवहार और उनके उत्पाद ऐसा सिद्ध कर रहें हैं।

         अब वे यहाँ के लोगों का ईश्वर पर ज्यादा भरोसा, ज्योतिष पर विश्वास, भाग्यवादी होने का पूर्ण लाभ भी उठाना शुरु कर दिया है। फेंक सुई का बकवास टोटका यहाँ सभी लोगों का सर चढ़ कर बोल रहा है। जो पूर्ण रुपेन प्रचार और व्यापार पर आधारित है।

         वर्तमान में चाइना यहाँ के लोगों का दूसरे पहलू का अध्ययन किया है। वह है मनोरंजन का आदत। वह समझता है यहाँ के लोगों के पास बेकार के समय बहुत है। ऐ काम कम और उम्मीद ज्यादा रखते हैं। ऐ मनोरंजन के लिए उलटें-सुलटें विडियो और फिल्म देखना पसंद करते हैं। इस को देखते हुए उसने क्षेत्र में कदम रख दिया है। उसके उलटें – सुलटें फिल्म और विडियो को लोग खुब देख रहें हैं और दिखा रहें हैं। यह सब उसके व्यावसायिक मस्तिष्क का उपज है।

         वह हमारे हर क्षेत्र में कमाईं का स्रोत ढूंढ लेता है और हम उसके आमद का स्रोत और संसाधन बन जाते हैं । वह उस पैसें को फिर हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल करता है। इससे सिद्ध होता है कि हम महामूर्ख है या चाइना चालाक है ।
नरेन्द्र कुमार
मगसम२६३६/२०१६👏

गुरुवार, 19 जनवरी 2017

* नेता जी की नेता गिरी *

* नेता जी की नेता गिरी *
हमारा भविष्यवाणी सत्य हो चुका है अंदरूनी मिस्टरी आगे है :-
उत्तर प्रदेश की घटना क्रम सभी विचारकों को सोचने को मजबूर कर रहा है । आप को क्या लग रहा है ! क्या मुलायम जी इतना लाचार थे, उनकी बनाईं हुई पार्टी और अपने नेताओं से सम्बन्ध इतना कमजोर था, जो उन्हें एक ही झटकें में छोड़ दिये। नहीं ऐसी बात नहीं है । अगर ऐसी बात है तो नेता जी को राजनीति से अब सन्यास ले लेनी चाहिए। यह सब नेता जी की नेता गिरी है। आप को विदित है पिछलें दो माह से मीडिया और सारे नेता सिर्फ उनके परिवार और पार्टी पर ही चर्चा कर रहें हैं। इसके उन्हें दो फायदे हो रहा या हुआ। पहली तो मुफ्त में उनकी सोच के अनुसार सभी जगह उनके और उनके चुनाव चिन्ह का ही चर्चा हुआ जो चुनावी परचार का एक हिस्सा है। दूसरी तरफ कोई भी आज तक उत्तर प्रदेश की बदहाली, शासन व्यवस्था, कानून व्यवस्था या विकाश पर कोई चर्चा नहीं हुई जो उन्हें आलोचना और अपने कमी से बचने का सुनहरा अवसर प्रदान किया या यू कहें ऐ अपने नीति में सफल रहें।
             यह सम्पूर्ण दंगल नेता जी की नेता गिरी था और है । वे अपने कुछ पुराने वफादार लोगों को स्वयं रुष्ट भी नहीं करना चाहते थे और अपने पुत्र को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का रास्ता भी बनाना चाहते हैं। क्यूकी वे राजनीति गलियारे में जितनी ऊँचाई तक स्वयं जा सकते थे जा चुकें हैं। वे इस में सफल भी हो चुकें हैं।
      बिहार वाली चुनावी मिस्टरी उत्तर प्रदेश में भी चल रहा है। वही प्रशांत है जो दो धुर विरोधियों को मिला दिया और परिणाम आप देखें ही हैं। आज भले ही कुछ लोग इस परिणाम पर पचता रहें हैं। ऐसा नहीं की उस मिस्टरी में सपा और मुलायम जी का कोई सहयोग नहीं था। वे एक सोचीं समझी रणनीति के अंतर्गत उस गठबंधन से अलग रह कर उस गठबंधन को लाभ पहुंचाया था । आप सभी को मालूम होनी चाहिए की लालूजी और मुलायम जी में बेटी-रोटी का सम्बन्ध है जो सब से मजबूत बंधन माना जाता है। सपा को बिहार गठबंधन में  ६-८ सीटे मिल रहीं थी पर उसने वे सीटें न ले कर अलग से चुनाव लड़ा। इसका मुख्य कारण था उनका मिल-बैठ कर वोट बैंक की गणित बैठाना और इनका मुख्य मुदा था भाजपा को नुकसान पहुंचाना।
           आपको ज्ञात होगा बिहार में सपा ने सभी स्थानों से उम्मीदवार नहीं उतारें थे। वह सिर्फ ऐसे जगहों से उम्मीदवार उतारें जो जातिगत समीकरण पर भाजपा का वोट काटें और जहाँ भी उन्हें उस प्रकार का उम्मीदवार मिलें उसे इन्होंने अपना चुनाव चिन्ह दिया और वे अपने मिस्टरी में सफल भी हुए। उसी मिस्टरी के अंतर्गत और मुलायम जी के राजनीति कैरियर में और अवसर के लिए अखिलेश जी ने नीतिश जी और ममता दीदी  को दो सीटे देने का निमंत्रण दिया है, क्योंकि अगर ये दोनों उम्मीदवार खड़ा करते हैं तो ऐ सपा को नुकसान पहुंचायेंगे न की भाजपा को। इस मिस्टरी से अखिलेश जी मुलायम जी के राजनीति कैरियर में अभी और अवसर बनाएँ रखना चाह रहें हैं या यू कहें मुलायम जी भी ऐसा चाह रहें हैं।
          आपको मैं पहले ही बता चुका था की सपा नहीं टूटेगी और नहीं टूटी । नेता जी अपने नेतागिरी में अभी तक पूर्ण सफल हुए हैं।
👏🍬👏

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

* सेमी *

                      मैं सेमी अभी कहाँ हूँ और किस हालत में हूँ !ए मैं आपको बाद में बताउंगी मेरी हालत उन मानसिक विक्षेपितों जैसा हो गई है, जिन्होंने अपना ठौर-ठिकाना भुला दिया है। कुछ विक्षेपितों को अपना क्रिया-कलाप तो याद रहता है पर वे क्या और क्यूँ कर रहें हैं, इस पर उनका अपना पकड़ नहीं होता, साथ ही उन्हें इसकी भी भान नहीं होती। इन से मेरी हालत कुछ अच्छी है। क्यूँ के लिए तो मैं कुछ नहीं कर सकती पर क्या-क्या हो रही है औरक्या-क्या हमारे साथ हुई लगभग पूर्णतः नहीं पर अंशतः मुझे आज भी याद है। 

                           आप सोच रहें होंगे, आखिर यह कौन है ? इसकी कहानी क्या है ? इस पर विश्वास किया जाए या नहीं इत्यादि-इत्यादि। मैं आप को बता दूँ , "मैं आग्नेयास्त्र समूह का एक सदस्य हूँ।" मेरी यह कहानी आपबीती है। हमें लोग क्यों रखना चाहते हैं, हमारे उत्कृष्ट सदस्यों को कैसे प्राप्त करते हैं, जो इसके योग्य नहीं भी हैं।हमें रखने या प्राप्त करने का क्या तरीका है। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ की आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं मतलब आप हमारे द्वारा बयान की गई बातों को सत्य माने। 

                          आज ही नहीं प्राचीन काल से यह परम्परा रही है, जिन्हे हमारी आवश्यकता है, चाहे इसका कारण कुछ भी हो। जैसे आत्मरक्षा, सम्पत्ति सुरक्षा, दबंगई,रोजी-रोजगार प्राप्ति हेतु या शौखिया उन्हें शासन-प्रशासन द्वारा अनुज्ञा (लाइसेंस) प्रदान की जाती है। जिस पर मेरी प्रकार, संख्या और उनके तस्वीर के साथ उनका पूर्ण पत्र-व्यवहार एवं स्थाई, अस्थाई पता अंकित रहती है। निर्गत अधिकारी का हस्ताक्षर शील मुहर के साथ वर्ष को दर्शाया जाता है। मेरी और उनका अभिलेख सम्बंधित विभाग में सुरक्षित रहती है। 

                           आप को मैं यहाँ बता दूँ मैं या मेरी सहेली आज तक किसी का जान बचाई नहीं बल्कि लिए ही हैं। कोई कुछ भी दलील दे यह सिद्ध नहीं कर सकता की मेरे समूह का सदस्य किसी की रक्षा की हो। हाँ मैं यह मान सकती हूँ। जो हमें पहले इस्तेमाल करता है। वह किसी का पहले जान ले सकता है। हमारी जाती समूह का फितरत ही है, खून बहाना, जान लेना। कुछ लोग जो दिल के कमजोर ( यानि दिल का पुकार सुनने वाला, क्यों की दिल प्रथम बार सत्य और सही बोलता है पर लोग उसे अपने स्वार्थ, अभिमान एवं क्रोध से दबा देते हैं) और दिमाग के दुरुस्त होते हैं। वह हमें देखने के उपरांत समझौता में विश्वास व्यक्त करते हैं। मुझे इस्तेमाल न किया जाए ऐसा प्रयास करते हैं। 

                             मेरा नाम सेमी, कोई १५ बोर भी कहता है।  यह  ८.४ एम.एम. सेमी पुराने समय में या आज से पहले, मैं स्वचालित आती थी। अब वर्तमान में नहीं। वर्तमान में  मुझ में से स्वचालित वाली पुर्जा हटा दी गई है। सशस्त्र बालो को छोड़, सामान्य नागरिकों को स्वचालित आग्नेयास्त्र रखने की अनुमति नहीं है। इसके लिए न कोई अनुज्ञा निर्गत की जाती है। अब मैं आप को अपनी व्यथा सुनाती हूँ। 

                             बिहार का दियारा क्षेत्र जहाँ शासन-प्रशासन के लोग कभी कभार ही जाते हैं। वर्षा के मौसम में नाव की सवारी कर यहाँ लोग आसानी से आवा-गमन करते हैं। यह क्षेत्र सोन और गंगा नदी के पेटी के मिलने से बना है। यहाँ नाव और आग्नेयास्त्र लगभग प्रत्येक घर में मिल जाएगी। कुछ क़ानूनी कुछ गैर क़ानूनी। वर्षा का मौसम छोड़ अन्य समय में किसी व्यक्ति को अनजान व्यक्ति द्वारा ढूँढना बड़ा कष्टकर एवं मुश्किल है। इसी दियरा क्षेत्र में एक टोला है, 'मान सिंह का टोला।' यहाँ एक घर में दो भाई हैं। एक का नाम सुरेन्द्र सिंह दूसरे का नाम महेन्द्र सिंह। इनका अपना घाट चलता है, जिसका घटवारी इन्हें प्राप्त होता है। इनके पास कई नाव हैं, जो मोटर चालित है। इनसे ए सवारी एवं माल (सामान) ढोने के साथ बालू  निकलवाने का भी काम करवाते हैं। इसके अलावे ये दोनों भाई बालू घाट में पट्टा पर कार्य करते हैं। इनके पेशा एवं सोच ने इन्हें आग्नेयास्त्र का शौकीन बना दिया। ऐसे इनके पास कई आग्नेयास्त्र हैं। जैसा की आपको बिदित है अब सेमी स्वचालित का अनुज्ञा नहीं मिलती है। फिर भी इन्होने ऐसे किसी जोगाड़ तंत्र से बनवा लिया। जिसे हम फर्जी भी कह सकते हैं। उसी अनुज्ञा पर ए मुझे प्राप्त किए। जो लोग आग्नेयास्त्र रखने की मानशिकता रखते हैं उन सभी में मैं, सभी की पहली पसंद हूँ। यहाँ से पास के शहर आरा में पाँच भाई रहते हैं। इनमें दो का नाम सभी जानते हैं। तीसरा भी सर्वगुण आगर है और  दो व्यवसाय में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। वहाँ से आस-पास के क्षेत्र में कोई भी बड़ा काम क़ानूनी हो या गैर कानूनी इन्हें बखूबी जानकारी होती है। उस कार्य में ए सहभागी रहते हैं या या उस काम को कौन सी गुर्गा कर रहा है या किया है इन्हे बखूबी मालूम होती है। ऐसे ए यहाँ एक व्यवसाई की हैसियत से जाना जाता है। पैसा एवं राजनीति के खेल में इनकी अच्छी पैठ है। इनके पास आस-पास के इलाके के बेरोजगारों एवं मुफ्त के फुटानी करने वालो की, एवं जिन्हें अपने योग्यता से ज्यादा पाने की लालसा होती है। जो समाज में दबंगई दिखाना चाहता है, जिसे कुछ लोग लफूआ भी कहते हैं। जो शारीरिक परिश्रम नहीं करना चाहते और झूठ-मूठ की जाती एवं पूर्वजों के प्रतिष्ठा से चिपके हुए हैं। उनका एक फौज इन्होंने रख रखा है और उनका बखूबी इस्तेमाल भी करते हैं।

                        आप को आगे बता दू की मेरी खबर भी इन्हें लगी। मेरा उन दोनों भाइयों के पास होना इन्हें अच्छा नहीं लगा या यूँ कहे की इनका दिल मेरे उपर आ गई। दोनों भाई मेरा भरपूर इस्तेमाल करते। मेरा उनके पास होना उस क्षेत्र में उनके लिए गर्व की बात हो गई थी। मैं जब उनके पास होती तो वे नदी के दूसरे छोड़ के घाट से विरोधी को उतरने भी नहीं देते। उधर व्यवसाई बंधु उर्फ़ सेठ जी हमें पाना चाहते थे या यूँ कहे की उन दोनों भाइयों से हमें अलग करना चाहते थे। इसी बीच संयोग से उसी क्षेत्र के दूसरा टोला जिसका नाम बथानी टोला है। वहाँ के एक गुर्गे ने मुझे उन दोनों भाइयों से नव पर ही धोखे से हथियाँ लिया। वे दोनों भाई उसे जानते न थे न वे लोग ही उसे जानते थे। पर वे किस स्थान के निवासी है वे दोनों भाई जान गए। मैं कहाँ हूँ और मुझे कौन रखा है, वे लोग किसके घर के थे इसके लिए उस क्षेत्र में तनाव व्याप्त हो गई। मेरे चकर में कई लोगों का जान चली गई। कई बार पंचायत हुई। मुझे छुपा दिया गया ताकी मुझे रखने वाले की पहचान उजागर न हो। वह गुर्गे के लोग जो मुझे उन दोनों भाइयों से हथियाया था। वे बथानी टोला के स्थाई निवासी नहीं थे। वे समय रहते वहाँ से खाली हाथ हीं निकल गए। इसका मुख्य कारण उस क्षेत्र में दोनों भाइयों का वर्चस्व था। जो व्यक्ति मुझे इनसे हथियाया था, वह उनसे सही तरीके से परिचित नहीं था। पर उन दोनों भाइयों को पूर्ण विश्वास था की वह सख्स बथानी टोला का ही है और यह सत्य भी था। इनके लिए वहाँ से मुझे निकालना आसान भी नहीं था। क्योंकि मैं किसके पास हूँ यह उन्हें मालूम न था। दोनों भाई अपने गुर्गे के साथ वहाँ गए पर इनका हथियार ले कर दबंग की तरह वहाँ आना वहाँ के लोगों को नागवार गुजरा। वहाँ के लोगों से उन्हें किसी प्रकार का सहयोग न मिला बल्कि उनका विरोध उन्हें झेलना पड़ा। वे वहाँ से खाली हाथ लोगों को कोसते हुए वापिस आ गए। उन दोनों भाइयों ने आपस में बैठ कर एक योजना बनाई और सही समय का इंतजार करने लगे। लोग समझे वे शांत हो गए, पर वे कब शांत होने वाले थे। वे मुझे पाने को व्याकुल हो रहे थे। जैसे उनका संगी गुम हो गया हो या उसे कोई भगा ले गया हो। मेरा खो जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वे अपना तौहिणी समझ रहे थे।

                                  वर्षा का मौसम था। सोन और गंगा नदी का पाट  पूर्णतः भरा हुआ था। जैसे शेर दहाड़ता है, हाथी चिंघाड़ता है उसी प्रकार दोनों नदी के आवाज से लोग शांत हो रहे थे। उस समय लगभग सभी लोग अपने-अपने घरों में ही रहना पसंद करते हैं। उस नाज़ुक स्थिति को देखते हुए दोनों भाइयों एवं उनके गुर्गे ने बथानी टोला को चारों तरफ से नव पर सवार हो कर घेर लिया। उस समय वह टोला समुद्र में एक छोटा द्वीप (टापू) से ज्यादा कुछ नहीं था। दोनों भाइयों ने समुचित आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए, लोगों का सम्बोधन किया और अपनी बात बताई तथा सभी का तलाशी लेना चाहा। उनके इच्छा का किसी ने बिरोध भी नहीं किया। जो लोग थोड़ा कुनमुन कर रहे थे, वे भी वस्तु स्थिति को भांपते हुए चुप एवं शांत रहने में ही भलाई समझा। वे छानबीन कर लिए पर मैं उन्हें वहाँ कहा मिलने वाली थी। मैं जिसके पास थी वह मुझे बचाने के लिए या फिर उनके डर से उस दहाड़ में भी एक छोटी सी नाव पर ले कर सो रहा था। उस नाव को आम तौर पर डेंगी भी कहते हैं। मुझे वहाँ उस स्थिति में रखी जा सकती है। वे लोग सोच भी न सके। वे पुनः खाली हाथ वापिस लौट गए। वे समुद्र की तरह बिलकुल शांत हो गए। पर उनके मुखबिरों का दल सक्रिय रहा।

                            मैं  कहाँ और किसके पास थी या हूँ इसकी सूचना सेठ बंधुओं को बखूबी थी। उनका तार उस गुर्गे से जुड़ा हुआ था। जैसा की मैं पहले बता चुकी हूँ। वे भी हमें प्राप्त करने का इच्छा रखे हुए थे। ऐसा नहीं की वे मुझे पा नही सकते थे पर वे इसके लिए कोई बड़ा कीमत चुकाना नहीं चाहते थे। यहाँ कीमत का मतलब रुपया-पैसा नहीं है। मैं जिसके पास थी उस में और सेठ बंधु के आदमी में मेरे सौदे की बात पक्की को गई। समय स्थान सब निश्चित हो गया। यहाँ भी सेठ बंधु पर्दे के पीछे ही रहे। वे नहीं चाहते थे की उनका भी तार इस में जुड़ा हुआ है या मेरी कोई खबर उनके पास है। उन दोनों भाइयों को मालूम हो। उधर दोनों भाई मुझे खो जाना अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रहे थे। वे मुझे किसी भी कीमत पर प्राप्त करना चाहते थे। उन्हें जैसे ही मेरे सौदे की भनक लगी। उन्होंने वहाँ अपना जाल बिछा दिया, पर वहाँ भी दोनों दल पहले से ही सतर्क था। जैसे ही दोनों दल मैदान में आई दोनों भाइयों का दल भी उसमे सम्मिलित हो गया। तीनों तरफ से गोली चली और दो लोग वहीं ढेर हो गए। मैं उन्हें वहाँ भी नहीं मिल सकी। मुझे उसी क्षेत्र में छुपा दिया गया। यूँ कहे हमें मम्मी बना दफ़ना दिया गया। मारे जाने वाले में दोनों भाइयों के दल में से कोई नहीं था। मेरी अदला-बदली करने वाली दल में से ही मारे गए थे।

                          उधर इस घटना की खबर सेठ बंधुओं को ज्ञात हुआँ। उन्हें इसका दुःख भी हुआँ। उन्हें दुःख से ज्यादा यह चिंता थी की कही वे मुख्य पृष्ठ पर न आ जाए। वे उस क्षेत्र का मुख्य कार्य (काम) उन दोनों भाइयों से ही करवाते थे। उस क्षेत्र में किसी कार्य की सफलता के लिए उन दोनों भाइयों की सहमति जरूरी चाहिए थी। सेठ बंधु अब यहाँ सुलह चाहते थे। उनके प्रयास से उस क्षेत्र के सभी गुर्गो को एकत्र किया गया। इस प्रकार की घटना पुनः न दोहराई जाए, इसके लिए दोनों भाइयों को मनाने की प्रयास किया गया। दोनों भाइयों ने कहाँ हमें हमारा हथियार चहिए। सेठ जी ने उन्हें मुझे और उस घटना को भूलने का अपील किया। वे उन्हें मेरे बदले में या मुझे भूलने के लिए अपने तरफ से पैसे देने का पेशकश किया और कहा उस में क्या रखा है, कोई दूसरा ले लो। दोनों भाइयों ने पैसा लेने से इंकार कर दिया और कहा पैसे की बात नहीं है। हम इतने दयनीय स्थिति में नहीं हैं की हमें आप से आर्थिक मदद लेनी पड़े। वहाँ राय विचार और अन्य लोगों को हिदायत दे कर उस घटना को दोनों भाइयों के जेहन से विसारने का प्रयास किया गया।

                          मैं आज गुमनाम स्थिति में हूँ। मेरे खोने का कसक दोनों भाइयों के दिल में आज भी है। मुझे जिस दिन सक्रिय किया गया या मैदान में निकालने का प्रयास किया गया और उसका भनक दोनों भाई को लगी तो पुनः पुरानी घटना दोहराई जा सकती है। वर्तमान में मेरे सम्बन्धी सभी लोग शांत हैं। भविष्य में मुझ से सम्बंधित कोई घटना क्रम घटती या होती है तो उन सभी के साथ मैं पुनः आप से अगली कड़ी में मुखातिब होउंगी। तब तक के लिए राम-राम। 


मंगलवार, 29 मार्च 2016

* भीम सिंह का जहाज *

                         भीम सिंह हमारे क्षेत्र के जाने-माने शख्सियत हैं, इनका नाम बच्चा-बूढ़ा सभी के जुबान पर है। इनके पूर्वज रईस थे और इन्हें रहीसी विरासत में मिली थी। इनके पास एक दो नहीं पुरे सात पानी की जहाज थी जो गंगा नदी में भाड़े का सामान (माल) के साथ सवाड़ी  ढोने का कार्य करती थी। ऐसे जहाज तो आज बहुत बड़ी-बड़ी होती हैं जिस पर लड़ाकू विमान से खेल के मैदान तक होते हैं। भीम सिंह की जहाज इतनी बड़ी नहीं थी किन्तु जो गंगा में चलती थी उन में सबसे बड़ी थी। यहाँ के लोग शायद इस से बड़ी जहाज नहीं देखी होगी। जिस कारण यहाँ के आस-पास के क्षेत्र में एक जुमला प्रचलित हो गई है, अगर कोई भी व्यक्ति, कोई बड़ा समान बनता है और वह बेडौल होता जिसे छोटा करने पर भी काम चल जाती तो लोग कहते "भीम सिंह का जहाज बना दिया, जो कभी भड़े ही नहीं।"

                             भीम सिंह का जीवन रहीसी में गुजर रहा था। वह कही भी जाता तो लाव-लश्कर के साथ जाता। ऐसा नहीं की वह कुर्र प्रविर्ती का था। वह जरुरत मंद लोगों का मदद भी करता था। इसी क्रम में उसका जहाजो से कमाई कम होने लगी और उसका खर्च बेहिसाब बढ़ता गया। उसके रहीसी में कुछ पतित गुणों का समिश्रण हो गया। वह अपने मित्रों के साथ मुजरा सुनने और सुनाने मुजरेवाली के पास जाता। इसी दौरान उसे एक मुजरे वाली से इश्क हो गई। मुजरे वाली का नाम सांता बाई था। सांता बाई के नयन-नक्स तीखे थे। उसकी शारीरिक संरचना को बनाने वाले ने सचमुच नाप-तौल कर सही सांचे से बनाया था। उसकी आवाज कोयल के सामान मधुर थी, उसका तारत्व का कोई जबाब नहीं था। वह निर्त्य कला में अत्यंत निपुण थी। उसकी निर्त्य सचमुच मनमोहक होती थी। वह ऐसे थिरकती थी जैसे मोर थिरकते हैं। बाध्य यंत्रो से उसका ताल-मेल देखने लायक होती। वह तबले के थाप पर ऐसा सामा बांधती की देखने वाले की सांस थम जाती। उसने अपने रूप एवं गुण का भरपूर इस्तेमाल किया। भीम सिंह उसके प्रेम पाश  या यू कहें की रूप पाश में बंधता गया।  जैसे नाग-नागिन को पाश से बंध जाने के बाद उन्हें उस समय आसानी से अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार भीम सिंह सांता बाई के रूप पाश में बंध गया। वह अब अपने जहाज के व्यापार पर कम ध्यान देता। सम्पूर्ण समय वह उसी के पास रहता। जहाज का कारोबार मुंशी-मुनीब के भरोसे रह गया, जो अपना पेट भड़ने के बाद जो शेष राशि बचता वहीं बही-खाते में दिखाते। अब उसका व्यापार घाटे का सौदा हो कर रह गया।

                      भीम सिंह सारी दुनियाँ से वेपरवाह सांता बाई के पास पड़ा रहता। उसे जब पैसे की जरुरत होती या सांता बाई जब कोई फरमाइस करती उसे पूरा करने के लिए मुंशी को कह देता। मुंशी उसके आदेश को सर आँखों पर लिए घूमता। धीरे-धीरे उसका सारा व्यापार कर्ज में डूब गया। एक दिन वह सांता बाई के बांहो में पड़े हुए उसे शादी के लिए कहा तो सांता बाई बोली इतना जल्दी क्या है। मैं कहीं दूसरे के साथ दूसरी जगह थोड़े ही जा रही हूँ। अब जब भी वह कोई फरमाइस करती, भीम सिंह अपनी मुंशी को कहता तो मुंशी कहता मालिक कर्ज बढ़ गया है। भीम सिंह ने आदेश जारी किया जहाज बेच दो। फिर क्या था एक-एक कर बारी-बारी से छः जाहजे बिक गई। अपनी स्थिति से वेपरवाह भीम सिंह सांता बाई के पास पड़ा रहता। वह उसके शादी का प्रस्ताव स्वीकार करने का इंतजार कर रहा था। वह सांता बाई पर इतना मंत्र-मुग्ध था की उसे अपने स्थिति का भान नहीं हो रहा था। वह उसके हर सही गलत फरमाइस को पूरा करवाता। वह उसके अवस्था (स्थिति) पर मंद-मंद मुस्काती। उसकी वह मुस्कान एक जहरीली नागिन से कम नहीं थी। भीम सिंह उसके मोहपाश में बिलकुल जकड़ चूका था। शायद उसे वहाँ से निकालना आसान नहीं था और कोई उसे वहाँ से निकालने का प्रयाश भी नहीं किया। भला दुनियाँ वालों को किसी से क्या ? यहाँ तो प्रतिशत लोग बनते का यार (दोस्त) हैं। लोग को बस अपनी सुबिधा चाहिए, अगर आप को बुरा साथ-संगत, वस्तु, आदत अच्छी लगती है और आप उस से खुश रहते हैं तो लोग उसी माध्यम से अपना कार्य आप से करवाना चाहते हैं। उन्हें आपके भलाई-बुराई से कुछ नहीं लेना देना।

                           भीम सिंह का लॉ-लश्कर धीरे-धीरे कम होता गया। उस से मिलने आने वालो मित्रों की संख्या भी कम होते-होते नगण्य हो गई। एक बूढ़ा मुंशी कभी-कभी आता जो उसे सांता बाई के नशे में डूबे हुए बेशुध अवस्था से जगाने का प्रयाश करता, पर वह सफल नहीं हो सका। एक रोज मुंशी बोला मालिक अब तो जग जाइए। मैं अपना फर्ज समझ कर कह रहा हूँ, कल दुनियाँ वाले मुझे गाली न दे की बूढ़ा स्वार्थ में परा रहा अपने अन्नदाता को कभी जगाने का प्रयास नहीं किया। इस पर भीम सिंह हँसता हुआँ बोला 'काका इसके आगे हमें सौ गली पसंद है। मैं अब यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा मुंशी बोला मालिक जिनके साथ हमारा व्यापार चलता है वे लोग हिशाब करना चाहते हैं। भीम सिंह बोला ठीक है कल उन्हें यहीं ग्यारह बजे लाना और आप जाइए। वह सांता बाई की तरफ मुखातिब हो कर बोला, कल हमारे हिस्सेदार (पाटनर)  आ रहें हैं उनके बैठने के लिए व्यवस्था करवा देना। वह कुटिल मुस्कान के साथ हामी में शिर हिला दी।

                                दूसरे दिन निश्चित समय पर मुंशी के साथ कई लोग आए जो भीम सिंह के साथ जहाज का व्यापार करते थे। उन्हें एक बड़े हॉल में ले जाया गया। जहाँ चारों तरफ ताम-झाम लगा हुआ था। ऊपर कसीदार झूमड़ लटकती हुई घूम रही थी। वहाँ किसी प्रकार की सुविधा और आकर्षण में कोई कमी नहीं थी। पर वे लोग भीम सिंह की स्थिति से परिचित थे। भीम सिंह हॉल में आ गया, साथ में सांता बाई भी थी। सभी का सभी से अभिवादन हुआ फिर परिचय। बाहर से जो लोग आए हुए थे, सब कुछ जानते हुए भी पूछा, ए .... भीम सिंह बोला,  ए मेरी साँस हैं इनके लिए मेरा हर कुछ कुर्बान है। जैसे कोई जीव बिना साँस का नहीं रह सकता ठीक वैसे ही मैं भी उसी प्रकार बिना इनके एक पल नहीं रह सकता। इनकी खूबियाँ मैं क्या गिनाउ। व्यापारी लोग भावशीकोरते हुए मुस्का कर अच्छी है। भीम सिंह कौन ? व्यापारी बोले, आप आपकी पसंद आपकी लगाव, पर हमारे पूर्व शर्त के अनुसार हमारे व्यापारिक बातचित में दुपक्षीये समझौता था तीसरा वयक्ति व्यापारिक पाटनर छोड़ यहाँ नहीं रह सकता। आप चाहे तो मुंशीजी को रख सकते हैं। भीम सिंह ठीक है, ऐसे हम और ये दोनों एक ही हैं। फिर भी..... बीच में बात काटती हुई वह बोली ठीक है, मैं चलती हूँ, जब आप लोगों का हिसाब समाप्त हो जाए तो हमें बता दीजिएगा और वह वहाँ से चली जाती है।

                                 मुंशी अपना बही-खाता फैलता हुआ, मालिक यह हमारी व्यापार का हिसाब-किताब है। आपको मालूम ही  है की हमारी छः जहाजे बिक चुकी हैं। इन  लोगों का हिसाब हमारे उपड निकल रहा है। साथ में और भी देनदारी है और जो कल आप ने बताया था..। भीम सिंह बस-बस, ठहाका लगता हुआ हा.. हा.. हा.. यानि हमारी सातवी जहाज भी डूब जाएगी। यह तो हमारी सबसे कीमती जहाज है। खैर, मुंशी जी लाइए कागजात सभी पर हस्ताक्षर कर दूँ। इसे भी बेच कर सारी देनदारी चूका दीजिए। कल कोई यह न कहे की भीम सिंह के पास मेरा लेनदारी है और जो कल बताया था, उसका भी व्यवस्था कर दीजिए। मुंशी बोला और शेष राशि। भीम सिंह, 'अपने पास रखिए। आपने बहुत सेवा किया है। भविष्य में जरुरत पड़ेगा तो ... मुंशी ठीक है मालिक, और सभी लोग वहाँ से प्रस्थान कर जाते हैं।

                                    भीम सिंह की मनोस्थिति उस समय गजब थी। वह एक तरह से पागल हो गया था। ऐसे वह पहले भी सांता बाई के जाल में पागल था और अभी का क्या कहना। उसकी मनोस्थिति का कोई कैसे अंदाजा लगा सकता था। हमारे यहाँ एक कहावत है "पुत्र शोक बर्दास्त होता है पर धन शोक नहीं" पर पता नहीं यहाँ उसे कौन सा शोक था। वहाँ से लड़खडाता हुआँ वहाँ से सांता बाई के भवन में जाता है। वहाँ उसे ज्ञात होता है की वह उसका इंतजार शयन कक्ष में कर रही है। वह वहाँ जाता है, सांता बाई को निहारता हुआ ठहाका लगता हैहा.. हा.. हा..। वह भी मंद-मंद मुस्कान से उसे बेहोश करती है। वह उसके पास बैठ कर उसके हर अंग को शिर से पैर तक निहारता है। उसके अंगो को टटोलते हुए ठहाका लगाता है। पुनः निहारने और टटोलने में लग जाता है। मानो वह अपना कुछ ढूंढ रहा हो। सांता बाई उससे पूछती है यह क्या कर रहे हो। भीम सिंह तुम्हारा थाह लगा रहा हूँ। तुम्हारी बनावट एवं गहराई को मापना चाह रहा हूँ। तुम्हारी प्रत्येक कोण का अनुभव चाह रहा हूँ। वह बोली इतने दिनों से थाह लगा रहे हो, अनुभव कर रहे हो। अब जो कुछ करना है, कहना है जल्दी करो। कुछ बचा है तो...... उसका भी ताकत दिखा दो जोड़ आजमाइश कर लो या फिर जाओ आराम करो। भीम सिंह ठहाका लगता हुआ, तुम क्या खाती हो, क्या पहनती हो, तुम कितनी गहरी हो। भीम सिंह के पूर्वजो का जहाज को जिसे कोई नहीं डुबो सका यहाँ तक की माँ गंगा भी, उसे तुमने डुबो दिया। जो जहाज हमारे पूर्वजो को खिलता था उससे सैकड़ो लोग जीवकोपार्जन करते (जीते-खाते) थे। उसे तुम अकेला खा गई और डकार भी नहीं लिया। तुम तो बरमूडा के ट्रैंगल से भी भयावह निकली जहाँ जहाजो का आता-पता खो जाता है। तुम और तुम्हारी अंग कौन सा समुद्रर, सागर है और ठहाका मारता हुआ भीम सिंह मुर्क्षित हो जाता है। कुछ दिनों तक उसका कोई आता-पता नहीं चलता। किसी को क्या आवश्यकता थी की वह उसका पता लगता,  खोज करता।

                           कुछ दिनों के बाद भीम सिंह को उसी क्षेत्र में  देखा गया।  उस समय वह सांता बाई और शहर के गलियों में विक्षिप्त अवस्था में घूमता हुआ दिखाई देता। सभी उससे नफ़रत करते। वह दाने-दाने के लिए मुहताज था। वह भीख मांगता हुआ नजर आता। एक रोज उसका पुराना मुंशी उसे अपने घर ले गया। अब वह ज्यादातर अपने मुंशी के दरवाजे पर ही रहता। उसका वह बूढ़ा मुंशी उसे खिलता-पिलाता और देख भाल करता। ऐसे कई लोग यह भी कहते सुने जाते की मुंशी और उसका लड़का उससे खूब मॉल बनाया है। जिसका चुकता मुंशी कर रहा है। यह सब सुन कर दिल को थोड़ा सकून मिलता है। चलो थोड़ा-बहुत तो इंसानियत अभी भी जिन्दा है।

                      हमें इस बात का ध्यान रखना चहिए की कही हम भी तो भीम सिंह की तरह डूबने तो नहीं जा रहे। किसी अति में तो नहीं फंस रहे। ऐसे संस्कृत में कहा गया है 'अति सर्वत्र बर्जते'।हमें ऐसे शौख, साथ-संगत एवं आदत से बचना चहिए जो हमें पतित करें एवं अंततः गर्त में ले जा कर डुबो दे।

मंगलवार, 8 मार्च 2016

* उद्धधार *

                   उद्धधार यानि मुक्ति, जब कोई अपनी वर्तमान अवस्था स्थिति से निजात पाना चाहता है और जब उसे उस स्थिति से निजात, छुटकारा मिल जाता है तो कहते हैं उसका  उद्धधार हो गया या जब किसी को उसके वर्तमान स्थिति या अवस्था से उत्कृष्ट स्थिति या अवस्था प्राप्त होता है तो वह उसका  उद्धधार कहलाता है।

                    हम आप को यहाँ एक जीवन वृति का कुछ अंश सुनाने जा रहा हूँ। इसमें दो चरित्र हैं दोनों एक दूसरे का  उद्धधार का कारण बने। जब हमने उसका निर्णय जाना तो पहले मुझे बहुत ओ ... महसूस हुआ की कोई आज के समाज में भी इतना बड़ा फैसला ले सकता है। वह भी मध्यवर्गीय परिवार का सदस्य जो बिना समाज  सहयोग का एक कदम भी नहीं चल सकता। जिनकी सारी रीती-रिवाज, परम्परा समाज की दुहाई पर ही चलता है। हमें बाद में ज्ञात हुआ की वह उसका पूर्व का पहचान छुपा कर ऐसा किया साथ में मज़बूरी एवं लोभ भी समाहित था।

                       मेरे दोस्त का भाई का साला है करीमन। करीमन जैसा की नाम से विदित है। उसका रंग बिलकुल काला है फिर भी वह देखने में उतना बुरा नहीं लगता। उसके आँख नाक और वदन की बनावट उसे आकर्षित बनाते हैं। उसके मुख मण्डल पर गजब का चमक है जिसे आम बोल-चाल की भाषा में पानी कहते हैं। वह उसके चेहरे पर पूर्ण रूप से विराजमान है जो उसके रंग के प्रभाव को थोड़ा कम करता है।

                            जितना मैं जानता हूँ। करीमन के घर में खाने के लाले नहीं पड़े थे तो इतना आय भी नहीं थी की वो उच्चस्तरीय जीवन व्यतीत कर सके। उसके पिता जी का असमय मृत्यु हो जाने के बाद उनके पालन-पोषण की जबाबदेही उनके दादा-दादी पर आ गई। उन्होंने इन्हें किसी तरह पाल-पोश कर बड़ा किया। करीमन अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा था। जब वह युवा हुआ तो बाहर नौकरी करने लगा। उसी दौरान उसने अपने से छोटी बहन का शादी मेरे दोस्त के भाई से किया। जैसा की मैं जनता हूँ यह शादी बिना कोई खास लेन-देन (बिन दहेज़) के हुई थी फिर भी अन्य खर्च तो होता ही है। उस खर्च के वहन के लिए भी उन्हें जमीन बेचनी पड़ी थी। जिस से स्पस्ष्ट होता है, उनके पास कोई जामा और नगद पूंजी नहीं थी। उसके बाद भी उसने अपने और दो बहनों की शादी किया, एक भाई को दिल्ली रख कर पढ़ाया।

                        करीमन ठेका पट्टा वाले के साथ काम करता था। जो मुख्य रूप से रेलवे एवं संचार टावर का काम करते थे। इसमें उसे पगार के साथ कुछ इधर-उधर से भी आमद(आय) हो जाती थी। जितना मैं जानता हूँ, वह अल्कोहल नहीं लेता पर वह अपने सहभागियों के साथ पिकनिक एवं पार्टी अवश्य मनाता था। उसके बहुत सारे घूमते-फिरते दोस्त थे। उसकी जवानी भी अपनी तरुण अवस्था को पार कर रही थी। उसके ऊपर कोई मजबूत गार्जियन भी नहीं था। घर का भी कोई सही स्थिति नहीं था। जिस कारण उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आ रही थी। इन सब कारणों से वह इधर-उधर ज्यादा घूमता रहता। तृष्णा कहे या हवस की भूख उस में जग रही थी। जिसे मिटाने के लिए वह मुजफरपुर के चककर चौक एवं अन्य दूसरे गलियों का अपने साथियों के साथ चककर लगाता रहता। उस में अभी गैरत बाकि थी जिस कारण वह वहाँ जाने के बाद भी ज्यादा सक्रिए नहीं था। वहाँ आने-जाने, घूमने के क्रम में उसका नजर वही एक लड़की पर पड़ी जिसे वह पाना चाहा। उसकी फरमाइस उसने वहाँ की मालकिन से किया। मालकिन ने माना कर दी और बोली इसकी कीमत तुम नहीं दे सकते, कोई और पसंद कर लो और इच्छा पूरी करो। अच्छी सेवा की शर्त हमारी है। तुम्हारा मन खुश हो जाएगा। किसी प्रकार की शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा। वह बोला हम भी इसके शौकीन नहीं हैं। हम तो बस यू ही मन बहलाने के लिए घूमने चले आते हैं। हम सब को पसंद भी नहीं करते। वह बोली अच्छी बात है यहाँ आना माना थोड़े ही है। वह अब वहाँ जाता और सिर्फ घूमता, उस लड़की को देखने के बाद वापिस आ जाता। वहाँ की मालकिन उसकी हरकत देखती थी। उसने उस लड़की से उसे बात करने की छूट दे दी। अब वह उस से मिलने प्रति दिन जाया करता और बहुत खुश रहता। दोनों घंटो-घंटो बातें करते रहते। लड़की ने उसे साफ बता दी की वह इस धंधा से निकलना चाहती है और वह आजतक इस में पूर्ण संलिप्त नहीं है। वह उसे तो पहले से पाना चाह रहा था अब उसकी इच्छा और दृढ हो गई। उसने भी अपनी सारी कहानी उसे बता दिया और बोला मैं तो अभी कवाड़ा हूँ। यहाँ बस यू ही घूमने आ जाता था तो तुम्हें देखा और तुम मुझे पसंद हो मालकिन को बताया तो वह बोली तुम इसका कीमत नहीं दे सकते। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ पर तुम्हारा कीमत तो.. , वह हँस कर बोली मेरा कीमत रुपया पैसा नहीं है, मैं जिसके साथ रहूँगी उसे मुझे अपना नाम और कुल एवं वंश नाम देना होगा। वह बोला मैं तैयार हूँ पर गाँव घर में रहना बड़ा मुश्किल होगा। एक तो वहाँ सभी एक दूसरे के विषय में पूर्ण जानकारी चाहते हैं दूसरा तुम्हें ये सुख-सुबिधा नहीं मिलेगी। वह बोली अगर हम लोग स्थाई रूप से शहर में बस जाये तो कैसा रहेगा। वह बोला पर मेरे पास इतना आय कहाँ है की मैं शहर में बस सकु और किराए पर कितने दिन रहेंगे। वह बोली उसकी चिंता तुम न करो उसकी व्यवस्था मेरी माँ कर देगी। वह आश्चर्य से बोला तुम्हारी माँ वह कहाँ हैं। वह बोली वही जिसने तुम्हें मुझ से मिलने का इजाजत दिया और बोली थी की तुम उसका कीमत नहीं दे सकते। वह भी इसी दिन का इंतजार कर रही है की मेरा नाम किसी वंश, कुल से जुड़ जाए। इसलिए तो अभी तक हमें इस धंधे में नहीं उतरा है। ऐसे तो बहुत लोग शादी के लिए तैयार हैं पर उनका न कोई प्रतिष्ठा है न वंश उन से जुड़ने के बाद भी हमें यही धंधा करना-कराना पड़ता फिर क्या फायदा। मेरे औलाद भी इसी से जुड़ा रह जाएगा। पैसा का व्यवस्था तो हो जाएगा पर नाम का व्यवस्था कैसे होगी फिर वह बोली कल आना मैं माँ से बात करती हूँ। वह लड़की अपनी माँ से बात करती है, माँ ने उसे जितना जानकारी मालूम करने के लिए बताई थी वह सारी बात जितना वह जानकारी इकट्ठा (एकत्रित) कर सकी थी या मालूम कर ली थी माँ को बता दी साथ में यह भी बता दी की शादी करने के लिए भी तैयार है। उसकी माँ बोली शादी के लिए तो बहुत लोग तैयार हैं।

                      अगले दिन तीनों इकट्ठा (एकत्रित) हुए। पूर्ण विस्तार से वार्तालाप हुई। मालकिन ने अपने तरफ से पूर्ण तहकीकात की। उसके घर में कौन-कौन है। उनका रिश्तेदारी कहाँ-कहाँ है। अगर इसे प्रेम विवाह दिखाया जाए तो कौन-कौन विरोध और कौन-कौन सहयोग करेगा। तय हुआ की पहले मंदिर में शादी होगा दोनों साथ रहेंगे फिर न्यालय में। उसने करीमन से पूछी किस शहर में बसना चाहते हो। उसके बाद उसने भी अपनी राय दी। वह बोली यहाँ से दूसरा शहर ही ठीक होगा। आपके लिए पटना ही ठीक होगा। एक तो वह यहाँ से दूर है दूसरा आपके क्षेत्र में है, तीसरी खूबी है वह राजधानी है। अगर दूसरे स्थान पर बसोगे तो लोग बहुत छान-बिन करेंगे, वहाँ क्यों किस लिए, कैसे बसा। इस से अपका नाम, वंश नाम बचा रहेगा। किसी को ज्यादा सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी। कुल वंश से जुड़ाव बना रहेगा और वहाँ शहरी सुरक्षा भी प्राप्त हो जाएगी  जो आम शहरों में होता है। शहरों में लोग किसी से ज्यादा जुड़ाव या उसके विषय में जानकारी रखने की इच्छा बिना वजह नहीं रखते जैसा की गाँवो में होता है। वहाँ से यह तुम्हारे रिश्तेदारी-नातेदारी में भी घुल-मिल जाएगी और इसकी अपनी पहचान भी बन जाएगी। तीनों इस पर सहमत हो गए। उसके बाद दोनों का शादी मंदिर में सम्पन हुआ। दोनों पटना आ कर किराए के मकान में रहने लगे। मालकिन या अब यूँ कहे करीमन की सास जी ने अपनी बेटी के नाम बहादुरपुर पटना में जमीन खरीद कर उस में माकन (घर) निर्माण शुरू करा दी। 

                           उधर गावँ में शोर हो गया की करीमन प्रेम विवाह कर लिया। गाँव वालों ने सोचा करीमन गाँव आ कर बहुभोज देगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोगों में काना-फूसी होने लगी। लोगों ने अनेक बातें कही जो हवा में तीर चलाने समान थी। लोग अपने-अपने ढंग से अंदाज लगाने लगे। इनमें  से कुछ का सही भी था। उसके चाचा जी उससे मिलने आए। वे कुछ छान-बिन किया तो उन्हें कहीं से लड़की के विषय में कुछ मालूम हुआँ, उन्होंने करीमन से कहा चलो शादी कर लिया अच्छा है। तुमने कभी हमारे बारे में घर-परिवार, दादा-दादी के विषय में सोचा। गाँव में लोग क्या-क्या कह रहें हैं। दादा-दादी तो कुछ वर्षो में चल बसेंगे पर हमारा एवं हमारे वंशजों का क्या होगा। हमारे बाल-बच्चों का शादी-व्याह रुक जाएगी। गाँव में हम लोगों का साँस लेना दूभर हो जाएगा। वे उस पर दबाव बनाने की कोशिश करने लगे। वे पेशे से अधिवक्ता थे। शायद वह उनके बातों में थोड़ा आ भी गए। फिर तीनों करीमन ,करीमन की सास एवं करीमन की पत्नी राय-विचार किया तदनुपरांत करीमन अपने चाचा से मिल कर उन्हें पटना में ही बस जाने का सलाह दिया और बहुत सारे दलील भी। वे बोले मेरे पास इतना पैसा कहाँ है। घर-परिवार चलना बच्चों को पढ़ाना है, इतना सारे खर्च हैं पैसा बचता कहाँ है। वह बोला इसका चिंता न करें। मैं जमीन अपने बगल में हीं रजिस्टरी करा दे रहा हूँ। कुछ नगद का भी वयवस्था करा दूंगा। दोनों चाचा-भतीजा वहीं बस गए। उन दोनों का शादी उसके चाचा के उपस्थिति में न्यालय में भी सम्पन हो गया। सभी उस उस समय को छोड़ कर आगे बढ़ गए।

                               दोनों किसी बड़े सोच या साहसिक कदम और समाज कोचुनौती देने या लोगों का सोच बदलने के लिए ऐसा नहीं किया, बल्कि मज़बूरी में समझौता किया। कहा जाता है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी' , उस लोकोक्ति को चरितार्थ किया। एक को गरीबी से छुटकारा मिला तो दूसरे को नाम कुल वंश का पहचान। इस प्रकार दोनों एक दूसरे का उद्धधारक भी बने। शौख एवं सुधार के लिए नहीं मज़बूरी में हैं सही दोनों का उद्धधार तो हो ही गया।